एक बार फिर अदालत ने महाराष्ट्र पुलिस को खरी-खोटी सुनाई है। पिछले दो-तीन सालों से जिस तरह से अदालत महाराष्ट्र पुलिस पर टिप्पणियां कर रही है, वह साधारण नहीं है और सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस इतनी लापरवाह हो गयी है या राजनीतिक दबाव उसकी जांच प्रक्रिया को पंगु कर रहा है। डॉ. नरेंद्र दाभोलकर-गोविंद पानसरे की हत्या की जांच का मामला हो, भीमा कोरेगांव और उससे उपजे शब्द अर्बन नक्सल का प्रकरण हो, सनातन संस्था के ख़िलाफ़ चल रही जांच हो या महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक का मामला जिसमें उप मुख्यमंत्री अजीत पवार सहित कई और राजनेता आरोपी हैं, इन सभी मामलों में अदालत ने ना सिर्फ जांच एजेंसियों के कामकाज पर उँगली उठाई है, उन्हें फटकार भी लगाई है कि वे मामलों की जांच क्यों नहीं कर रही हैं?