अडानी मामला अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में है। आर्थिक मामलों की दुनियाभर में प्रतिष्ठित मैगजीन द इकोनॉमिस्ट ने अडानी मामले पर कवर स्टोरी छापी है। द इकोनॉमिस्ट जैसी पत्रिका में कवर स्टोरी तभी छपती है जब मामला बेहद संगीन होता है। हालांकि वॉशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉल स्ट्रीट जनरल ने भी अडानी मामले पर विस्तार से कई रिपोर्ट छापी हैं लेकिन द इकोनॉमिस्ट में छपने पर तमाम आर्थिक विशेषज्ञों की नजर इस पर जाती है और पूरी दुनिया में भारत के आर्थिक प्रबंधन को लेकर एक राय कायम की जाती है।
द पैराबल ऑफ अडानी शीर्षक से प्रकाशित इस स्टोरी को भारतीय पूंजीवाद के लिए एक टेस्ट बताया गया है। यानी अगर अडानी समूह डूबा तो भारतीय पूंजीवाद की बड़ी विफलता की तस्वीर सामने आ सकती है। द इकोनॉमिस्ट में ऐसा कोई तथ्य नहीं है जो भारतीय मीडिया के एक हिस्से और खासकर सत्य हिन्दी जैसी साइटों और चैनलों ने न बताया हो। लेकिन देश की संसद में जिस तरह से मोदी समूह का बचाव केंद्र सरकार ने किया वो अप्रत्याशित नहीं था। कांग्रेस नेता पिछले छह महीनों से अडानी को लेकर आरोप लगा रहे थे। फिर उन्होंने संसद में भी सरकार पर चोट की लेकिन सरकार जागी नहीं, बल्कि उसने विपक्ष के तमाम सवालों को ही खारिज कर दिया।
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मोदी के कार्यकाल ने भारत की अदालतों और पुलिस की आजादी को कमजोर कर दिया है। मीडिया कायर है। भारत की समृद्धि के लिए इसके बुनियादी ढांचे की तरह इसके संस्थानों की मजबूती भी जरूरी है। भारतीयों को बिजली और सड़कों से फायदा होगा लेकिन उन्हें स्वच्छ प्रशासन और एक समान अवसर की भी जरूरत है।
- द इकोनॉमिस्ट, 9 फरवरी 2023
द इकोनॉमिस्ट ने लिखा है कि जितना बड़ा कारोबारी होगा, उतना ज्यादा स्टेक दांव पर होगा। भारत की सबसे बड़ी 500 गैर वित्तीय फर्मों के मुकाबले अकेले अडानी ने ही 7 फीसदी का पूंजी निवेश कर रखा है। लेकिन क्या अब उस निवेश को संघर्ष नहीं करना पड़ेगा, क्या वो अधूरे नहीं रह जाएंगे। प्रधानमंत्री मोदी अभी तक अडानी के खतरों पर चुप हैं। उनके मंत्री भरोसा दे रहे हैं कि भारत का मूलभूत आर्थिक ढांचा बहुत मजबूत है। लेकिन अगर भारत इसी तरह तरक्की करता रहा तो उसे विदेश से बहुत ज्यादा पैसे की जरूरत होगी जो निवेश के रूप में ही आ सकता है। लेकिन जिन देशों में गवर्नेंस बेहतर या अच्छा नहीं है, वहां विदेशी कंपनियां जाने में हिचकती हैं या चिंतित रहती है।
द इकोनॉमिस्ट ने लिखा है कि जब न्यूयॉर्क की एक छोटी सी फर्म (हिंडनबर्ग रिसर्च) अडानी समूह से तीखे सवाल कर सकती है तो भारतीय रेगुलेटर (सेबी, आरबीआई) क्यों नहीं सवाल कर सकते। भारतीय रेगुलेटर अडानी की जो भी जांच कर रहे हैं, उन्हें उसके बारे में बताना चाहिए। उस जांच का स्टेटस क्या है, यह बताना चाहिए। उसे मॉरीशस रूट की उन वित्तीय संस्थाओं से पूछना चाहिए, जिन्होंने अडानी ग्रुप की कंपनियों में पैसा लगा रखा है। भारतीय स्टॉक मार्केट के स्कैंडल वैसे भी मॉरीशस रूट की कंपनियों की वजह से सामने आते रहते हैं।
द इकोनॉमिस्ट ने लिखा है कि मोदी के कार्यकाल में बहुत सारी तरह से चेक एंड बैलेंस सिस्टम में गिरावट आई है। यानी कहीं गड़बड़ी होने पर सरकार की संस्थाएं उसे फौरन ठीक करती हैं या कार्रवाई करती हैं। मोदी सरकार ने भारतीय अदालतों और पुलिस की आजादी को ताक पर रख दिया। भारतीय मीडिया जो पहले बहुत सक्रियता से तमाम मामलों की जांच करता था या नजर रखता था, अब नपुंसक बन गया है। कुछ अखबारों ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट छापी लेकिन अडानी समूह से कड़े सवाल नहीं कर पाए। अडानी ने खुद उस चैनल एनडीटीवी को खरीद लिया जो कभी सरकार का आलोचक था।
क्या है हिंडनबर्ग रिपोर्ट
अमेरिका की जानी-मानी निवेश शोध फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडानी समूह पर स्टॉक बाज़ार में हेरफेर करने का एक सनसनीखेज आरोप लगाया था। इसने कहा कि अडानी समूह एक स्टॉक में खुलेआम हेरफेर करने और अकाउंट की धोखाधड़ी में शामिल था। हिंडनबर्ग अमेरिका आधारित निवेश रिसर्च फर्म है जो एक्टिविस्ट शॉर्ट-सेलिंग में एकस्पर्ट है। रिसर्च फर्म ने कहा कि उसकी दो साल की जांच में पता चला है कि “अडानी समूह दशकों से 17.8 ट्रिलियन (218 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के स्टॉक के हेरफेर और अकाउंटिंग की धोखाधड़ी में शामिल था।
रिसर्च फर्म की रिपोर्ट के मुताबिक अदानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी ने पिछले तीन सालों के दौरान लगभग 120 अरब अमेरिकी डॉलर का लाभ अर्जित किया है जिसमें से अडानी समूह की सात प्रमुख सूचीबद्ध कंपनियों के स्टॉक मूल्य की बढ़ोत्तरी से 100 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक कमाये। जिसमें पिछले तीन साल की अवधि में 819 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हुई।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट कैरेबियाई देशों, मॉरीशस और संयुक्त अरब अमीरात तक फैले टैक्स हैवन देशों में अडानी परिवार के नियंत्रण वाली मुखौटा कंपनियों के नेक्सस का विवरण है। जिसके बारे में दावा किया गया है कि इनका इस्तेमाल भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और करदाताओं की चोरी को सुविधाजनक बनाने के लिए किया जाता है। जबकि धन की हेराफेरी समूह की सूचीबद्ध कंपनियों से की गई थी।
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