खट्टर सरकार पर संकट के कयास इसलिए लगाए जा रहे हैं क्योंकि किसान आंदोलन के बाद हाल में घटनाएँ ही कुछ ऐसी घटी हैं।
अमित शाह की खट्टर और दुष्यंत चौटाला के साथ बैठक हुई। दुष्यंत चौटाला भी अपने दल के विधायकों से मिले। खट्टर ने भी मंगलवार को एकाएक निर्दलीय विधायकों से मुलाक़ात की है। हाल ही में मुख्यमंत्री खट्टर की करनाल में किसान महापंचायत का ज़बरदस्त विरोध हुआ और उनको अपना कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। कांग्रेस बार-बार विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव की माँग को लेकर मोर्चा खोले हुए है। और इस बीच आईएनएलडी के नेता अभय चौटाला ने विधानसभा अध्यक्ष को ख़त लिखकर कहा है कि कृषि क़ानूनों के विरोध में इसे विधानसभा से इस्तीफ़ा माना जाए। इन्हीं वजहों से मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार चौतरफा दबाव में है।
यह दबाव उस बैठक से भी महसूस किया जा सकता है जो क़रीब एक घंटे तक चली। अमित शाह के साथ हुई इस बैठक में खट्टर व चौटाला के अलावा, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश धनकड़, राज्य के शिक्षा मंत्री कँवर पाल गुज्जर, जेजेपी के प्रदेश अध्यक्ष निशान सिंह भी प्रतिनिधिमंडल में शामिल थे।
इस बैठक के बाद दुष्यंत चौटाला के बयान पर पर्यवेक्षकों की नज़र थी। ऐसा इसलिए कि माना जा रहा है कि विधायकों के इधर-उधर छिटकने के डर से ही दुष्यंत चौटाला की मंगलवार को बैठक हुई।
कहा जा रहा है कि किसान आंदोलन के बाद से बीजेपी और दुष्यंत के नेतृत्व वाली जेजेपी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। इसी बीच सोमवार को कांग्रेस नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने जब यह कह दिया कि सत्ताधारी दलों के कई नेता पार्टी छोड़ने को हैं तो चिंताएँ और बढ़ गई थीं।
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अमित शाह की बैठक के बाद दुष्यंत ने कहा, 'हरियाणा सरकार को कोई ख़तरा नहीं है और यह पाँच साल का अपना कार्यकाल पूरा करेगी'। उन्होंने कहा कि उन्होंने किसानों से संबंधित प्रत्येक बिंदु पर चर्चा की और उम्मीद जताई कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक समिति का गठन करने से इस मामले का हल निकल जाएगा।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, जेजेपी के 10 में से 8 विधायकों ने ही दुष्यंत के साथ बैठक में हिस्सा लिया। नरनौंद विधायक राम कुमार गौतम पहले से ही दुष्यंत से नाराज़ हैं और विरोधी सुर अपनाए हुए हैं। गुहला चीका विधायक ईश्वर सिंह ने कहा कि वह किसी काम की वजह से बैठक में शामिल नहीं हो सके।
बता दें कि हरियाणा में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन की सरकार है। 90 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी के 40 विधायक हैं और जेजेपी के 10 विधायक हैं। इसके अलावा निर्दलीय विधायकों की संख्या सात है। कांग्रेस के 31 विधायक हैं। इसके अलावा एक विधायक लोकहित पार्टी के गोपाल कांडा हैं।
कृषि क़ानूनों को लेकर किसान आंदोलन के बाद बीजेपी विधायकों और जेजेपी विधायकों पर भी किसानों का साथ देने का दबाव है। इनके बारे में भी कहा जा रहा है कि उन्हें डर है कि अगले चुनाव में उन्हें वोट नहीं मिलेंगे।
उन्हें यह डर इसलिए भी है क्योंकि किसान आंदोलन ने गठबंधन सरकार के मंत्रियों और विधायकों के लिए गाँवों में सार्वजनिक बैठकें करना मुश्किल कर दिया है। किसान उन्हें काले झंडे दिखा रहे हैं, उनके वाहनों का पीछा कर रहे हैं।
मनोहर लाल खट्टर के सामने विधायकों के विश्वास को बनाए रखने की चुनौती तो है ही, कांग्रेस भी उसके लिए बड़ी चुनौती है। कांग्रेस विधानसभा के बजट सत्र में बीजेपी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने की जिद पर अड़ी है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा बजट सत्र से पहले ही विधानसभा का सत्र बुलाने के लिए 15 जनवरी को राज्यपाल से भी मिलने वाले हैं।
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बीजेपी को डर है कि किसानों के मुद्दे पर जेजेपी के कुछ विधायक बाग़ी हुए तो निर्दलीय विधायक उनके लिए सहारा बन सकते हैं। यही वजह है कि निर्दलीय विधायकों के साथ खट्टर लंच कर रहे हैं।
हालाँकि अमित शाह के साथ बैठक के बाद खट्टर ने कहा, 'हरियाणा किसानों के आंदोलन का केंद्र है, इसलिए हमने राज्य में उस क़ानून और राज्य में क़ानून -व्यवस्था पर चर्चा की। इस सरकार के भविष्य के बारे में अनुमान लगाने का कोई मतलब नहीं है, यह अपना कार्यकाल पूरा करेगी।'
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