कोरोना के झंझावात के बाद किसे उम्मीद थी कि भारत की अर्थव्यवस्था साल ख़त्म होने से पहले ही पटरी पर लौटती दिखने लगेगी। लेकिन ऐसा ही होता दिख रहा है। लगातार ऐसी रिपोर्ट और आँकड़े सामने आ रहे हैं कि भारत में रिकवरी की रफ़्तार उम्मीद से तेज़ है। भारत सरकार की न मानें तब भी देश और दुनिया की तमाम संस्थाओं की गवाही मौजूद है। रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर यानी एसएंडपी का कहना है कि अगले वित्त वर्ष में भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा।
चालू साल के लिए भी उसने भारत की जीडीपी में गिरावट का आँकड़ा (-) 9% से बढ़ाकर (-) 7.9% कर दिया है। जापान की मशहूर ब्रोकरेज नोमुरा का तो अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी में गिरावट सिर्फ़ 6.7% ही रहेगी और अगले साल यानी 2020-21 में भारत की अर्थव्यवस्था में 13.5% की बढ़त दर्ज होगी। यह आँकड़ा भारत के रिज़र्व बैंक के अनुमान से भी बेहतर है जिसे इस साल जीडीपी में 7.7% की गिरावट और अगले साल 10.5% बढ़त होने की उम्मीद है।
आज ही सरकार की तरफ़ से जीडीपी ग्रोथ का तिमाही आँकड़ा जारी होने की उम्मीद है। उससे साफ़ होगा कि तसवीर कितनी ख़ुशनुमा है और अभी कितनी फ़िक्र बाक़ी है। ज़्यादातर अर्थशास्त्री मानते हैं कि दो तिमाही की तेज़ गिरावट के बाद यह तिमाही मामूली गिरावट दिखा सकती है। लेकिन अब यह उम्मीद जतानेवालों की गिनती भी बढ़ रही है कि इसी तिमाही का आँकड़ा भारत में मंदी ख़त्म होने की ख़बर लेकर आ सकता है।
नोमुरा ने इससे पहले ही अपने एशिया पोर्टफ़ोलियो (इसमें जापान शामिल नहीं है) में भारत की रेटिंग बदलकर न्यूट्रल से ओवरवेट कर दी है। इसका सीधा अर्थ होता है कि अब वो भारत के शेयर बाज़ारों में ज़्यादा पैसा लगाने की सलाह दे रही है। उत्साह की वजह बजट में आए एलान हैं लेकिन साथ ही वो चेताती भी है कि इन नीतियों के अमल पर ध्यान देना ज़रूरी होगा।
आईएमएफ़ और एशियन डेवलपमेंट बैंक भी भारत की जीडीपी बढ़त दर का अपना अनुमान बदल कर बढ़ा चुके हैं। आर्थिक क्षेत्र में भविष्यवाणी करने वाले ऑक्सफर्ड इकोनॉमिक्स की ताज़ा रिपोर्ट में भी कहा गया है कि 2021 में भारत की बढ़त की रफ़्तार 10.2% रहेगी। पहले इसने 8.8% का अनुमान जताया था।
इस बात पर लगभग सभी अर्थशास्त्री और संस्थान एकमत हैं कि भारत में जीडीपी की गिरावट अब थम रही है। जहाँ उनमें मतभेद हैं वो इसपर कि जीडीपी अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही में ही गिरावट का सिलसिला तोड़ देगी या उसके लिए एक तिमाही का इंतज़ार और करना पड़ेगा।
भारत के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित आर्थिक शोध संस्थान नैशनल काउंसिल फ़ॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च या NCAER का कहना है कि दिसंबर में ही अर्थव्यवस्था मंदी की गिरफ्त से बाहर आ जाएगी और 0.1% की बढ़त दिखा देगी।
और उसके बाद यानी जनवरी से मार्च के बीच इसमें दो परसेंट की बढ़त आ जाएगी। इसके साथ ही चालू वित्त वर्ष में कुल मिलाकर जीडीपी में 7.3% की ही गिरावट रहेगी। पिछले अनुमान में काउंसिल ने 12.6% की गिरावट की आशंका जताई थी।
उधर अपने आँकड़ों और उनके विश्लेषण की वजह से लगातार भारत सरकार के कोपभाजन रहनेवाले सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई का भी कहना है कि रोज़गार के बाज़ार में ज़बरदस्त सुधार दिख रहा है। जनवरी के महीने में बेरोज़गारों की गिनती तेज़ी से गिरी है और रोज़गार में लगे लोगों की गिनती में सुधार भी आया है। दिसंबर में बेरोज़गारी की दर 9.1% थी जो जनवरी में गिरकर 6.5% ही रह गई, और इसके सामने रोज़गार में लगे लोगों का आँकड़ा 36.9% से बढ़कर 37.9% हो गया है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष पहले ही कह चुका है कि इस साल भारत में तरक़्क़ी की रफ़्तार चीन से भी तेज़ होगी।
लेकिन भारत का हाल सुधरने के रास्ते में भी अभी कुछ रोड़े अटक सकते हैं यह आशंका अभी ख़त्म नहीं हुई है। सबसे बड़ी चिंता तो अभी यह है कि कहीं कोरोना की एक और बड़ी लहर तो नहीं आ रही है। जिस रफ़्तार से महाराष्ट्र, केरल और कर्नाटक में नए केस फिर बढ़ रहे हैं उससे यह डर भी बढ़ रहा है। कोरोना वायरस के नए रंग रूप या स्ट्रेन ने महाराष्ट्र के बड़े हिस्से को मुश्किल में डाल रखा है। मुंबई में सरकार के बार-बार इनकार के बाद भी लॉकडाउन की आशंका से पूरी तरह इनकार करना मुश्किल है।
मतलब साफ़ है, महंगाई बढ़ने से भी ज़्यादा किसानों को फ़ायदा नहीं होगा। गाँवों में मज़दूरी का रेट भी पिछले चार महीने से लगातार गिर रहा है। और शहरों में भी मज़दूरों की माँग कमज़ोर ही बनी होने से संकट गहरा सकता है।
रिज़र्व बैंक का मॉरेटोरियम ख़त्म होने के साथ ही वहाँ भी तकलीफ़ दिखनेवाली है। जब तक तसवीर साफ़ न हो, कहना मुश्किल है लेकिन इतना तो दिख रहा है कि क़र्ज़ न चुकाने या न चुका पानेवालों की गिनती अभी तक ख़तरे के निशान से ऊपर ही है। ख़ासकर रिटेल लोन यानी कार, घर या पर्सनल लोन के मामले में।
ये बड़ी चिंताएँ हैं लेकिन ये सारी चिंताएँ सिर्फ़ यह याद दिलाती हैं कि अभी आराम से बैठने या फ़िक्र छोड़ने का वक़्त नहीं आया है। सरकार को इन सब चीजों का एक साथ मुक़ाबला करना होगा और हौसला जगाने का काम जारी रखना पड़ेगा, तभी जिस सुधार की उम्मीद जताई जा रही है वो साकार हो पाएगा।
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