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दिल्ली में कार टैक्सी की तर्ज पर चलाई जा रही बाइक टैक्सी फ़िलहाल नहीं चल पाएगी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी है। इसने कहा है कि जब तक दिल्ली सरकार इस पर कोई नीति लेकर नहीं आती है तब तक यह संभव नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला रैपिडो और उबर जैसे कैब एग्रीगेटर्स के लिए झटका है। सुप्रीम कोर्ट ने आज फैसला सुनाया कि जब तक सरकार कोई नीति नहीं बनाती, तब तक दिल्ली में दोपहिया टैक्सी नहीं चल सकतीं। दिल्ली सरकार ने कहा है कि वह 30 जून तक दोपहिया गैर-परिवहन वाहनों को चलाने के लिए एक नीति लेकर आएगी। यानी 30 जून के बाद फिर यह संभव हो सकता है। लेकिन वह भी नीति पर निर्भर करेगा। बहरहाल, बाइक-टैक्सी एग्रीगेटर्स की मांग थी कि जब तक दिल्ली सरकार नीति नहीं बनाती, तब तक उन्हें बिना लाइसेंस ऑपरेट करने दिया जाए।
दरअसल, यह मामला तब सामने आया था जब इस साल की शुरुआत में जारी एक नोटिस में सरकार ने ओला और रैपिडो जैसे एग्रीगेटर्स को चेतावनी दी थी कि वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए दोपहिया वाहनों का उपयोग करना मोटर वाहन अधिनियम, 1988 का उल्लंघन है। इसके लिए नोटिस में यह भी कहा गया था कि इस उल्लंघन के लिए जुर्माना और सजा का प्रावधान है।
नोटिस में कहा गया था कि पहले अपराध पर 5,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है। परिवहन विभाग के नोटिस में कहा गया था कि दूसरी बार अपराध करने पर 10,000 रुपये का जुर्माना और एक साल तक की कैद हो सकती है। चालक तीन महीने के लिए अपना लाइसेंस भी खो सकता है।
इस नोटिस के ख़िलाफ़ रैपिडो और उबर ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इसने तर्क दिया था कि हजारों लोग ऐसी बाइक टैक्सी चलाते हैं और बैन से उनकी आजीविका पर असर पड़ सकता है। इसने यह भी कहा था कि इस मामले में नीति बनने और लाइसेंस मिलने तक इस पर रोक नहीं लगाई जाए।
हाई कोर्ट में दिल्ली सरकार ने दलील दी थी कि दोपहिया वाहनों का इस्तेमाल बिना सही लाइसेंस और परमिट के हो रहा है। उसने कहा था कि ऐसे में बिना नीति बनाए ऐसे वाहनों का इस्तेमाल एग्रीगेटर्स नहीं कर सकते हैं।
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