इसरो प्रमुख डॉ एस सोमनाथ ने दावा किया है कि इसरो अब चंद्रमा से उसकी मिट्टी और पत्थरों का सैंपल धरती पर लेकर आयेगा। इसके लिए योजना पर काम हो रहा है।
हालांकि अभी काफी काम करना बाकी है। उन्होंने कहा कि सैंपल रिटर्न मिशन काफी मुश्किल होता है। यह पूरा मिशन ऑटोमैटिकली होगा जिसमें इंसानों की भूमिका कम से कम होगी।
इसरो प्रमुख डॉ एस सोमनाथ ने ये बातें राष्ट्रपति भवन के कल्चरल सेंटर में 'राष्ट्रपति भवन विमर्श श्रृंखला' में लेक्चर दे देने के दौरान कही।
इस मौके पर उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भरोसा दिलाते हुए कहा कि, मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि हम चांद से पत्थर और दूसरे सैंपल लेकर जरूर आएंगे। उन्होंने कहा कि इसरो अपने दम पर यह कामयाबी हासिल करेगा।
इस लेक्चर के दौरान उन्होंने बताया कि यह मिशन कैसे बेहद मुश्किल है। उन्होंने कहा कि अगर आप चांद पर जाते हैं और वहां से कई तरह की रिकवरी करते हुए वापस आते हैं तब आपको उन्नत तकनीकों की आवश्यकता होती है।
इस मिशन के लिए हमें अभी काफी काम करना शेष है। सैंपल रिटर्न मिशन अपनी जटिलताओं के कारण ज्यादा चुनौतिपूर्ण है।
जापान इस मिशन में होगा सहयोगी
वहीं माना जा रहा है कि इस चंद्रयान मिशन -4 का दूसरा नाम लूपेक्स होगा। जापान इस मिशन में भारत के साथ मिलकर काम कर रहा है।
लूपेक्स का पूरा नाम लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन मिशन है। लूपेक्स एक अंतरराष्ट्रीय मिशन है जिसे मुख्य रूप से भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो और जापानी अंतरिक्ष एजेंसी जाक्सा मिलकर कर रहे हैं।
जापान चंद्रयान -3 में भारत की सफलता को देखते हुए उसके साथ काम करने के लिए तैयार है।
जाक्सा चांद पर चलने वाला रोवर बनाएगा जबकि इसरो लैंडर बनाएगी। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी इसा इसमें लगने वाले ऑब्जरवेशन इंस्ट्रूमेंट्स बनाएंगे।
ये उपकरण रोवर के ऊपर लगे होंगे। लूपेक्स मिशन को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड रोवर उतारा जाएगा। माना जा रहा है कि यह मिशन 2026-28 के बीच पूरा हो सकता है।
23 अगस्त को चंद्रयान-3 मिशन पहुंचा था चांद पर
23 अगस्त को शाम 6 बजकर 4 मिनट पर भारत के चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर ने चांद पर पहला कदम रखा। यह उपलब्धि हासिल करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है। इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन के नाम यह उपलब्धि थी। इस मिशन की कामयाबी के साथ ही भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया था। भारत की इस कामयाबी की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है। भारत की यह उपलब्धि इसलिए भी बेहद खास है क्योंकि भारत ने चंद्रमा पर पहुंचने में अन्य देशों के मुकाबले काफी कम खर्च किया है। भारतीय वैज्ञानिकों ने सिर्फ 615 करोड़ रुपए खर्च कर यह कारनामा कर दिखाया था।
हाल के वर्षों में रूस और चीन ने अपने चंद्र अभियानों पर जितना खर्च किया उससे आधे से भी कम खर्च में ही भारत ने चांद पर पहुंच कर दिखा दिया है। भारत सबसे कम खर्च कर चांद पर पहुंचने वाला देश बन गया है। भारत की इस कामयाबी पर दुनिया आश्चर्य से भरी नजरों से भारतीय वैज्ञानिकों को देख रही है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक चांद पर पहुंचने के लिए 3 साल पहले चीन ने अपने 'चांग ई- 4' प्रोजेक्ट पर 1365 करोड़ रुपए खर्च किए थे। जबकि रूस ने अपने लूना -25 प्रोजेक्ट के लिए 1659 करोड़ रुपए खर्च किए थे। इन देशों के के चंद्र अभियानों का खर्च भारत के चंद्रयान-3 के बजट से दोगुना से भी ज्यादा है।ऐसे में पूरी दुनिया की उत्सुकता इस बात में भी है कि भारत के अंतरिक्ष मिशन दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में इतने सस्ते क्यों होते हैं?
इस सवाल का जवाब इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ के. सिवान ने एक इंटरव्यू में दिया था। उन्होंने भारत के अंतरिक्ष मिशन को सस्ता होने की तीन वजह बताई थी। उन्होंने बताया था कि भारत के स्पेस मिशन दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले काफी सस्ते होते हैं। इसका पहला कारण उन्होंने बताया कि भारत ने स्वदेशी पीएसएलवी तैयार किए हैं। यह एक तरह का उपग्रह प्रक्षेपण वाहन होता है, जिसके जरिए स्पेस में सैटेलाइट भेजे जाते हैं। यह भारत खुद बनाता है इसलिए इसकी लागत कम है। उन्होंने इसका दूसरा कारण बताया था कि पिछले कुछ वर्षों से भारत विदेशों से महंगे उपकरण और तकनीक लाने के बजाय स्वदेशी उपकरणों और तकनीक को प्राथमिकता दे रहा है। इसका तीसरा कारण उन्होंने बताया था कि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलने के लिए बूस्टर या शक्तिशाली रॉकेट की जरूरत होती है। इसकी कीमत काफी ज्यादा है। ऐसे में भारत ने इसी गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल करके कम खर्च में चंद्रयान- 3 को चांद पर भेजा है।
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