नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ दिल्ली के शाहीन बाग़ में चल रहे प्रदर्शन को दो महीने का समय पूरा होने वाला है। इस दौरान प्रदर्शनकारियों की ओर से कई बार शिकायत की गई कि सरकार का कोई नुमाइंदा उनसे बात करने के लिये नहीं आया। हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में कहा है कि वह इस मुद्दे पर बात करने के लिये तैयार हैं।
शाहीन बाग़ में बैठे प्रदर्शनकारियों की ओर से अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निमंत्रण भेजा गया है और कहा गया है कि वे उनके साथ आकर वेलेंटाइन डे मनाएं। धरना स्थल पर लगे पोस्टरों में कहा गया है, ‘प्रधानमंत्री मोदी, कृपया शाहीन बाग़ आएं, अपना गिफ़्ट ले जाएं और हमसे बात करें।’
न्यूज़ 18 के मुताबिक़, शाहीन बाग़ में पहले दिन से प्रदर्शन कर रहे सैयद तासीर अहमद ने कहा, ‘चाहे प्रधानमंत्री मोदी हों, गृह मंत्री अमित शाह हों या कोई और, वे आ सकते हैं और हमसे बात कर सकते हैं। अगर वे हमें इस बात का भरोसा दिला देंगे कि जो कुछ भी हो रहा है, वह संविधान के ख़िलाफ़ नहीं है, हम इस धरने को ख़त्म कर देंगे।’
तासीर ने कहा कि सरकार के दावों के मुताबिक़, नागरिकता क़ानून नागरिकता देने वाला है और यह किसी की नागरिकता नहीं छीनता लेकिन कोई भी इस बात को नहीं बता रहा है कि इससे देश को कैसे फ़ायदा होगा। तासीर ने पूछा कि नागरिकता क़ानून से आख़िरकार बेरोज़गारी, ग़रीबी और आर्थिक हालात जैसे अहम मुद्दों पर कैसे मदद मिलेगी।
कई जगहों पर हो रहा प्रदर्शन
दिल्ली में 10 से ज़्यादा अन्य जगहों पर भी नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन चल रहे हैं। इनमें ज़ाकिर नगर, जामिया नगर, खुरेजी ख़ास और कई अन्य इलाक़े शामिल हैं। सीलमपुर और ज़ाफराबाद में भी नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो चुके हैं और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र भी इस क़ानून के विरोध में लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं।
शाहीन बाग़ के प्रदर्शन के कारण एक सड़क बंद है और इस वजह से स्थानीय लोगों को हो रही दिक्क़तों का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुका है। कोर्ट ने पिछली सुनवाई में कहा था कि अनिश्चितकाल के लिये सड़कों को बंद नहीं किया जा सकता। अब इस मामले में 17 फ़रवरी को सुनवाई होगी।
दिल्ली के विधानसभा चुनाव में शाहीन बाग़ के प्रदर्शन को बीजेपी ने मुद्दा बनाया था और उसके सांसदों ने कहा था कि अगर बीजेपी की सरकार बनी तो एक घंटे में शाहीन बाग़ को खाली करा देंगे। लेकिन चुनाव में बीजेपी की बुरी हार हुई है।
पीछे हटना पड़ा सरकार को
नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ हो रहे जोरदार प्रदर्शनों के कारण केंद्र सरकार को एनआरसी और एनपीआर को लेकर अपने पांव पीछे खींचने पड़े हैं। नागरिकता क़ानून के तहत भारत के तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफग़ानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक रूप से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों जिनमें हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोग शामिल हैं, को नागरिकता दी गई है। इस क़ानून का विरोध कर रहे दलों और संगठनों का कहना है कि यह संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ है और धर्म के आधार पर भेदभाव करता है।
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