मोदी सरकार के लगातार ग्यारहवें आम बजट से महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त निचले तबक़े ने जहां अपनी आमदनी बढ़ाने और ज़रूरी वस्तुओं के दाम घटाने संबंधी उपायों की आस लगा रखी है वहीं मध्यमवर्ग भी वित्तीय राहत की बाट जोह रहा है। ताज्जुब ये है कि मोदी सरकार ने आमदनी में जमीन-आसमान के अंतर के बावजूद इन दोनों ही तबक़ों को करों के नागपाश में जकड़ दिया है। निम्न मध्यमवर्ग और गरीब तबक़ा तो जीएसटी की ऊँची दरों पर मोदी सरकार द्वारा वसूली से परेशान है। उधर मध्यवर्ग पिछले साढ़े दस साल से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति अंधनिष्ठा के बावजूद जीएसटी के साथ ही मोटी दरों पर आयकर का भुगतान करते-करते पस्त हो गया है। इसलिए अर्थव्यवस्था में मांग और खपत दोनों ही घट रहे हैं। इस लिहाज से देखें तो वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के लिए केंद्रीय बजट में देश के सभी तबकों को राहत देकर संतुष्ट करना सबसे बड़ी चुनौती है।
महंगाई ने गृहिणियों की नींद उड़ाई!
- अर्थतंत्र
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- 1 Feb, 2025

ख़पत काफ़ी ज़़्यादा कम हो गई है। मध्यवर्ग की आय कम हुई है। बेरोजगारी बढ़ी है। महंगाई बढ़ी है। तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट में किस-किस से निपटेंगी?
खासकर साल 2024 के आम चुनाव में बीजेपी के लोकसभा में बहुमत से वंचित होकर महज 240 सीट पर और आर्थिक वृद्धि के दूसरी तिमाही में 5.4 फीसदी पर सिमटने के संदर्भ में वित्तमंत्री को सिर्फ वित्तीय ही नहीं, राजनीतिक सूझबूझ भी दिखानी होगी। हालाँकि घरेलू मोर्चे पर बेरोजगारी और महँगाई तथा अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर मुंह बाये खड़ी मंदी से फैली आर्थिक अनिश्चितता ने मोदी सरकार के हाथ पहले ही बांध रखे हैं। इसके बावजूद अर्थव्यवस्था में घटती वृद्धि और वित्तीय राहत के लिए तड़पती जनता को साधने के लिए सरकार को बजट में कर ढाँचे को जनोन्मुख बनाने के लिए कुछ साहसिक उपाय तो करने ही होंगे। इसकी शुरुआत सरकार महंगाई घटाने के लिए पाम, सूरजमुखी और सोयाबीन जैसे खाने के तेलों पर वसूले जा रहे 27.5 फीसदी आयात शुल्क की दरों में कटौती करके उसे फिर से 5.5 फीसदी तक घटाने जैसे ठोस उपाय से कर सकती है।