असम में नागरिकता मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 11 दिसंबर को एक हलफनामा दाखिल कर कहा है कि जनवरी 1966 से मार्च 1971 के बीच असम आए प्रवासियों में से 17,861 प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान की गई, जबकि विदेशी ट्रिब्यूनल आदेश 1964 द्वारा 32,381 व्यक्तियों को इस अवधि में विदेशी घोषित किया गया है।
वहीं, 25 मार्च 1971 के बाद अवैध प्रवासियों की अनुमानित संख्या पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि अवैध प्रवासियों के लिए सटीक डेटा एकत्र करना संभव नहीं है। केंद्र ने कहा है कि अवैध प्रवासियों के गुप्त और चोरी-छिपे होने वाले प्रवेश का पता लगाना कठिन है।
ये सीमा पार से वैध यात्रा दस्तावेजों के बिना गुप्त तरीके से देश में प्रवेश करते हैं। अवैध रूप से देश में रहने वाले विदेशी नागरिकों का पता लगाना उन्हें हिरासत में लेना और निर्वासित करना एक जटिल प्रक्रिया है।
इस हलफनामे में कहा गया है कि 2017 से 2022 के बीच 14,346 विदेशी नागरिकों को देश से निर्वासित किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट बीते 5 दिसंबर से असम में गैरकानूनी शरणार्थियों से जुड़ी नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। धारा 6ए को असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद कानून में पेश किया गया था।
इस सुनवाई की कड़ी में ही गुरुवार 7 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने ये जानकारियां केंद्र सरकार से मांगी है। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की संविधान पीठ कर रही है।
लॉ से जुड़ी खबरे देने वाली वेबसाइट बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक गृह मंत्रालय ने हलफनामे में कहा है कि जनवरी 1966 से मार्च 1971 के बीच असम में प्रवेश करने वाले 17,861 प्रवासियों को भारतीय नागरिकता दी गई। जबकि इसी अवधि के बीच विदेशी न्यायाधिकरण के आदेशों द्वारा 32,381 व्यक्तियों को विदेशी घोषित किया गया था। इसके अलावा, पिछले पांच वर्षों में, ऐसे न्यायाधिकरणों के कामकाज के लिए केंद्र सरकार द्वारा 122 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई थी।
केंद्र ने कहा पश्चिम बंगाल कर रहा असहयोग
द हिंदू की वेबसाइट की एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल सरकार के "असहयोग" के कारण, बांग्लादेश सीमा पर एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजना, बाड़ लगाने का समय पर पूरा होना लंबित था।इसमें कहा गया कि राज्य सरकार द्वारा विभिन्न भूमि अधिग्रहण मुद्दों के कारण परियोजना में देरी हुई। पश्चिम बंगाल सरकार सीमा बाड़ लगाने जैसी राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजनाओं के लिए भी बहुत धीमी, अधिक जटिल प्रत्यक्ष भूमि खरीद नीति का पालन करती है।
यदि पश्चिम बंगाल बाड़ लगाने के लिए भूमि अधिग्रहण और सौंपने में सहयोग करता है, तो केंद्र सरकार बिना किसी देरी के बाड़ लगाने की प्रक्रिया पूरी करेगी।
हलफनामे में कहा गया है। बांग्लादेश सीमा पर 435.504 किमी की संभावित लंबाई में से बाड़ लगाई जानी बाकी है, लगभग 286.35 किमी भूमि अधिग्रहण के कारण लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिसंबर को केंद्र से मांगा था आंकड़ा
लॉ से जुड़ी वेबसाइट लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 7 दिसंबर को केंद्र सरकार से 25 मार्च, 1971 के बाद असम और उत्तर-पूर्वी राज्यों में आने वाले अवैध प्रवासियों से जुड़ा आंकड़ा पेश करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को यह भी निर्देश दिया था कि वह पूर्वोत्तर राज्यों विशेषकर असम में अवैध आप्रवासन से निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी दे।
केंद्र से सीमा पर बाड़ लगाने का काम पूरा करने की अनुमानित समय सीमा के संबंध में भी विवरण प्रस्तुत करने को कहा था।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने पूछा था कि एक जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम में आने वाले कितने व्यक्तियों को नागरिकता अधिनियम की धारा 6 ए के तहत भारतीय नागरिकता मिली है।
इस अवधि के संदर्भ में विदेशी न्यायाधिकरण आदेश 1964 के तहत कितने व्यक्तियों के विदेशी होने का पता चला? यह भी बताने को कहा था। इसके साथ ही 25 मार्च, 1971 के बाद प्रवेश करने वाले व्यक्तियों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि संघ द्वारा निर्धारित विदेशी न्यायाधिकरणों की कुल संख्या, निपटाए गए मामलों की कुल संख्या, आज तक लंबित मामलों की संख्या, मामलों के निपटान के लिए लिया गया औसत समय, गुवाहाटी हाईकोर्ट के समक्ष लंबित मामलों की संख्या क्या है।
25 मार्च 1971 की तिथि इसलिए रखी गई
25 मार्च, 1971 बांग्लादेश मुक्ति संग्राम की शुरुआत की तारीख है। नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के अनुसार, भारतीय मूल के व्यक्ति, जो एक जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच वर्तमान बांग्लादेश से असम राज्य में आए थे, वे भारत की नागरिकता पाने के पात्र हैं।
वहीं जो व्यक्ति 25 मार्च 971 के बाद असम में आए थे वे इसके पात्र नहीं हैं। उन्हें विदेशी के रूप में निर्वासित किया जा सकता है। 25 मार्च 1971 की कट-ऑफ तिथि के संदर्भ में यह निर्धारित करने के लिए कि क्या व्यक्ति अवैध प्रवासी हैं या भारतीय नागरिक हैं, विदेशी न्यायाधिकरण की स्थापना की गई थी।
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