सरकार के दोनों हलफ़नामों से साफ़ है कि वह दोषी मीडिया संस्थानों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं करना चाहती। क्या इसलिए कि वे उसकी विचारधारा को आगे बढ़ाते हैं? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने तबलीग़ी ज़मात से जुड़ी मीडिया रिपोर्टिंग पर केंद्र सरकार के रवैए पर उसे फटकारा है। उसने सरकार की ओर से दायर हलफ़नामे पर सवाल उठाया और टीवी चैनलों की ख़बरों के नियमन के लिए कुछ करने की बात भी कही है।
क्या केंद्र सरकार मीडिया पर नकेल कसने की तैयारी कर रही है? क्या वह अब डिजिटल ही नहीं, टेलीविज़न और दूसरे प्रसार माध्यमों के जरिए स्वतंत्र व निष्पक्ष विश्लेषण का हर रास्ता बंद कर देना चाहती है?
क्या सरकार कुछ वेबसाइटों पर होने वाली अपनी आलोचनाओं से बौखलाई हुई है और उनका मुंह बंद करना चाहती है? क्या वह चाहती है कि ऐसे दिशा निर्देश सुप्रीम कोर्ट से जारी हो जाए जिनके बल पर वह उन वेबसाइटों पर एक झटके में शिकंजा कस दे?