सुप्रीम कोर्ट ने तबलीग़ी ज़मात से जुड़ी मीडिया रिपोर्टिंग पर केंद्र सरकार के रवैए पर उसे फटकारा है। उसने सरकार की ओर से दायर हलफ़नामे पर सवाल उठाया और टीवी चैनलों की ख़बरों के नियमन के लिए कुछ करने की बात भी कही है।
बता दें कि तबलीग़ी ज़मात के दिल्ली स्थित मुख्यालय में हुए सम्मेलन और उसके बाद उसे कोरोना के फैलाव से जुड़ी जो खबरें कुछ टीवी चैनलों और अखबारों में चलाई गई थीं, उस पर ज़मात ने आपत्ति दर्ज की थी। उसने अदालत में याचिका दायर कर कहा था कि मीडिया का एक वर्ग जानबूझ कर और ग़लत तरीके से उसे निशान पर ले रहा है, लिहाज़ा, इस तरह की ख़बरों पर रोक लगनी चाहिए।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सर्वोच्च न्यायाल ने मंगलवार को कहा, 'पहले तो आपने हलफ़नामा दायर ही नहीं किया और जब किया तो दो अहम सवालों पर कुछ नहीं कहा। ऐसे नहीं चल सकता।'
मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे ने सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा,
“
'हम जानना चाहते हैं कि टीवी पर इस तरह की सामग्री से निपटने के मामले में क्या प्रक्रिया है। यदि कोई नियामक प्रक्रिया नहीं है, तो आप उसे तैयार करें। यह काम एनबीएसए के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है।'
एस. ए. बोबडे, मुख्य न्यायाधीश
सुप्रीम कोर्ट की जिस बेंच ने यह सुनवाई की, उसके प्रमुख मुख्य न्यायाधीश बोबडे ही हैं। इसके आलावा इस बेंच में ए. एस. बोपन्ना और वी. रामसुब्रमणिनयन भी हैं।
बता दें कि जमात-ए-इसलामी हिंद ने 6 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कहा था कि प्रचार माध्यमों का एक हिस्सा निज़ामुद्दीन मरकज़ के कार्यक्रम का सांप्रदायिकरण कर रहा है और इस पर रोक लगनी चाहिए।
सरकार का जवाब
केंद्र सरकार ने 7 अगस्त को एक हलफ़नामा दायर कर कहा कि निज़ामुद्दीन के कार्यालय में ज़मात के लोगों के एकत्रित होने, स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला करने और इस तरह की दूसरी ख़बरें 'तथ्यों पर आधारित हैं' और उन पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि ज़मात ने किसी मीडिया घराने का नाम नहीं लिया है, किसी रिपोर्ट के बारे में साफ नहीं कहा गया है।
केंद्र सरकार ने हलफ़नामे में यह भी कहा कि जमात ने बग़ैर ठोस जानकारी के यह मान लिया कि पूरा मीडिया उसके ख़िलाफ़ है और मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैला रहा है।
सरकार का रवैया
बता दें कि सिर्फ एक दिन पहले यानी सोमवार को प्रेस दिवस के मौके पर सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने टीवी चैनलों के लिए आचार संहिता और रेगुलेशन की बात कही थी।
केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने प्रेस दिवस के मौके पर एक वेबिनार में कहा कि हालांकि मीडिया को नियंत्रित करने का कोई इरादा सरकार का नहीं है, पर कुछ नियामक मुद्दों पर विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार टेलीविज़न के लिए नई आचार संहिता पर भी विचार कर रही है।
उन्होंने कहा, 'प्रेस परिषद आत्म-नियमन का एक और औजार है। हालांकि सरकार इसके प्रमुख की नियुक्ति करती है, पर इसमें प्रेस के मालिक, संपादक, पत्रकार, फ़ोटोग्राफ़र और सांसद होते हैं। लोग मांग कर रहे हैं कि प्रेस परिषद को अधिक अधिकार मिलना चाहिए।'
बता दें कि टीवी चैनलों के रेगुलेशन के लिए नैशनल ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी है।
सरकार की नीयत पर संदेह
जावड़ेकर ने टीवी चैनलों पर नकेल लगाने की कोशिशों को यह कह कर उचित ठहराया कि 'कुछ टीवी चैनल इसके सदस्य नहीं हैं, उन पर कोई रोक नहीं है। ऐसा नहीं चल सकता है। इसके लिए आचार संहिता होनी चाहिए, ऐसा लोगों का कहना है।'
इसके पहले एक दूसरे मामले में मंत्रालय ने कहा था कि डिजिटल मीडिया के नियमन की ज़रूरत है। मंत्रालय ने यह भी कहा था कोर्ट मीडिया में हेट स्पीच को देखते हुए गाइडलाइंस जारी करने से पहले एमिकस के तौर पर एक समिति की नियुक्ति कर सकता है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि यदि मीडिया से जुड़े दिशा- निर्देश उसे जारी करने ही हैं तो सबसे पहले वह डिजिटल मीडिया की ओर ध्यान दे, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े दिशा निर्देश तो पहले से ही हैं।
सरकार की मंशा पर क्यों उठते हैं सवालिया निशान? देखें वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का यह वीडियो।
सरकार ने यह भी कहा था कि डिजिटल मीडिया पर ध्यान इसलिए भी देना चाहिए कि उसकी पहुँच ज़्यादा है और उसका प्रभाव भी अधिक है। सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा था, 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उत्तरदायित्वपूर्ण पत्रकारिता के बीच संतुलन बनाने के लिए क़ानूनी प्रावधान और अदालत के फ़ैसले हमेशा ही रहे हैं। पहले के मामलों और फ़ैसलों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का नियम होता है।'
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