हरियाणा में विधानसभा चुनाव से ढाई साल पहले कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश कांग्रेस की नई कमेटी का गठन किया है। प्रदेश अध्यक्ष के पद पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी उदय भान को नियुक्त किया गया है। हुड्डा काफी दिनों से प्रदेश संगठन में बदलाव के लिए जोर लगा रहे थे और आखिरकार कांग्रेस हाईकमान को उनकी बात माननी ही पड़ी।
हरियाणा कांग्रेस में अब हुड्डा का एकछत्र राज हो गया है। क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष उनकी पसंद का है और नेता प्रतिपक्ष के पद पर वह खुद विराजमान हैं।
लेकिन हुड्डा और नए प्रदेश अध्यक्ष के सामने जल्द होने वाले निकाय चुनाव, 2024 के लोकसभा चुनाव और उसके 5 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव एक बड़ी चुनौती हैं।
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2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हरियाणा में 15 सीटें मिली थी जबकि 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 30 हो गया था। जबकि विधानसभा चुनाव के दौरान ही प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर ने पार्टी छोड़ दी थी और कांग्रेस का खुलकर विरोध किया था।
मजबूत चुनावी फील्डिंग
भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा की जाट बिरादरी से आते हैं जो राज्य की राजनीति में ताकतवर है। हरियाणा के जातीय समीकरणों की बात करें तो प्रदेश में 27 फ़ीसद जाट और लगभग 20 फीसद दलित हैं। कांग्रेस ने इस लिहाज से जातीय समीकरण तो साध लिया है साथ ही चार कार्यकारी अध्यक्ष भी हरियाणा की ताकतवर जातियों से बना कर मजबूत चुनावी फील्डिंग लगाई है।
चार कार्यकारी अध्यक्षों में से ब्राह्मण, जाट, गुर्जर और वैश्य समुदाय के नेताओं को पार्टी ने जिम्मेदारी दी है।
हालांकि पिछले कुछ साल सालों में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सियासी ताकत घटी है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा 2019 में लोकसभा का चुनाव हार गए थे और वह भी कोर जाट बेल्ट की सीटों सोनीपत और रोहतक से। ऐसे में जाट बिरादरी का झुकाव बीजेपी और जेजेपी के साथ भी दिखाई देता है।
दुष्यंत चौटाला
उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी युवाओं के बीच एक युवा चेहरे और जाट बिरादरी के नए नेता बनकर उभरे हैं। हालांकि किसान आंदोलन के कारण बड़ी संख्या में जाट और किसान मतदाता बीजेपी और जेजेपी से नाराज हुए लेकिन ऐसा हो सकता है कि आने वाले ढाई साल में बीजेपी और जेजेपी जाट और किसान मतदाताओं की नाराजगी को कम करने में कामयाबी हासिल कर लें।
इसके साथ ही इंडियन नेशनल लोकदल यानी इनेलो भी हरियाणा में अपने ख़त्म हो चुके जनाधार को वापस हासिल करने में जुटी है।
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हरियाणा कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के एकछत्र राज के चलते ही कई नेता कांग्रेस छोड़कर चले गए थे। ऐसे नेताओं में राव इंद्रजीत सिंह, चौधरी बिरेंद्र सिंह, अवतार सिंह भड़ाना जैसे बड़े नाम भी शामिल हैं।
कांग्रेस में गुटबाजी
हालांकि कांग्रेस हाईकमान ने हरियाणा जीतने के लिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा को फ्री हैंड दे दिया है लेकिन अभी भी प्रदेश कांग्रेस में कुमारी सैलजा, किरण चौधरी, रणदीप सिंह सुरजेवाला और कुलदीप बिश्नोई के गुट मौजूद हैं। हुड्डा का गुट इन सब पर कहीं भारी पड़ता है लेकिन फिर भी कांग्रेस हाईकमान को गुटबाजी खत्म करने के लिए नेताओं की नकेल जरूर कसनी होगी।
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जाट बनाम गैर जाट
दूसरी ओर, बीजेपी की कमान गैर जाट नेता मनोहर लाल खट्टर के हाथों में है और कहा जाता है कि हरियाणा की जाट बिरादरी इसे लेकर नाराज दिखती है कि इस सूबे में बीजेपी ने उनकी जाति के नेता को मुख्यमंत्री नहीं बनाया। बीजेपी ने ऐसा करके हरियाणा की 73 फ़ीसद आबादी और विशेष रूप से पंजाबी और सिख मतदाताओं के वोट हासिल करने की कोशिश की है और उसे इसमें कामयाबी भी मिली है। वरना 2009 के विधानसभा चुनाव में 4 सीटें जीतने वाली पार्टी का हरियाणा की राजनीति में इतना आगे आ पाना मुश्किल था।
हालांकि बीजेपी ने दुष्यंत चौटाला को डिप्टी सीएम बना कर जाट मतदाताओं की नाराजगी को दूर करने की कोशिश की थी।
हुड्डा और उदय भान को कांग्रेस को हरियाणा में जीत दिलानी ही होगी। क्योंकि अब प्रदेश कांग्रेस में हुड्डा का विरोध करने की ताकत किसी नेता में नहीं है इसलिए पार्टी के अच्छे व खराब प्रदर्शन के लिए हुड्डा ही पूरी तरह जिम्मेदार होंगे।
कांग्रेस को राज्य में अगर सरकार बनानी है तो उसे जाट-दलित समीकरण से आगे भी तमाम जातियों को साथ लेना होगा और इसकी भी जिम्मेदारी भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उदय भान की ही है।
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आम आदमी पार्टी की चुनौती
यहां कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती आम आदमी पार्टी भी हो सकती है क्योंकि हरियाणा से लगते दोनों सूबों यानी पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है।
आम आदमी पार्टी इस बार हरियाणा के चुनाव के लिए अभी से जोर-शोर से तैयारी में जुटी है और हाल ही में उसने कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को भी पार्टी में शामिल किया है।
आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल मूल रूप से हरियाणा के ही हैं और इसका भी पार्टी थोड़ा बहुत फायदा लेना चाहती है।
बहरहाल, हुड्डा खेमे ने पार्टी की कमान तो अपने हाथ में ली है लेकिन उसके सामने पार्टी को जीत दिलाने के रूप में एक बड़ी चुनौती है।
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