सीबीआई के पूर्व निदेशक राकेश अस्थाना की सेवानिवृत्ति से तीन दिन पहले दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को सुनवाई करेगा। पिछले हफ़्ते ही अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच इस मामले में फ़ैसला देगी।
उनकी नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि सेवानिवृत्ति से महज कुछ दिन पहले किसी राज्य के पुलिस प्रमुख पद पर कैसे नियुक्ति दी जा सकती है। वकील एमएल शर्मा ने याचिका में कहा है कि अस्थाना की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के 2018 के आदेश का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि यूपीएससी को, जहाँ तक व्यावहारिक है, केवल उन अधिकारियों पर विचार करना चाहिए जिनके सेवा काल दो साल बचे हैं। इसी आधार पर शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वह प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और गृह मंत्रालय के अधिकारियों के ख़िलाफ़ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए।
जब से राकेश अस्थाना की दिल्ली पुलिस कमिश्नर पद पर नियुक्ति की ख़बर आई है तब से इस पर विवाद हो रहा है। इस विवाद को उस मामले से भी बल मिला जिसमें अस्थाना सेवानिवृत्ति के एक नियम की वजह से सीबीआई निदेशक नहीं बन पाए थे। दो महीने पहले ही प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सीबीआई निदेशक की नियुक्ति वाली समिति के सामने मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने कथित तौर पर सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले का हवाला दिया था। वह फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट ने मार्च, 2019 में दिया था जिसमें कहा गया था कि ऐसा कोई भी अफ़सर जिसके रिटायरमेंट में 6 महीने से कम का वक़्त बचा हो, उसे पुलिस का प्रमुख नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए। इस नियम के ज़िक्र के बाद अस्थाना के साथ ही वाईसी मोदी भी सीबीआई प्रमुख पद की दौड़ से बाहर हो गए थे।
राकेश अस्थाना के दिल्ली पुलिस प्रमुख बनाए जाने का कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने भी विरोध किया है। कांग्रेस ने तो प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कहा था कि आख़िर सरकार को ऐसा क्या डर है कि उसने अस्थाना को दिल्ली पुलिस प्रमुख बनाया? कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने पूछा था कि मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के ख़िलाफ़ अस्थाना के पास आख़िर क्या है?
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने पूछा था, 'राकेश अस्थाना की सीबीआई निदेशक पद के लिए उम्मीदवारी उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख़ के कारण खारिज कर दी गई थी, लेकिन उस क़ानून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्त करते समय लागू नहीं किया है। अस्थाना को उनकी सेवानिवृत्ति से चार दिन पहले नियुक्त करने के लिए सरकार को क्या मजबूर होना पड़ा है?'
दिल्ली पुलिस के कमिश्नर के पद पर राकेश अस्थाना की नियुक्ति का कांग्रेस के बाद आम आदमी पार्टी ने भी विरोध किया है। आम आदमी पार्टी ने पिछले हफ़्ते गुरुवार को विधानसभा में अस्थाना की नियुक्ति के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पास किया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय अस्थाना की नियुक्ति का प्रस्ताव वापस ले।
बता दें कि अस्थाना ने बुधवार को पदभार ग्रहण कर लिया। इससे पहले वह सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक के रूप में कार्य कर रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति यानी एसीसी ने एजीएमयूटी कैडर से बाहर गुजरात कैडर के अस्थाना की दिल्ली पुलिस आयुक्त के तौर पर नियुक्ति को मंजूरी दी। इसके साथ ही समिति ने 31 जुलाई की उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख़ को एक वर्ष की अवधि के लिए आगे बढ़ा दिया है।
राकेश अस्थाना अक्सर विवादों में रहे हैं। सबसे हाल में तो वह तब चर्चा में रहे थे जब वह सीबीआई निदेशक पद की दौड़ से बाहर हो गए थे। इससे पहले वह सीबीआई में विशेष निदेशक भी रह चुके थे।
2019 में एजेंसी के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा को पद से हटाने के बाद उनके विरोधी माने जाने वाले विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। ऐसा इसलिए कि दोनों के बीच तब जंग छिड़ गई थी। दोनों अफ़सरों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।
राकेश अस्थाना को पद से हटाने का फ़ैसला इसलिए ज़्यादा चर्चा में रहा था कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का क़रीबी माना जाता है। गुजरात में उन्होंने नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान वडोदरा के पुलिस आयुक्त जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया था।
बाद में उन्हें सीबीआई में लाया गया था। वे कुछ समय तक इस जाँच एजेंसी के असली प्रमुख माने जाते थे और कहा जाता है कि तमाम बड़े और नीतिगत निर्णय लिया करते थे। बाद में तत्कालीन सीबीआई निदेशक वर्मा और तत्कालीन विशेष निदेशक राकेश अस्थाना में अनबन शुरू हो गई। उसके बाद दोनों ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ शिकायतें कीं और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया। वर्मा द्वारा 15 अक्टूबर 2018 को अस्थाना के ख़िलाफ़ एक एफ़आईआर भी दर्ज करवायी गयी थी। उसमें अस्थाना पर आरोप लगा था कि मोइन क़ुरैशी के मामले में एक संदिग्ध को राहत देने के लिए उन्हें बिचौलियों के माध्यम से 2.95 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था।
सीबीआई निदेशक पद से हटाए जाने के बाद आलोक वर्मा ने मुख्य सतर्कता आयुक्त पर गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था कि तत्कालीन सीवीसी के. वी. चौधरी ने राकेश अस्थाना के मामले में पंच की भूमिका निभाने और सीबीआई के इस आला अफ़सर को बचाने की कोशिश की थी। इस पूरे मामले में सरकार बुरी तरह फँस गई थी।
समझा जाता है कि इस मोर्चे पर फ़जीहत होने के बाद सरकार ने अस्थाना सहित दोनों अफसरों को हटाने का फ़ैसला लिया था। हालाँकि, बाद में अस्थाना को आरोपमुक्त कर दिया गया था और फिर उन्हें अगस्त 2020 में बीएसएफ़ का प्रमुख नियुक्त किया गया था।
अपनी राय बतायें