मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने सोमवार को दिल्ली शराब नीति मामले से जुड़े भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी। इसने इस आधार पर उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया कि मामले में 338 करोड़ रुपये के धन का लेन-देन का मामला अस्थायी रूप से उनसे जुड़ता है। इसके साथ ही इसने आदेश दिया कि ट्रायल 6-8 महीने में पूरी की जाए। इसका मतलब है कि वह अब कम से कम छह महीने जेल में रहेंगे। लेकिन मुक़दमे में ढिलाई होने पर वह जमानत के लिए पहले तीन महीने में भी फिर से आवेदन कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ ने यह फ़ैसला सुनाया। इनकी पीठ ने 17 अक्टूबर को सिसोदिया द्वारा दायर दो अलग-अलग जमानत याचिकाओं पर अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।
अदालत ने कहा, 'हमने तर्कों और कुछ क़ानूनी सवालों का ज़िक्र किया है लेकिन हमने उनमें से अधिकांश का उत्तर नहीं दिया है। विश्लेषण में कुछ ऐसे पहलू हैं जो 338 रुपये करोड़ के हस्तांतरण के संबंध में संदिग्ध हैं। हमने जमानत खारिज कर दी है।' कोर्ट ने कहा है कि हस्तांतरण के संबंध में एक पहलू अस्थायी रूप से जुड़ता है।
हालाँकि, इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष ने आश्वासन दिया है कि मुक़दमा छह से आठ महीने के भीतर समाप्त हो जाएगा। इसने कहा, 'तो तीन महीने के भीतर यदि मुकदमा लापरवाही से या धीमी गति से आगे बढ़ता है तो सिसोदिया जमानत के लिए आवेदन दायर करने का हकदार होंगे।'
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सबसे क़रीबी सहयोगी मनीष सिसोदिया को फ़रवरी में कथित शराब घोटाले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह जेल में हैं। आम आदमी पार्टी तब से कहती रही है कि कथित लेनदेन से मनीष सिसोदिया का कुछ भी संबंध नहीं है, फिर भी उनको जेल में रखा जा रहा है और परेशान किया जा रहा है। पिछली सुनवाई में अदालत ने भी ऐसा ही सवाल किया था।
इसी महीने पाँच अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने ईडी व सीबीआई से सीधे-सीधे सवाल पूछा था कि 'आख़िर मनीष सिसोदिया के ख़िलाफ़ सबूत कहाँ हैं। आपको घटनाओं की श्रृंखला को स्थापित करना होगा। अपराध के घटनाक्रमों की जानकारी कहाँ है?'
पाँच अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि सिसोदिया इस मामले में शामिल नहीं दिख रहे हैं और पूछा था कि उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कैसे आरोपी बनाया गया। तब शीर्ष अदालत ने कहा था, 'ऐसा लगता है कि मनीष सिसोदिया इस मामले में शामिल नहीं हैं। विजय नायर हैं, लेकिन मनीष सिसोदिया नहीं। आपने उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत कैसे लाया? पैसा उनके पास नहीं जा रहा है।'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'आपको एक श्रृंखला स्थापित करनी होगी। पैसे को शराब लॉबी से व्यक्ति तक पहुंचना होगा। हम आपसे सहमत हैं कि श्रृंखला स्थापित करना कठिन है क्योंकि सब कुछ गुप्त रूप से किया जाता है। लेकिन यहीं पर आपकी काबिलिय दिखती है।'
पीठ ने पाँच अक्टूबर को कहा था, 'सबूत कहां है? दिनेश अरोड़ा (व्यवसायी) खुद प्राप्तकर्ता है। सबूत कहां है? क्या दिनेश अरोड़ा के बयान के अलावा कोई और सबूत है? श्रृंखला पूरी तरह से स्थापित नहीं है।'
इसके बाद 17 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से कहा था कि अगर दिल्ली की उत्पाद शुल्क नीति में बदलाव के लिए कथित तौर पर दी गई रिश्वत अपराध का हिस्सा नहीं है, तो सिसोदिया के खिलाफ मनी-लॉन्ड्रिंग का मामला साबित करना मुश्किल होगा। इसने केंद्रीय एजेंसी से कहा था कि वह रिश्वत दिए जाने की धारणा पर नहीं चल सकती और कानून के तहत जो भी सुरक्षा है, उसे दी जानी चाहिए।
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