एक बार फिर अदालत ने महाराष्ट्र पुलिस को खरी-खोटी सुनाई है। पिछले दो-तीन सालों से जिस तरह से अदालत महाराष्ट्र पुलिस पर टिप्पणियां कर रही है, वह साधारण नहीं है और सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस इतनी लापरवाह हो गयी है या राजनीतिक दबाव उसकी जांच प्रक्रिया को पंगु कर रहा है। डॉ. नरेंद्र दाभोलकर-गोविंद पानसरे की हत्या की जांच का मामला हो, भीमा कोरेगांव और उससे उपजे शब्द अर्बन नक्सल का प्रकरण हो, सनातन संस्था के ख़िलाफ़ चल रही जांच हो या महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक का मामला जिसमें उप मुख्यमंत्री अजीत पवार सहित कई और राजनेता आरोपी हैं, इन सभी मामलों में अदालत ने ना सिर्फ जांच एजेंसियों के कामकाज पर उँगली उठाई है, उन्हें फटकार भी लगाई है कि वे मामलों की जांच क्यों नहीं कर रही हैं?
गुरुवार को मुंबई उच्च न्यायालय ने एक बार फिर अंधश्रद्धा निर्मूलन संस्था के संस्थापक डॉ. नरेंद्र दाभोलकर और कामरेड गोविंद पानसरे की हत्या की जांच के मामले में गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) की जांच को लेकर तीव्र नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि इन दोनों प्रकरण को क्रमशः सात और पांच साल हो गए हैं लेकिन इन मामलो में मुक़दमे की शुरुआत अब तक नहीं हुई है? कोर्ट ने कहा कि कब तक ऐसा ही चलता रहेगा? आख़िर कब मुक़दमे शुरू होंगे?
अदालत ने सीबीआई और एसआईटी, दोनों की जांच पर असंतोष जताया और कहा कि वे 24 मार्च तक यह स्पष्ट करें कि इस प्रकरण में मुक़दमा कब से शुरू होगा।
अदालत ने कहा कि आप अपनी जांच की वजह से अदालत की कार्य प्रणाली को असफल बनाने की कोशिश नहीं करें। उल्लेखनीय है कि दाभोलकर और पानसरे के परिवार वालों ने इन हत्याकांडों की जांच पर असंतोष जताते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। गुरुवार को इसी याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने ये सख्त टिप्पणियां कीं।
जांच क्यों नहीं आगे बढ़ा रही पुलिस?
लेकिन यह पहली बार नहीं है जब अदालत ने ऐसा कहा है। इस मामले में अदालत ने एक-दो नहीं कई बार पुलिस की जांच प्रक्रिया को आड़े हाथों लिया और इसीलिए यह सवाल गहराता जा रहा है कि आख़िर क्या मजबूरी है कि पुलिस बार-बार अदालत की डांट सुनने के बाद भी जांच को आगे नहीं बढ़ा रही है? उल्लेखनीय है कि अप्रैल 2019 में इस मामले में हाई कोर्ट ने राजनीतिक दलों को सलाह दी थी कि वे, 'विरोध की आवाजों को दबने ना दें'। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था, ‘देश में कोई भी संस्थान सुरक्षित नहीं है, भले ही वह न्यायपालिका ही क्यों न हो। अधिकारी इस जांच को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, दाभोलकर और पानसरे की हत्या की जांच में और देरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।’
दाभोलकर-पानसरे मामले में अदालत ने यह भी अहसास दिलाया था कि किस तरह से कर्नाटक पुलिस इसी प्रकार के गौरी लंकेश हत्याकाण्ड में आरोपियों तक पंहुचकर उन्हें गिरफ्तार कर पूरी साजिश का पटाक्षेप कर चुकी है और महाराष्ट्र पुलिस या सम्बंधित जांच एजेंसियां इस बात को लेकर समय बर्बाद कर रही हैं कि दाभोलकर पर जो गोलियां दागी गई हैं, उन्हें जांच के लिए स्कॉटलैंड यार्ड के पास भेजा जाए या गुजरात। बड़ी बात यह है कि कुछ महीनों बाद जांच एजेंसियां न्यायालय को बताती हैं कि स्कॉटलैंड यार्ड और भारत के बीच इस बात पर कोई करार न होने की वजह से गोलियों की जांच गुजरात में होगी।
अदालत ने जांच एजेंसियों से पूछा था कि क्या अधिकारियों के बीच सामंजस्य की कमी है या फिर अधिकारियों ने अपनी जांच मात्र मोबाइल फ़ोन रिकॉर्ड तक सीमित कर दी है। सबसे गंभीर बात तो यह है कि यह सब तब हो रहा है जब पूरे मामले की जांच कोर्ट की निगरानी में हो रही है।
पिछली सुनवाई में अदालत ने तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को फटकार लगाते हुए कहा था कि राजनीतिक दलों और उनके प्रमुखों को परिपक्वता दिखानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तर्कवादियों नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे की हत्याओं की जांच में कोई बाधा पैदा नहीं हो। अंधश्रद्धा के ख़िलाफ़ अलख जगाने वाले महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक नरेन्द्र दाभोलकर की पुणे में 20 अगस्त, 2013 को उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी जब वह सुबह की सैर के लिए निकले थे। सीपीएम नेता और तर्कवादी पानसरे की 16 फरवरी, 2015 को पश्चिमी महाराष्ट्र में कोल्हापुर स्थित उनके आवास के पास गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी।
इसके अलावा 30 अगस्त, 2015 को एमएम कलबुर्गी की कर्नाटक के धारवाड़ में और 5 सितंबर, 2017 को मशहूर पत्रकार और लेखिका गौरी लंकेश की बेंगलुरू स्थित उनके आवास पर हत्या कर दी गयी थी।
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