दिल्ली दंगा जाँच में दिल्ली पुलिस के रवैये पर बार-बार सवाल क्यों उठ रहे हैं? इस सवाल जवाब शायद इस तथ्य में भी मिल जाए कि यदि पाँच अलग-अलग मामलों में एफ़आईआर एक समान हो तो क्या सवाल नहीं उठेंगे। एफ़आईआर में आरोपी के नाम, पकड़ने वाले पुलिसकर्मी के नाम, जगह और समय को छोड़कर बाक़ी तथ्य बिल्कुल एक समान कैसे हो सकते हैं? मसलन, पुलिस को देखते ही संदिग्ध तेज़ी से चलने लगा, उसे रोका गया, तलाशी लेने पर उसकी पैंट की दाहिनी जेब में एक लोडेड देसी कट्टा मिला।
दिल्ली दंगे में ऐसा ही एक मामला आया है। दिल्ली का गृह विभाग पाँच अलग-अलग मामलों में दर्ज की गई एक समान एफ़आईआर के मुद्दे को उठाने वाला है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार विभाग ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को एक पत्र लिख कर इस मुद्दे को उठाने का फ़ैसला लिया है। यह फ़ैसला दिल्ली विधानसभा की अल्पसंख्यक कल्याण समिति द्वारा बुधवार को लिया गया। यह समिति दंगों से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही है।
रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगों से जु़ड़े पाँच अलग-अलग मामलों में फ़ैज़ अहमद (30), अतहर (23), साहिब (22), शाहरूख (22) और फैज़ान (28) की एफ़आईआर एक-दूसरे की नकल लगती है। ये एफ़आईआर दयालपुर पुलिस स्टेशन में आर्म्स एक्ट 1959 के तहत दर्ज की गई थी। रिपोर्ट के अनुसार इन्हें 27 फ़रवरी को दोपहर 3 बजे से रात के 9.25 बजे के बीच कथित तौर पर इन्हें अलग-अलग जगहों पर देखा गया था।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार दयालपुर थाने में दर्ज 0066 से लेकर 0070 तक की एफ़आईआर संख्या में समानता है। एफ़आईआर संख्या 0066 में लिखा गया है, 'कांस्टेबल पीयूष ने एक संदिग्ध को नाला रोड बृजपुरी में दोपहर 3 बजे एक कार के पीछे छिपा हुआ देखा। पुलिस पार्टी को देखकर, संदिग्ध व्यक्ति घूम गया और तेज़ चलना शुरू कर दिया। जब हमने उसे रोका तो उसने अपना नाम और पता बताया और उसकी तलाशी लेने पर हमें उसकी पैंट की दाहिनी जेब में एक लोडेड देसी कट्टा मिला।'
एफ़आईआर संख्या 0067 में लिखा गया है, 'कांस्टेबल सुभाष ने एक संदिग्ध को 5.45 बजे चांद बाग में एक बंद पान की दुकान के पीछे छिपा हुआ देखा....।' इसके आगे की लाइनें और एक-एक शब्द हूबहू एफ़आईआर संख्या 0066 वाले ही हैं।
एफ़आईआर संख्या 0068 में लिखा गया है, 'कांस्टेबल दीपक ने एक संदिग्ध को अलसरा होटल मेन रोड बाबू नगर में 6.15 बजे के आसपास एक गली में छिपा हुआ देखा। इसके बाद की सभी शब्द पहले जैसे हैं। एफ़आईआर संख्या 0069 में कहा गया है कि दयालपुर स्टेशन के कांस्टेबल अशोक ने 8.55 बजे संजय चौक मुस्तफाबाद में खड़े संदिग्ध को देखा। इसके बाद एक-एक शब्द पहले की एफ़आईआर जैसी ही हैं।
एफ़आईआर 0070 में कहा गया है, 'दयालपुर पुलिस स्टेशन के कांस्टेबल चमन ने 27 फ़रवरी को रात लगभग 9.25 बजे नेहरू विहार के तुकमीरपुर सरकारी स्कूल के पास एक संदिग्ध व्यक्ति को देखा। पुलिस पार्टी को देखकर, संदिग्ध व्यक्ति घूम गया और तेज़ चलना शुरू कर दिया। जब हमने उसे रोका तो उसने अपना नाम और पता बताया और उसकी तलाशी लेने पर हमें उसकी पैंट की दाहिनी जेब में एक लोडेड देसी कट्टा मिला। उसने कहा कि उसके द्वारा गोलियाँ चलाकर लोगों में आतंक फैलाने का काम किया जा रहा है।'
पुलिस की सफ़ाई
'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, पूछे जाने पर पूर्वी रेंज के पुलिस अधिकारी ने कहा, 'एफ़आईआर की भाषा और सामग्री एक ही है क्योंकि इस तरह की सभी घटनाओं में कॉन्स्टेबलों को स्पॉट पर संदिग्धों को पकड़ने के लिए भेजा गया था। यह सब रिकॉर्ड में डालने के लिए आरोपियों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गईं। हमारी ज़िला टीम अब तक 150 पिस्तौल बरामद कर चुकी है। जाँच की जा रही है और अंतिम रिपोर्ट अदालत को उचित समय पर सौंपी जाएगी। पुलिस जाँच न्यायिक जाँच के अधीन है।'
क्या पुलिस जवाब देगी?
बहरहाल, पुलिस जो भी कहे लेकिन दिल्ली विधानसभा की अल्पसंख्यक कल्याण समिति ने पाँच एफ़आईआर के एक समान होने के मुद्दे को प्रमुख सचिव (सतर्कता) राजीव वर्मा के संज्ञान में लाया। अधिकारियों के अनुसार राजीव वर्मा प्रमुख सचिव (गृह) बीएस भल्ला की जगह पर बैठक में शामिल हुए थे। दिल्ली विधानसभा की अल्पसंख्यक कल्याण समिति ने प्रमुख सचिव (सतर्कता) राजीव वर्मा को यह भी निर्देश दिया कि पुलिस आयुक्त से 24 वर्षीय फैज़ान की मौत की जाँच की स्थिति के बारे में पूछें।
दंगों के दौरान पुलिसकर्मियों के एक समूह द्वारा फैज़ान और दो अन्य लोगों को कथित रूप से राष्ट्रगान और राष्ट्रीय गीत गाने के लिए मजबूर किया गया था और मारपीट की गई थी।
वर्मा ने बैठक में कहा, 'यहाँ उठाए गए मुद्दों को मैं पुलिस कमिश्नर को लिखूँगा, लेकिन हम पुलिस जाँच में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।' उन्होंने यह भी कहा है कि पुलिस विभाग ने राज्य सरकार को लिखा है कि दंगों से संबंधित सभी 754 प्राथमिकी को संवेदनशील बताया गया है।
इस पर समिति के अध्यक्ष और आप के विधायक अमानतुल्ला ख़ान ने वर्मा को निर्देश दिया कि वह पुलिस से पूछें कि किस अधिसूचना के तहत एफ़आईआर को संवेदनशील के रूप में वर्गीकृत किया गया है। उन्होंने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही साफ़ निर्देश जारी किए हैं कि एफ़आईआर को छुपाया नहीं जा सकता है।'
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पहले भी आई थी ऐसी रिपोर्ट
ऐसा मामला पहले भी आया था जिसमें अलग-अलग आरोपियों के बयान एक समान पाए गए थे। एक मामले में 12 आरोपियों में से 9 आरोपियों के बयान एक समान दर्ज किए गए थे। यह मामला जुड़ा है दिल्ली दंगे के दौरान 26 फ़रवरी को 20 वर्षीय वेटर दिलबाग नेगी की हत्या से। नेगी का शव शिव विहार में अनिल स्वीट्स में क्षत-विक्षत मिला था। वह वहीं काम करते थे। इस हत्या के मामले में 12 लोगों को आरोपी बनाया गया। इनके ख़िलाफ़ आपराधिक साज़िश रचने, दंगा करने, समूहों के ख़िलाफ़ शत्रुता बढ़ाने के भी आरोप लगाए गए हैं। इस मामले में पुलिस ने आरोपियों के बयान दर्ज किए हैं। 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने इन बयानों की पड़ताल की तो और पाया कि 12 में से 9 आरोपियों के बयान क़रीब-क़रीब एक-एक वाक्य और शब्द समान थे। हालाँकि बाक़ी तीन के बयान थोड़े अलग थे क्योंकि वे यह बता रहे थे कि उन्होंने पिस्तौल कैसे ली और कैसे अँधाधुँध फ़ायरिंग की।
उस मामले में एक आरोपी आज़ाद के बयान को पुलिस ने रिकॉर्ड करने का दावा किया था। उसमें आज़ाद ने कहा,
'पिछले कुछ दिनों में सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हो रहे थे; मेरे दोस्तों ने मुझे बताया कि जिनके पास सबूत नहीं है (नागरिकता साबित करने के लिए) उनको देश से निकाल दिया जाएगा। इसके आधार पर 24 फ़रवरी को सीलमपुर में दंगे शुरू हो गए थे; और धीरे-धीरे यह जमनापार तक फैल गया। लगभग 2-3 बजे शिव विहार तिराहा पर कई लोग इकट्ठा होने लगे और हिंदू घरों पर पथराव शुरू कर दिया। हिंदुओं ने भी हम पर पथराव शुरू कर दिया; यह काफ़ी लंबे समय तक चला। …तब मुस्तफाबाद में बहुत से लोग इकट्ठा हुए थे और कहा गया था कि मुसलमानों को देश से निकाल दिया जाएगा और आज हमें उन्हें मुसलमानों की ताक़त दिखानी होगी। पूरी भीड़ के साथ-साथ मैं भी चला गया, जो भीड़ कह रही थी... शिव विहार में भीड़ जमा हो गई, जहाँ हिंदूओं ने हम पर पथराव किया, हमने उन पर पत्थर फेंके। हमारी तरफ़ से, भीड़ नारे लगा रही थी: उन्हें मार डालो, हम आज काफिरों को नहीं छोड़ेंगे। मैं उनकी बातों में आ गया और मैंने पथराव शुरू कर दिया। मैं बहुत देर तक पथराव करता रहा। ... इसके बाद, भीड़ ने अनिल स्वीट शॉप और राजधानी स्कूल के गोदाम पर चढ़ना शुरू कर दिया और पथराव कर दिया। मैं रात में अपने घर लौट आया और वहीं रहा। मुझसे ग़लती हो गई, कृपया मुझे माफ़ कर दें।'
इस मामले में आरोपी बाक़ी आठ आरोपियों के बयान भी बिल्कुल एक समान थे।
क्या अलग-अलग मामलों में कई एफ़आईआर या फिर आरोपियों के बयान एक समान हो सकते हैं? एक-एक वाक्य ही नहीं बल्कि क़रीब-क़रीब एक-एक शब्द बिल्कुल वही जो दूसरे आरोपी ने कहा हो। क्या यह संभव है?
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