सुप्रीम कोर्ट ने राज्यसभा सांसद संजय सिंह को जमानत दे दी। जब अदालत ने पूछा तो ईडी ने कहा कि उसे जमानत देने पर कोई आपत्ति नहीं है। तो सवाल है कि जिस ईडी ने ट्रायल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक में किसी भी क़ीमत पर जमानत होने देने का विरोध किया, उसने आख़िर सुप्रीम कोर्ट में जमानत का विरोध क्यों नहीं किया? क्या उसका दावा इतना मज़बूत था? या फिर कुछ और वजह थी?
इस सवाल का जवाब सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से पहले सुनवाई के दौरान दी गई दलीलों में मिल सकता है। तथ्यों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने संजय सिंह के पक्ष में दिनेश अरोड़ा द्वारा दिए गए 9 बयानों के साथ-साथ किसी भी पैसे की वसूली न होने के दावे को ध्यान में रखा। बेंच में शामिल जस्टिस संजीव खन्ना ने टिप्पणी की, 'कुछ भी बरामद नहीं हुआ है, कोई निशान नहीं है।' इसके बाद ईडी के वकील को निर्देश प्राप्त करने के लिए कहा गया कि क्या संजय सिंह की और हिरासत की ज़रूरत है?
संजय सिंह के मामले की जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने सुनवाई की। सुबह सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि यदि कोई निर्देश नहीं हैं, तो एएसजी गुण-दोष के आधार पर बहस कर सकते हैं और मामले का निर्णय गुण-दोष के आधार पर किया जाएगा। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार दोपहर 2 बजे जब पीठ दोबारा बैठी तो एएसजी एसवी राजू ने कहा कि गुण-दोष पर जाए बिना वह जमानत मामले में कुछ तथ्यों पर रियायत देंगे। ईडी ने और हिरासत नहीं मांगी। ऐसा होने के पीछे बड़ी वजह है।
दरअसल, कोर्ट ने पूछा था कि छह महीने से जेल में बंद संजय सिंह को आगे भी जेल में क्यों रखना चाहिए? कोर्ट ने कहा कि अगर आप जमानत का विरोध करेंगे तो हमें पीएमएलए की धारा के तहत उनकी जमानत पर विचार करना होगा। अदालत का यही वह तर्क है जिससे ईडी ने अपना रुख बदलना बेहतर समझा। यदि ईडी ने ऐसा नहीं किया होता तो सुप्रीम कोर्ट पीएमएलए की धारा 45 में जमानत दे सकता था। और ऐसा करने का मतलब होता कि कोर्ट कहता कि संजय सिंह के खिलाफ प्रथम दृष्टया आरोप साबित नहीं होता है और इसके बाद शराब नीति केस कमजोर पड़ जाता। और शराब नीति केस कमजोर पड़ते ही अरविंद केजरीवाल से लेकर मनीष सिसोदिया तक के मामले पर बड़ा असर पड़ता।
मंगलवार को सुनवाई के दौरान सिंघवी ने इस बात पर जोर दिया कि संजय सिंह के ख़िलाफ़ ईडी का पूरा मामला सरकारी गवाह बने दिनेश अरोड़ा के बयान पर आधारित है। उन्होंने कहा कि अरोड़ा ने वास्तव में संजय सिंह का नाम लेने से पहले दोषमुक्ति संबंधी 9 बयान दिए थे।
यह दलील दी गई कि अरोड़ा को ईडी की अनापत्ति पर जमानत दी गई थी, जबकि संबंधित अदालत ने टिप्पणी की थी कि ईडी 'स्मार्ट बन' रही है।
सिंघवी ने आरोप लगाया कि इस अनापत्ति का इस्तेमाल बाद में अरोड़ा द्वारा संजय सिंह का नाम लेते हुए दिए गए धारा 50 के बयान को पाने के लिए किया गया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि संजय सिंह द्वारा संवाददाता सम्मेलन आयोजित करने के बाद ईडी ने प्रतिशोध की कार्रवाई शुरू की और उसके तुरंत बाद एजेंसी के अधिकारी उनके घर आए।
सिंघवी ने इस बात पर भी सवाल उठाया कि आख़िर ईडी ने अरोड़ा द्वारा दिए गए दोषमुक्त करने वाले बयानों को अविश्वसनीय दस्तावेज क्यों माने? उन्होंने यह भी कहा कि आख़िर उन बयानों को संजय सिंह देख या पा क्यों नहीं सकते हैं। उन्होंने इसे न्याय का मखौल बताते हुए न्यायालय से इस प्रथा को रोकने का अनुरोध किया।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार सिंघवी ने आगे आरोप लगाया कि ईडी दिनेश अरोड़ा को जमानत दिलाने की कोशिश कर रहा था और इसे उस तरह उजागर होने भी देना नहीं चाहती थी। उन्होंने कहा, 'दिनेश अरोड़ा को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया, जिसके बाद उन्होंने पहली बार आरोप लगाया। इसके अलावा, अविश्वसनीय दस्तावेज़ हैं, न्याय का एक और मजाक... क्या अभियोजन पक्ष के लिए इस बयान को अविश्वसनीय रखना उचित है? मैं इसे देख या प्राप्त नहीं कर सकता हूँ। दिनेश अरोड़ा उनके स्टार गवाह हैं, वे उन्हें क्षमा आदि देते हैं।' उन्होंने कहा कि इस तरह भरोसा करने की इस प्रथा को अदालत द्वारा बंद किया जाना चाहिए।
सुनवाई दौरान बेंच ने पूछा, 'यदि आप पीएमएलए को एक अलग अपराध मानते हैं... मान लीजिए कि कोई रिश्वत लेता है, तो क्या हम पीएमएलए अधिनियम के संदर्भ में यह मांग कर सकते हैं कि आपराधिक कार्यवाही शुरू करने से पहले रिश्वत की राशि को भी कुर्की का विषय बनाया जाए?'
पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि पीएमएलए काले धन को जब्त करने के लिए है और वकीलों से यह जाँच करने के लिए कहा कि क्या यदि कोई व्यक्ति रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा जाता है तो पीएमएलए लगेगा।
बता दें कि संजय सिंह को ईडी ने 4 अक्टूबर, 2023 को दिल्ली में उनके आवास पर तलाशी के बाद गिरफ्तार किया था। केंद्रीय एजेंसी का आरोप है कि कारोबारी दिनेश अरोड़ा ने संजय सिंह के घर दो बार में 2 करोड़ रुपये पहुंचाए थे। संजय सिंह की गिरफ्तारी अरोड़ा द्वारा लगाए गए आरोपों के बाद हुई। बाद में अरोड़ा ईडी और सीबीआई दोनों मामलों में सरकारी गवाह बन गए। ईडी का दावा था कि उसके पास संजय सिंह से पूछताछ के लिए डिजिटल सबूत हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस साल फरवरी में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इससे पहले पिछले साल अक्टूबर में मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तारी और रिमांड को चुनौती देने वाली सिंह की याचिका खारिज कर दी गई थी।
संजय सिंह को जमानत का मामला जब सुप्रीम कोर्ट में आया तो ईडी ने इसको चुनौती नहीं दी। इसने कहा कि विशेष परिस्थितियों में जमानत दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ किया कि दी गई रियायत को मिसाल नहीं माना जाएगा।
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