महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के बाद चुनावी दंगल की जोरदार जंग दिल्ली में लड़ी जानी है। दिल्ली की गद्दी पर काबिज होने के लिए बीजेपी ने पूरा जोर लगाया हुआ है लेकिन सत्ताधारी दल आम आदमी पार्टी (आप) भी जरा सी ढील नहीं देना चाहती। विधानसभा चुनाव में अब ज़्यादा वक़्त नहीं बचा है। राज्य की वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 22 फ़रवरी है और बमुश्किल दो महीने के भीतर नई सरकार का गठन हो जाना है। इससे ठीक पहले दिल्ली के चुनावी मुक़ाबले में दिलचस्प मोड़ आ गया है क्योंकि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर बताया है कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की कंपनी आई-पैक अब दिल्ली में ‘आप’ के लिए काम करेगी।
आख़िर क्यों अहम हैं प्रशांत किशोर?
सबसे पहले आपको बताते हैं कि प्रशांत किशोर (पीके) कौन हैं और आख़िर बीजेपी से लेकर ममता बनर्जी तक उनकी सेवाएं क्यों लेते हैं। प्रशांत किशोर जनता दल (यूनाइटेड) को चुनावी रणनीति बनाने में माहिर माना जाता है। प्रशांत किशोर की कंपनी I-PAC (आई-पैक) चुनाव प्रचार की रणनीति बनाती है। नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए प्रशांत ने गुजरात के चर्चित कार्यक्रम 'वाइब्रैंट गुजरात' के आयोजन में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने बीजेपी की ब्रांडिंग की थी। किशोर को 'चाय पर चर्चा' कार्यक्रम कराने का श्रेय भी दिया जाता है। इसके बाद 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में भी प्रशांत किशोर ने अपना लोहा मनवाया। हाल ही में आई-पैक ने आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस के लिए भी काम किया था और वहाँ इस पार्टी को जोरदार सफ़लता मिली। इसके अलावा प्रशांत किशोर की सेवाएं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी ली हैं।
'आप' के नेताओं का कहना है कि वह दिल्ली में पिछली बार जैसी जीत हासिल करेंगे। पिछले विधानसभा चुनाव में 'आप' को 70 में से 67 सीटों पर जीत मिली थी और इसे भारत के चुनावी इतिहास की सबसे बड़ी जीत में से एक बताया गया था। 'आप' का कहना है कि उसने दिल्ली में बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कों के मामले में बेजोड़ काम किया है और इसका उसे फ़ायदा मिलेगा। 'आप' का यह भी दावा है कि उसने अपने सभी चुनावी वादों को निभाया है और दिल्ली की जनता उसे फिर से चुनेगी। लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि तो फिर आख़िर क्यों पार्टी को पीके की सेवाएं लेने की ज़रूरत पड़ गई?
लोकसभा, नगर निगम की हार बड़ा कारण
2015 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत मिलने के बाद यह माना गया था कि दिल्ली में 'आप' को हराना बेहद मुश्किल होगा। लेकिन 2017 में हुए नगर निगम चुनाव में बीजेपी को दिल्ली के तीनों नगर निगमों में बड़ी जीत मिलने के बाद यह भ्रम टूटा और लोकसभा चुनाव 2019 में तो 'आप' को क़रारी शिकस्त मिली। 'आप' सभी 7 लोकसभा सीटों पर चुनाव हार गई और सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों में पीछे रही। ये दो हार एक बड़ा कारण हो सकती हैं कि केजरीवाल को प्रशांत किशोर की सेवाएं लेनी पड़ी हों।
लोकसभा चुनाव से पहले तो हालात यहां तक पहुंच गए थे कि केजरीवाल को कांग्रेस से गठजोड़ करने के लिए गिड़गिड़ाना पड़ा था। केजरीवाल का कहना था कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और 'आप' अलग-अलग लड़े तो बीजेपी को चुनौती नहीं दे सकते।
हार के बाद शुरू की मेहनत
लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के दिन से ही अरविंद केजरीवाल ने पार्टी संगठन को सक्रिय कर दिया था। उन्होंने पिछले नारे ‘5 साल केजरीवाल’ की जगह इस बार ‘दिल्ली में तो केजरीवाल’ का नारा दिया। चुनाव से ठीक पहले डीटीसी की बसों में महिलाओं को फ़्री सफर का तोहफा दिया और फ्री वाई-फ़ाई भी चालू करवाने की तैयारी है। ऐसा करके निश्चित रूप से केजरीवाल ने बीजेपी पर दबाव बढ़ा दिया है।
इस बीच, दिल्ली में कई लोगों ने सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट करके बताया कि उनके घर का बिजली बल शून्य आया है। अख़बारों में छपी ख़बरों में कहा गया कि दिल्ली में 16 लाख घरों का बिजली बिल शून्य आया है। यह निश्चित रूप से बीजेपी का सिरदर्द बढ़ाने वाला है।
कुछ कर पाएगी कांग्रेस?
जी हां, कांग्रेस की यह हालत दिल्ली में पिछले विधानसभा चुनाव में हुई। हालाँकि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस राज्य में 5 विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाने में सफल रही लेकिन फिर भी यह उम्मीद नहीं है कि वह कोई करिश्मा कर दिखाएगी।
बीजेपी की क्या है तैयारी?
अनधिकृत कॉलोनियों का होगा असर?
चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने का मुद्दा उछाल दिया है। पूरी दिल्ली में इसे लेकर होर्डिंग लगाये गए हैं। दिल्ली की अनधिकृत कॉलोनियों में लाखों वोटर रहते हैं और बीजेपी की नज़र इन वोटरों पर है। बीजेपी का मानना है कि अनधिकृत कॉलोनियों के नियमितीकरण का मुद्दा उसके लिए 'आप' के मुफ़्त बिजली-पानी और बाक़ी मुद्दों की काट है। बीजेपी ने अपने कार्यकर्ताओं से अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले लोगों को इसके बारे में बताने के लिए कहा है।
बीजेपी के अंदर मुख्यमंत्री पद के चेहरे पर स्थिति साफ़ नहीं है। 'आप' उसे लगातार घेरती है कि वह अपना चुनावी चेहरा बताए। लेकिन पार्टी के अंदर नेताओं के बीच इस क़दर घमासान है कि आलाकमान ने इस बार मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं करने की ठान ली है।
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