अर्थव्यवस्था में चल रही उथल-पुथल और मंदी के बीच सरकार अब कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए कंपनी एक्ट में संशोधन करने जा रही है। इसके तहत कंपनियों से जुड़े दो-तिहाई अपराधों को जुर्म की श्रेणी से बाहर किया जाएगा। सरकार ऐसी 66 में से 40 धाराओं में जेल के प्रावधान को ख़त्म करने जा रही है। इसके अलावा कई अन्य राहत देने पर भी विचार किया जा सकता है।
अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए कंपनियों और पूरे कॉरपोरेट जगत के लिए सरकार ऐसी राहत की घोषणा लगातार कर रही है। हाल के दिनों में सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स कम किया है और ऑटो सेक्टर के लिए कई घोषणाएँ की हैं। इनकम टैक्स अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किए जाने की शिकायतों को लेकर नियमों को भी लचीला किया गया है। सरकार की कोशिश यह है कि व्यापार के अनुकूल माहौल तैयार किया जाए और व्यापार जगत में एक विश्वास पैदा किया जाए। बता दें कि नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा था कि कोई भी किसी पर भरोसा नहीं कर रहा है इसलिए लोग कैश पर बैठ गए हैं और कोई भी मार्केट में पैसा नहीं निकाल रहा है। राजीव कुमार ने कहा था, 'यह सिर्फ़ सरकार और प्राइवेट सेक्टर की बात नहीं है। निजी क्षेत्र में आज कोई भी किसी और को क़र्ज़ नहीं देना चाहता।' तब उन्होंने कहा था कि देश में 70 साल में अब तक नकदी का ऐसा संकट नहीं देखा गया है।
इन्हीं स्थितियों में कंपनी एक्ट में जुर्म के प्रावधान को ख़त्म करने की प्रक्रिया को कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय आगे बढ़ा रहा है। इसके अलावा छोटी कंपनियों के लिए भी जुर्माना राशि कम करने के प्रयास की बात भी सामने आ रही है। ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि इस क़दम से 11 लाख पंजीकृत भारतीय कंपनियों में से क़रीब आठ लाख को फ़ायदा होने की उम्मीद है, जिनका कारोबार 2 करोड़ रुपये तक का है।
अख़बार के अनुसार, सूत्रों ने कहा कि कंपनी क़ानून समिति द्वारा इन क़दमों पर चर्चा की जा रही है। इसकी अगुवाई कारपोरेट मामलों के सचिव इंजेटी श्रीनिवास कर रहे हैं, जो नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिए कड़ी बंदिशें लगाने के रास्ते तलाश रहे हैं, लेकिन बिना जेल में डाले। उदाहरण के लिए, किसी कंपनी द्वारा प्रावधान का उल्लंघन करने पर फ़ंड को एक्सेस करने या पंजीकृत कार्यालय के हस्तांतरण पर कुछ प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। एक सूत्र ने कहा, ‘केवल गंभीर अपराधों में जेल अवधि का प्रावधान होगा, क्योंकि यह विचार कंपनियों के संचालन को सरल बनाने के लिए है।’
अगले कुछ हफ़्तों में पहली रिपोर्ट को अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है। सरकार क़ानून में संशोधन के लिए अगले महीने शुरू होने वाले संसद के सत्र में एक विधेयक लाने की योजना बना रही है।
पहले 81 धाराओं में थी जेल की सज़ा
कुछ महीने पहले सरकार ने उन प्रावधानों को कम करने के लिए क़ानून में संशोधन किया था, जिसके तहत जेल की सज़ा का प्रावधान है। तब ऐसी 81 धाराओं को कम कर 66 कर दिया गया था। कंपनी अधिनियम में संशोधन के लिए कंपनी क़ानून समिति को तब गठित किया गया था जब कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलीटी यानी सीएसआर पर ख़र्च करने से संबंधित उल्लंघन के मामले में जेल की सज़ा के प्रावधान पर हंगामा मचा था। हालाँकि समिति ने शुरुआत में 20-22 धाराओं की पहचान की थी जिसमें से जेल की सज़ा को ख़त्म करना था, लेकिन बाद में इसकी संख्या बढ़ा दी गई।
अख़बार के अनुसार, सूत्रों ने भी कहा है कि अधिकतर धाराओं में जेल की सज़ा को ख़त्म करने का यह क़दम व्यापार के लिए माहौल बनाने, व्यापार से जुड़े लोगों में विश्वास पैदा करने और प्रोत्साहन देने के प्रधानमंत्री के आह्वान के अनुरूप है। सरकार का इस पर इसलिए भी ज़ोर है क्योंकि अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब होती जा रही है।
अर्थव्यवस्था बुरे दौर में
देश का औद्योगिक उत्पादन सूचकांक साढ़े छह साल में सबसे कम है। जुलाई के मुक़ाबले अगस्त में औद्योगिक विकास 4.3 प्रतिशत से घटकर -1.10 प्रतिशत पर आ गया है। ये आँकड़े फ़रवरी 2013 के बाद सबसे कमज़ोर हैं। देश के 23 औद्योगिक समूहों में से 15 में निर्माण वृद्धि घटती हुई नकारात्मक हो गई है। हाल के दिनों में ऑटो सेक्टर की हालत ख़राब है ही। बेरोज़गारी भी रिकॉर्ड स्तर पर है। हर अंतरराष्ट्रीय संस्था की रिपोर्ट भारत की ख़राब आर्थिक हालत की ओर इशारा कर रही हैं।
भारत की जीडीपी पाँच फ़ीसदी पर पहुँच गई है। विश्व बैंक ने भारत की अनुमानित वृद्धि दर 7 फ़ीसदी से घटाकर 6 फ़ीसदी कर दी है। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने 2019-2020 के लिए भारत के जीडीपी की अनुमानित वृद्धि दर घटाकर 5.8 फ़ीसदी कर दी है। मूडीज ने वृद्धि दर कम रहने के पीछे निवेश और माँग में कमी, ग्रामीण इलाक़ों में मंदी और रोज़गार के मौक़े बनाने में नाकामी को कारण बताया था। मूडीज़ ने कहा था कि ये कारण लंबे समय तक बने रहेंगे।
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