पिंजड़ा तोड़ कार्यकर्ता नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और स्टूडेंट्स इसलामिक ऑर्गनाइजेशन के आसिफ़ इक़बाल तन्हा को तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया है। दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर ऐसा किया गया है।
सशर्त ज़मानत
दिल्ली हाई कोर्ट ने जमानत इस आधार पर दी है कि ये अपना पासपोर्ट को सरेंडर करेंगे और ऐसी किसी भी गैरकानूनी गतिविधि में शामिल नहीं होंगे जिससे जांच किसी भी तरह से प्रभावित होती हो।रिहाई के बाद नताशा नरवाल ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि उन्हें पूरे देश का साथ मिला, समाज के हर तबके का साथ मिला और इस कारण वे इस लड़ाई को यहां तक ले आ पाई हैं। उन्होंने कहा कि देश के तमाम लोगों के साथ मिल कर वे यह लड़ाई लड़ती रहेंगी।
क्या कहा देवांगना ने?
देवांगना कलिता ने पिंजड़ा तोड़ आन्दोलन की चर्चा करते हुए कहा कि स्त्रियाँ जब कभी मुँह खोलती हैं और समाज के अन्याय के ख़िलाफ बोलती हैं, उन्हें इसी तरह बदनाम किया जाता है। पर वे यह लड़ाई जारी रखेंगी।नताशा के भाई आकाश नरवाल ने भावुक होकर कहा कि इस मौके पर उन्हें पिता की याद आ रही है, उन्हें इस समय मौजूद रहना चाहिए था।
बता दें कि कुछ दिन पहले ही नाताशा के पिता की मौत कोरोना से हो गई। उनकी अंत्येष्टि में भाग लेने के लिए नताशा को कुछ दिनों की ज़मानत मिली थी, लेकिन उसके बाद वे खुद तिहाड़ पहुँच गई थीं और आत्मसमर्पण कर दिया था।
इन तीनों के ख़िलाफ़ पिछले साल उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों को लेकर यूएपीए क़ानून के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया था।
आसिफ़ ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि उन्हें आतंकवादी, जिहादी कहा गया और कई तरह के ग़लत व झूठे आरोप लगाए गए। उन्होंने सबकुछ बर्दाश्त किया और लड़ाई जारी रखी।
उन्होंने कहा कि सीएए व एनआरसी के ख़िलाफ़ आन्दोलन चलता रहेगा। उन्होंने अदालत में आस्था जताई और कहा कि अदालत में वे आरोपों का जवाब देंगे।
क्या है मामला?
अदालत ने इन्हें दिल्ली दंगों के मामले में मंगलवार की शाम को ही ज़मानत दे दी थी। लेकिन दिल्ली पुलिस ने दिल्ली के ही कड़कड़डूमा कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि उनके पतों की पुष्टि नहीं की जा सकी है और इसके लिए तीन दिन का समय चाहिए। लिहाज़ा, इनकी रिहाई नहीं हो सकी।
अदालत ने बुधवार को इस याचिका पर सुनवाई की और गुरुवार तक के लिए फ़ैसला सुरक्षित रखा। इन छात्रों के वकीलों ने गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की और उन्हें वहाँ से ज़मानत मिल गई।
लेकिन दिल्ली पुलिस ने इसके पहले ही सुप्रीम कोर्ट में मामला दर्ज कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय इस मामले पर शुक्रवार को सुनवाई करेगा।
हाई कोर्ट ने की थी अहम टिप्पणी
दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस एजे भामभानी की बेंच ने देवांगना, नताशा और आसिफ़ को जमानत देते वक़्त कहा था, “ऐसा लगता है कि सरकार के मन में असहमति की आवाज़ को दबाने को लेकर बेचैनी है। संविधान की ओर से दिए गए विरोध के अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच का अंतर हल्का या धुंधला हो गया है। अगर इस तरह की मानसिकता बढ़ती है तो यह लोकतंत्र के लिए दुखद दिन होगा।”
बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के कई फ़ैसलों का हवाला देते हुए और इन्हें देवांगना, नताशा और आसिफ़ से जोड़ते हुए कहा था कि इस मामले में यह नहीं कहा जा सकता कि सरकार ने प्रदर्शनों को रोक दिया हो लेकिन ऐसा नहीं दिखाई देता कि याचिकाकर्ता किसी तरह के अपराधी या षड्यंत्रकारी थे या वे किसी तरह के ग़ैर क़ानूनी विरोध-प्रदर्शन में शामिल थे।
बेंच ने कहा था, “चार्जशीट को पढ़ने के बाद ऐसा कोई आरोप नहीं दिखाई देता जिससे यह कहा जा सके कि कोई आतंकी कृत्य हुआ हो और यूएपीए क़ानून की धारा 15 को लगाया जा सके या फिर धारा 17 और या 18 को।”
अदालत ने यहां पर यूएपीए क़ानून की धारा 15 (आतंकी कृत्य), धारा 17 (आतंकी कामों के लिए पैसा जुटाने के लिए दंड) और धारा 18 (साज़िश के लिए दंड) देने का जिक्र किया था।
अभियुक्तों को दिए थे निर्देश
देवांगना के ख़िलाफ़ चार मामलों में जांच चल रही है जबकि नताशा के ख़िलाफ़ तीन मामलों में। अदालत ने उन्हें सभी मामलों में जमानत दे दी है। जबकि आसिफ़ ने 26 अक्टूबर, 2020 को एक जांच अदालत की ओर से उनकी जमानत याचिका को खारिज किए जाने के आदेश को चुनौती दी थी।
अदालत ने अभियुक्तों को निर्देश दिया था कि वे अभियोजन पक्ष के किसी भी गवाह से संपर्क करने की कोशिश न करें और सबूतों के साथ भी किसी तरह की छेड़छाड़ न करें। अदालत ने अभियुक्तों को आदेश दिया कि वे 50 हज़ार रुपये का पर्सनल बॉन्ड भी भरें।
अपनी राय बतायें