तीन कृषि क़ानूनों को सरकार ने वापस ले लिया है तो क्या किसान आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों को सरकार मुआवजा देगी? इस सवाल का जवाब मोदी सरकार ने संसद में दिया है। उसका तर्क पढ़िए। सरकार ने कहा कि उसके पास दिल्ली सीमा पर कैंप कर रहे किसानों की मौत का आँकड़ा ही नहीं है।
विपक्ष के एक सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय मंत्री तोमर ने कहा, 'कृषि मंत्रालय का इस मामले में कोई रिकॉर्ड नहीं है और इसलिए इसका सवाल ही नहीं उठता।'
किसान नेताओं का कहना है कि नवंबर 2020 से लेकर अब तक सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर विवादास्पद कृषि क़ानूनों का विरोध करते हुए 700 से अधिक किसान मारे गए हैं। मौतें मुख्य रूप से ख़राब मौसम, ख़राब परिस्थितियों से जुड़ी बीमारी और आत्महत्या के कारण हुईं।
किसानों को लेकर दिए गए इस बयान पर विपक्ष के हमले की संभावना है। किसानों के मुद्दे पर संसद में लगातार गतिरोध बना हुआ है। किसान भी प्रदर्शन स्थल से हटने को तैयार नहीं हैं। संयुक्त किसान मोर्चा यानी एसकेएम के साथ, प्रदर्शनकारी किसान अपनी मांगों पर अडिग हैं। वे चाहते हैं कि सरकार किसान नेताओं के साथ बातचीत करे और एमएसपी सहित सभी लंबित मुद्दों का समाधान करे।
लोकसभा में तीनों कृषि क़ानून को निरस्त करने वाला विधेयक पारित होने के बावजूद एसकेएम ने कहा है कि किसानों का विरोध तब तक जारी रहेगा जब तक कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी के लिए क़ानूनी गारंटी प्रदान करने की उनकी मांग को स्वीकार नहीं करती।
एमएसपी के अलावा एसकेएम ने प्रदर्शन कर रहे किसानों के ख़िलाफ़ दर्ज मुक़दमों को वापस लेने और प्रदर्शन के दौरान मारे गए किसानों के परिजनों को मुआवजा देने की भी मांग की है।
बता दें कि 19 नवंबर को मोदी सरकार ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए कृषि क़ानूनों को रद्द करने की घोषणा की थी। मोदी ने कहा कि उनकी सरकार ने किसानों की भलाई के लिए ये क़ानून बनाए थे और इनकी मांग कई सालों से की जा रही थी। उन्होंने कहा था कि लेकिन किसानों का एक वर्ग लगातार इसका विरोध कर रहा था, इसे देखते हुए ही सरकार इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में इन कृषि क़ानूनों को रद्द करने की प्रक्रिया को पूरा कर देगी।
प्रधानमंत्री ने आंदोलन कर रहे किसानों से आह्वान किया था कि वे अब अपने घर लौट जाएं और एक नई शुरुआत करें। लेकिन किसान अभी भी वहीं डटे हैं।
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