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जेडीयू, आरएलडी के बाद चिराग पासवान योगी के कांवड़ यात्रा नियमों के विरोध में

एनडीए के सहयोगी दल पहली बार बीजेपी के असहमत दिख रहे हैं। जेडीयू, आरएलडी के बाद अब चिराग पासवान ने यूपी में योगी के कांवड़ यात्रा नियमों का विरोध किया है। उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा मार्ग पर खाने-पीने का सामान बेचने वाले होटलों, ढाबों, रेहड़ी-पटरी वालों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने का आदेश दिया गया है और इस पर ही विवाद हो रहा है। इसी को लेकर एनडीए के सहयोगी अब असहज महसूस कर रहे हैं। तो क्या सहयोगी दलों पर निर्भर केंद्र सरकार के मुखिया मोदी ऐसा चाहेंगे? यदि नहीं तो योगी आदित्यनाथ सहयोगी दलों की आपत्ति के बाद भी इस आदेश पर और मज़बूत क्यों नज़र आ रहे हैं?

इन सवालों के जवाब बाद में, पहले यह जान लें कि आख़िर एनडीए के सहयोगी दलों ने क्या प्रतिक्रिया दी है। केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान उन भाजपा सहयोगियों की सूची में शामिल हो गए हैं जिन्होंने मुजफ्फरनगर में पुलिस की उस सलाह पर आपत्ति जताई है जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर भोजनालयों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के लिए कहा गया है। पीटीआई से चिराग पासवान ने कहा कि वह पुलिस की सलाह या ऐसी किसी भी चीज़ का समर्थन नहीं करते हैं जो 'जाति या धर्म के नाम पर विभाजन' पैदा करती हो।

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यह पूछे जाने पर कि क्या वह इस सलाह का समर्थन करते हैं, चिराग ने पीटीआई संपादकों के साथ बातचीत में कहा, 'नहीं, मैं इसका समर्थन नहीं करता।' उन्होंने कहा कि उनका मानना ​​है कि समाज में दो वर्ग हैं - अमीर और गरीब - और अलग-अलग जाति और धर्म के लोग दोनों ही श्रेणियों में आते हैं। 

चिराग पासवान ने कहा, 'हमें इन दो वर्गों के लोगों के बीच की खाई को पाटने की ज़रूरत है। गरीबों के लिए काम करना हर सरकार की जिम्मेदारी है, जिसमें समाज के सभी वर्ग जैसे दलित, पिछड़े, ऊंची जाति और मुसलमान भी शामिल हैं। सभी हैं। हमें उनके लिए काम करने की जरूरत है।' उन्होंने कहा कि जब भी जाति या धर्म के नाम पर इस तरह का विभाजन होता है, तो मैं इसका समर्थन या प्रोत्साहन बिल्कुल नहीं करता। 

भाजपा का एक प्रमुख सहयोगी जेडीयू ने पहले ही उत्तर प्रदेश सरकार से मुजफ्फरनगर आदेश की समीक्षा करने का आग्रह कर दिया है। जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि बिहार में यूपी से भी बड़ी कांवड़ यात्रा होती है। केसी त्यागी ने एएनआई से कहा, "वहां ऐसा कोई आदेश लागू नहीं है। जो प्रतिबंध लगाए गए हैं, वे प्रधानमंत्री के 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' के नारे का उल्लंघन हैं। यह आदेश न तो बिहार में लागू है और न ही राजस्थान और झारखंड में। अच्छा होगा कि इसकी समीक्षा की जाए। इस आदेश को वापस लिया जाना चाहिए।"
भाजपा की सहयोगी पार्टी जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल यानी आरएलडी ने कहा कि विक्रेताओं से नाम प्लेट दिखाने के लिए कहने का फरमान बिल्कुल गलत है।

आरएलडी के राष्ट्रीय महासचिव त्रिलोक त्यागी ने कहा, "आप किसी को सड़क पर ठेले पर अपना नाम क्यों लिखवाते हैं? उन्हें काम करने का अधिकार है... यह परंपरा बिल्कुल गलत है। यह ग्राहक पर निर्भर करता है, वे जहां से चाहें खरीददारी कर सकते हैं... मैं राजनेताओं से पूछना चाहता हूं- क्या शराब पीने से आप धार्मिक रूप से भ्रष्ट नहीं हो जाते? क्या यह केवल मांस खाने से होता है? तो, शराब पर प्रतिबंध क्यों नहीं है? वे शराब के बारे में क्यों नहीं बोलते? क्योंकि जो लोग व्यापार करते हैं, उनका गठजोड़ है, यह शक्तिशाली लोगों का खेल है। ये छोटी दुकानें गरीबों द्वारा लगाई जाती हैं। इसलिए, आप उन पर उंगली उठा रहे हैं। मैं मांग करूंगा कि शराब पर भी प्रतिबंध लगाया जाए।" 

वैसे, लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बहुमत नहीं मिलने के बाद से ही प्रधानमंत्री मोदी एनडीए और एनडीए सहयोगियों को काफी तवज्जो दे रहे हैं। जब चुनाव परिणाम आ रहे थे तभी पीएम ने एनडीए की जीत बताया था। एनडीए की बैठक में उन्होंने कहा था कि यह चुनाव नतीजा एनडीए के लिए महाविजय है। उन्होंने कहा था कि अगर गठबंधन के इतिहास में आँकड़े देखें तो ये सबसे मजबूत गठबंधन सरकार है। 

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उन्होंने कहा था, '...सरकार चलाने के लिए बहुमत आवश्यक है। लोकतंत्र का वही एक सिद्धांत है। लेकिन देश चलाने के लिए सर्वमत बहुत जरूरी होता है। मैं देश की जनता को भरोसा दिलाता हूं कि उन्होंने हमें सरकार चलाने के लिए जो बहुमत दिया है, हमारा प्रयास होगा कि हम आम सहमति की दिशा में प्रयास करेंगे और देश को आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। एनडीए ने लगभग 3 दशक पूरे कर लिए हैं, यह कोई साधारण बात नहीं है। मैं कह सकता हूं कि यह सबसे सफल गठबंधन है।'

जहाँ प्रधानमंत्री मोदी गठबंधन सहयोगियों को इतनी तवज्जो दे रहे हैं, वहीं यूपी में योगी सरकार के फरमान से ये सहयोगी नाराज़ हैं। तो क्या योगी आदित्यनाथ अपने इस आदेश से पीछे हटेंगे या सहयोगियों की नाराज़गी के बावजूद यह जारी रहेगा?

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क़मर वहीद नक़वी
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