क्या केंद्र सरकार मीडिया पर नकेल कसने की तैयारी कर रही है? क्या वह अब डिजिटल ही नहीं, टेलीविज़न और दूसरे प्रसार माध्यमों के जरिए स्वतंत्र व निष्पक्ष विश्लेषण का हर रास्ता बंद कर देना चाहती है? क्या मोदी सरकार चाहती है कि पहले से ही उसके पक्ष में झुकी हुई मीडिया में तथ्यात्मक रिपोर्टिंग की कोई गुंजाइश न बचे?
सरकार की नीयत पर संदेह
केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने प्रेस दिवस के मौके पर एक वेबिनार में जो कुछ कहा, उससे इस तरह की आशंकाओं का जन्म होता है। उन्होंने कहा कि हालांकि मीडिया को नियंत्रित करने का कोई इरादा सरकार का नहीं है, पर कुछ नियामक मुद्दों पर विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार टेलीविज़न के लिए नई आचार संहिता पर भी विचार कर रही है।
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उन्होंने कहा, 'प्रेस परिषद आत्म-नियमन का एक और औजार है। हालांकि सरकार इसके प्रमुख की नियुक्ति करती है, पर इसमें प्रेस के मालिक, संपादक, पत्रकार, फ़ोटोग्राफ़र और सांसद होते हैं। लोग मांग कर रहे हैं कि प्रेस परिषद को अधिक अधिकार मिलना चाहिए।'
बता दें कि टीवी चैनलों के रेगुलेशन के लिए नैशनल ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी है।
जावड़ेकर ने टीवी चैनलों पर नकेल लगाने की कोशिशों को यह कह कर उचित ठहराया कि 'कुछ टीवी चैनल इसके सदस्य नहीं हैं, उन पर कोई रोक नहीं है। ऐसा नहीं चल सकता है। इसके लिए आचार संहिता होनी चाहिए, ऐसा लोगों का कहना है।'
पहले क्या कहा था?
इसके पहले एक दूसरे मामले में मंत्रालय ने कहा था कि डिजिटल मीडिया के नियमन की ज़रूरत है। मंत्रालय ने यह भी कहा था कोर्ट मीडिया में हेट स्पीच को देखते हुए गाइडलाइंस जारी करने से पहले एमिकस के तौर पर एक समिति की नियुक्ति कर सकता है।केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि यदि मीडिया से जुड़े दिशा- निर्देश उसे जारी करने ही हैं तो सबसे पहले वह डिजिटल मीडिया की ओर ध्यान दे, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े दिशा निर्देश तो पहले से ही हैं।
नरेंद्र मोदी सरकार मीडिया पर नियंत्रण कैसे करना चाहती है, बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष।
सरकार ने यह भी कहा था कि डिजिटल मीडिया पर ध्यान इसलिए भी देना चाहिए कि उसकी पहुँच ज़्यादा है और उसका प्रभाव भी अधिक है। सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा था, 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उत्तरदायित्वपूर्ण पत्रकारिता के बीच संतुलन बनाने के लिए क़ानूनी प्रावधान और अदालत के फ़ैसले हमेशा ही रहे हैं। पहले के मामलों और फ़ैसलों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का नियम होता है।'
उस समय सरकार ने कहा था कि डिजिटल मीडिया के रेगुलेशन की ज़रूरत ज़्यादा है क्योंकि टीवी के रेगुलेशन की व्यवस्था तो पहले से ही है। पर अब वही सरकार कह रही है कि टीवी के रेगुलेशन की ज़रूरत है और इस तरह नहीं छोड़ा जा सकता है।
इससे यह साफ़ है कि सरकर की निगाह पूरी मीडिया पर टिकी हुई है, वह डिजिटल हो या टीवी, सरकार को हर हाल में उन पर नियंत्रण चाहिए। वह उसके लिए तरह-तरह के तर्क दे सकती है और बहाना भी बना सकती है। पहले डिजिटल, फिर ओटीटी प्लैटफॉर्म और अब टीवी, सरकार ने अपनी स्थिति साफ कर दी है।
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