वीआरएस
इसी घोषणा में कहा गया कि कर्मचारियों के लिए एक आकर्षक स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना का प्रस्ताव है। बीएसएनएल और एमटीएनएल के 60,000 से अधिक कर्मचारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) के लिये आवेदन कर चुके हैं। जिसमे अकेले बीएसएनएल के कर्मचारियों की संख्या 57,000 से अधिक है।बीएसएनएल संकट में क्यों?
रिलायंस जियो के बाज़ार में आने के बाद से पूरा परिदृश्य बदल गया। सबसे पहले बीएसएनएल की हालत ख़राब हुई। अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में बीएसएनएल सेवाओं और तकनीकी प्रगति के मामले में पिछड़ गया है। इसे इससे समझा जा सकता है कि जहाँ हर कोई 5 जी नेटवर्क की तैयारी कर रहा है, बीएसएनएल देश भर में अपने 4 जी नेटवर्क का परीक्षण कर रहा है।
क्या बचा है बीएसएनएल के पास?
एकमात्र राष्ट्रीय दूरसंचार ऑपरेटर के रूप में बीएसएनएल न केवल देश के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें देश का सबसे बड़ा ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (ओएफसी) भी है।
संचार निगम एग्ज़क्यूटिव्स एसोसिएशन (एसएनईए) के दिए आँकड़ों के अनुसार, बीएसएनएल के पास 7.5 लाख किलोमीटर लंबा ऑप्टिकल फाइबर केबल का नेटवर्क है, जो पूरे देश में फैला हुआ है।
कैसे टक्कर दे रहा है रिलायंस?
लगभग तीन साल पहले रिलायंस जियो ने जब बाज़ार में प्रवेश किया तब टेलीकॉम सेक्टर में एक दर्जन से ज़्यादा ऑपरेटर सवा करोड़ की आबादी के बीच अपनी जगह बनाने के लिए जूझ रहे थे। जियो के आते ही टैरिफ़ वॉर शुरू हुआ, जिसने कई ऑपरेटरों को बाज़ार से बाहर कर दिया।
सरकारी कंपनी बीएसएनएल जहाँ सबसे ज़्यादा संसाधन होने के बावजूद तंगहाली से जूझ रहा है वहीं आज जियो को टक्कर देने के लिए सिर्फ दो अन्य प्राइवेट ऑपरेटर, भारती एयरटेल और वोडाफोन आईडिया बचे हैं।
ट्राइ की रिपोर्ट
दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, रिलायंस जियो ने अगस्त में 8.44 मिलियन मोबाइल फोन ग्राहकों को जोड़ा, जबकि एयरटेल और वोडाफोन आइडिया को अपने ग्राहक आधार पर नुकसान उठाना पड़ा। अगस्त में वोडाफ़ोन आइडिया ने 4.95 मिलियन ग्राहक गँवा दिए, जबकि भारती एयरटेल ने 0.56 मिलियन ग्राहक खोए। अब, जियो का कुल ग्राहक आधार 348.2 मिलियन, वोडाफोन आइडिया 375 मिलियन और एयरटेल 327.9 मिलियन है।सुप्रीम कोर्ट ने कैसे ठोकी कील?
जियो से टक्कर लेते हुए ख़स्ताहाल में पहुंचे वोडाफ़ोन-आईडिया और भारती एयरटेल को सुप्रीम कोर्ट से तब बड़ा झटका मिला जब बीते 24 अक्टूबर में अदालत ने एडजेस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू मामले में दूरसंचार विभाग के पक्ष में फ़ैसला सुनाया। इस फ़ैसले के बाद टेलीकॉम कंपनियों को करीब 1.33 लाख करोड़ रुपये सरकार को चुकाने पड़ सकते हैं।
दूरसंचार कंपनियों को एजीआर के तहत 92 हज़ार करोड़ रुपये देने हैं। लेकिन ब्याज और अन्य चीजों को मिलाकर यह रकम 1.33 लाख करोड़ रुपये है। टेलीकॉम कंपनियों ने छह महीने का समय मांगा है।
क्या हैं चुनौतियाँ
एक तरफ जहाँ जियो के सस्ते टैरिफ़ दरों ने बीएसएनएल सहित वोडाफ़ोन-आईडिया और भारती एयरटेल की हालत ख़राब कर रखी है, वहीं सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद निजी टेलीकॉम ऑपरेटरों को तगड़ा झटका लगा है। इन पर सरकार को बकाया अदा करने का दबाव और अपना ग्राहक आधार बनाने की कवायद के लिए सस्ते टैरिफ़ दरों का निर्धारण करने का दबाव है। दूसरी तरफ 2020 में जनय 5 जी शुरू करने की तैयारी में है।
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