loader

किसकी क़ीमत पर भारत में बढ़ रहा है ई-कॉमर्स बाज़ार?

बहुत चौंकाऊ आँकड़ों की बमबारी का ज्यादा मतलब नहीं है, लेकिन कुछ आँकड़े ऐसी तस्वीर पेश करते हैं कि उनकी चर्चा और उनसे कुछ व्यापक निष्कर्ष निकाले बगैर रहना ‘मूँदहीं आँख कतहु कछु नाहीं’ को व्यवहार में उतारना ही होगा। एक नामी अंतरराष्ट्रीय बाजार अनुसंधान कंपनी के अनुसार बीते सितंबर और अक्टूबर महीनों में भारत में ई-कॉमर्स का आँकड़ा 12 अरब डॉलर अर्थात सौ खरब रुपए से ऊपर पहुँच गया है और यह पिछले साल की इसी अवधि से 23 फीसदी ज्यादा है।

बताना न होगा कि ये दो महीने त्यौहार की खरीदारी वाले माने जाते हैं और बाजार का हर खिलाड़ी इन पर खास नज़र रखता है। ई-कॉमर्स वाली कंपनियाँ तो हर व्यक्ति को बाज़ार में ला देने और हर किसी की जेब से ज़्यादा से ज़्यादा पैसे निकालने की तैयारी में रहती हैं। हम भी खरीदारी के मूड में होते हैं, तभी तो श्राद्ध पक्ष में भी सोना-चांदी और कारों की बिक्री बढ़ती जा रही है। इसी कंपनी का अनुमान है कि अमेजन और फ्लिपकार्ट का हिसाब तो पिछले साल की तुलना में 26 फीसदी बढ़ा है। जाहिर है उनकी तैयारी ज्यादा होगी और तत्परता भी। पर दूसरी ऑनलाइन बिक्री करने वाली कंपनियों का कारोबार भी सामान्य से बहुत ज्यादा तेजी का है क्योंकि अर्थव्यवस्था के विकास के या प्रति व्यक्ति आय और खर्च के आंकड़ों से यह तस्वीर इतनी गुलाबी नहीं दिखती।

ताज़ा ख़बरें

कायदे से तो इस फासले पर चर्चा होनी चाहिए क्योंकि अर्थव्यवस्था में तेजी नहीं है, घरेलू बचत और कर्ज से लेकर महंगाई, बेरोजगारी जैसे हर हिसाब से आम आदमी ज्यादा परेशान लगता है तो यह बड़ी तस्वीर कहां से निकलकर आ रही है। हम मान सकते हैं कि ऑनलाइन कंपनियों ने शहरों में और हर परिवार के जीवन में ज्यादा तेजी से घुसपैठ करने के बाद अब देहात के भी पैसे वाले और कार्ड का प्रयोग करने वाली जमात तक अपनी पहुँच बढ़ाई है। जाहिर है वह रफ्तार काफी है। इसी अध्ययन का अनुमान है कि अकेले सितंबर में क्रेडिट कार्डों से 176201 करोड़ रुपए का लेन-देन हुआ है और इसमें भी 115168 करोड़ ऑनलाइन खरीद पर खर्च किए गए। इस आँकड़े से यह भ्रम हो सकता है कि दो तिहाई ट्रांजेक्शन का मतलब ई-कामर्स का दबदबा है, पर ऐसा है नहीं। स्टोर में जाकर कार्ड से खरीदी करने के मामले भले गिनती में कम हों लेकिन ज्यादा रकम की चीज खरीदते समय लोग स्टोर/दुकान में जाकर समान या सेवा को देख-परखकर खरीदना पसंद करते हैं और उनका ‘वाल्यूम’ ई-कामर्स से बड़ा है। मतलब यह हुआ कि ई-कामर्स काफी सारी वजहों से सुविधाजनक भले लगे लेकिन पूरी तरह भरोसेमंद नहीं हुआ है।

इस अध्ययन में इस बात की तरफ इशारा भर किया गया है कि अर्थव्यवस्था के आम संकेतों और ई-कामर्स की तेजी के बीच के फ़ासलों की एक वजह खुदरा किराना कारोबार का गिरना है। हमें लगता है यह गिरना नहीं नाश होते जाना है और वह दिन दूर नहीं है जब किराना की दूकानें ही नहीं दूध, फल, सब्जी और चूड़ी-सिंदूर वगैरह के ठेले और दूकानदार इसी तरह नष्ट होते जाएंगे। करोना के समय काफी किराना धंधा चौपट हुआ था। संभव है कि ई-कामर्स के गुलाबी आंकड़ों में उसका भी योगदान होगा। लेकिन यह सरकार द्वारा लाई नई आर्थिक नीतियों और उससे भी बढ़कर नई तकनीक के पाँव पसारते जाने का भी प्रमाण है जिसके रास्ते को सरकार सुगम बना रही है। ऐसा करने में सरकार का स्वार्थ बैठे बैठाए कर के रूप में काफी सारी मलाई चाटने का है। 

यह चर्चा कुछ बाद में। लेकिन ई-कामर्स के बढ़ने की वजह देश में मौजूद साक्षर और ढेर सारी उपभोक्ता आकांक्षाओं से लैस बेरोजगारों की फौज भी है। तकनीक और अंग्रेजी से लैस जमात तो ‘आईटी क्रांति’ की किरानीगीरी का आधार बनकर उसकी मोटी कमाई के एक छोटे हिस्से को पाकर संतुष्ट है और भारतीय मानकों से उसकी कमाई भी काफी अधिक है। 
निम्न मध्य वर्ग और गरीब जमात के कम पढ़े-लिखे या छोटा-मोटा काम करके गुजारा चलाने वाले लड़के-लड़कियों के लिए ई-कामर्स के दफ्तर, गोदाम, माल डिलीवरी और सर्विसेज के काम ही रह गए हैं। अपना ठेला या छोटा कारोबार चलाना दिन ब दिन मुश्किल हो रहा है। लेकिन ई-कामर्स के इन पैदल सैनिकों का जीवन भी अध्ययन और दया का विषय है।
कहना न होगा कि यह काम भी सबके लिए नहीं है। शहरी और बेरोजगार लड़कों (जी हां लड़कों की तुलना में लड़कियों को काम काफी कम मिलता है) के बल पर चलने वाला यह धंधा उनको किस तरह चूसता है यह अलग अध्ययन का विषय है। दस मिनट या बीस मिनट में या खाना गरम ही पहुंचाने की शर्त पर डिलीवरी देने वाले लड़कों को शहर की मुश्किल और जानलेवा ट्रैफिक व्यवस्था किस तरह मुश्किल करती है यह सोचकर दिल कांप जाता है। और डिलीवरी में जरा सी देरी उनको जुर्माना भरवा देती है। दूसरी ओर जोमाटो, ओला/उबर जैसी कंपनियां बैठे बैठाए कुल बिल का तीस फीसदी घटक जाती हैं। पर इस धंधे में किराना दुकान बंद होने या धंधा कम होने से आमदनी घटाने वाली जमात के लोगों को इंट्री नहीं मिलती। वे खेती में बोझ बने बैठे असंख्य लोगों की तरह पुराने धंधे से चिपके रहने और दिन ब दिन ज्यादा मुश्किल उठाने के किए अभिशप्त हैं। हर शहर, हर मुहल्ले में लोगों ने उत्साह में दुकानें बना लीं लेकिन अब उनका शटर बंद दिखता है।
अर्थतंत्र से और ख़बरें

दूसरी तरफ सरकार का खजाना भी तेजी से बढ़ रहा है और वह अगर ई-कामर्स बढ़ाने की रणनीति कहलाती है तो सिर्फ बड़ी कंपनियों का लाभ ही नहीं हुआ है, सरकार मालामाल हो गई है। हर साल प्रत्यक्ष कर बजट अनुमान को पीछे छोड़ता है। जीएसटी से इतना पैसा आ रहा है कि सरकार अब आँकड़े छुपाने में जुटी है- पहले जीएसटी पर सवाल उठ रहे थे तो रोज आँकड़े बताती थी। सरकार पीएफ के आँकड़े गिनवाकर रोजगार बढ़ाने का दावा करती है क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड में आ गई हर कंपनी के लिए पीएफ ही नहीं बिक्री-उत्पादन, निर्यात, आयात और सर्विसेज का रिकार्ड तथा सरकारी खैरात का रिकार्ड रखना आसान हो गया है। और मोदी सरकार हो तो उसके लिए तो कलाकारी का और रास्ता खुल गया है। एक नोटबंदी की असफलता को उसने करदाताओं की संख्या, इलेक्ट्रानिक ट्रांजेक्शन में वृद्धि, कालाधन काम होने, आतंकवादियों की फंडिंग में कमी होने, नकली नोट का चलन काम होने के दावे से लेकर न जाने कितने तरफ से सफल बताने का प्रयास किया। लेकिन सच्चाई यही है कि इन सबका लाभ बड़ी कंपनियों और सरकार को है, किसानों, छोटे लोगों, छोटे उद्यमियों और आम उपभोक्ता के लिए इससे दिन ब दिन परेशानियां बढ़ती गई हैं। पर मुश्किल यह है कि उनकी सुनवाई के मंच भी खत्म होते जा रहे हैं।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
अरविंद मोहन
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

अर्थतंत्र से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें