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दिल्ली दंगा: गोली से 82 घायल, बड़े स्तर पर बंदूकों का इस्तेमाल, पहले से थी तैयारी?

दिल्ली दंगे में एक बहुत ही ख़तरनाक ट्रेंड दिखता है। इसमें जितने भी लोगों की मौत हुई है उसमें से अधिकतर लोगों को गोली लगी थी। घायलों में भी बहुत बड़ी संख्या उनकी है जिन्हें गोली लगी है। दंगों में या हिंसा की ऐसी घटनाओं में आम तौर पर ऐसा नहीं देखा जाता है कि इस स्तर पर बंदूक जैसे हथियारों का इस्तेमाल किया जाता हो। पहले ऐसे मामलों में पत्थर, रॉड या चाकू जैसे हथियारों के हमले से हताहत होने के मामले ज़्यादा आते थे। तो इतने बड़े पैमाने पर बंदूक जैसे हथियार इस्तेमाल किए जाने का कारण क्या है? क्या इस हिंसा की पहले से ही तैयारी थी और इसलिए पहले से ही ऐसे हथियार इकट्ठे किए गए थे? रिपोर्टें हैं कि अब पुलिस इस मामले की जाँच कर रही है। 

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वैसे इस एंगल से जाँच होनी भी चाहिए। क्योंकि पुलिस ने घायलों की संख्या 250 बताई है उसमें 82 लोगों को गोली लगी है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट के अनुसार, इसमें से 21 लोगों की मौत हो चुकी है। हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की भी मौत गोली लगने से ही हुई है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के हवाले से कहा गया है, 'पुलिस को हिंसा प्रभावित क्षेत्रों से 350 कार्टरिज मिलीं। जाँच में पाया गया कि इसमें .32 एमएम, .9 एमएम और .315 एमएम कैलिबर की गोलियाँ थीं। कुछ टॉय गन की कार्टरिज भी मिली हैं।' 

रिपोर्ट में कहा गया है कि गुरुवार तक मरने वालों की संख्या 38 पहुँच गई थी और इसमें से 29 मृतकों की पहचान हो गई है। एक की मौत आग में जलाने के कारण हुई है। घायलों में वैसे लोग हैं जिनपर एसिड एटैक हुआ, चाकुओं से हमला हुआ, मारपीट हुई और जिन्हें आँसू गैस के गोले लगे। 

हिंसा की जगहों से इतनी बड़ी मात्रा में बंदूकों की इतनी बड़ी मात्रा में गोलियाँ पाया जाना और अलग-अलग पिस्टल का इस्तेमाल किया जाना, कई सवाल खड़े करते हैं। सवाल यह है कि हिंसा भड़कने के दौरान लोगों के पास इतनी बड़ी मात्रा में हथियार कहाँ से आए? क्या इसके लिए पहले से ही तैयारी चल रही थी या फिर जैसा कि आरोप लगाया जा रहा है कि हिंसा में बाहरी लोगों का हाथ है तो वे साथ लेकर आए होंगे? 

ख़ुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दो दिन पहले ही विधायकों के साथ बैठक करने के बाद प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा था कि बॉर्डर एरिया में रहने वाले विधायकों ने कहा है कि दिल्ली में बाहर से लोग आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को रोकने की ज़रूरत है और संदिग्ध लोगों को गिरफ़्तार किया जाना चाहिए।

कुछ ऐसे ही आरोप हिंसा प्रभावित क्षेत्र के लोगों का भी है। कई रिपोर्टों में स्थानीय लोगों ने यही आरोप लगाए हैं कि हमलावर बाहर के थे।

जीटीबी अस्पताल में भर्ती अब्दुल समद ने 'अल जज़ीरा' को बताया कि ऐसा लगता है कि दंगाई बाहर से आये थे। उसने दावा किया कि वे स्थानीय हिंदू नहीं थे। 

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हिंसा में जान गँवाने वाले 26 साल के राहुल सोलंकी के शव मिलने का जीटीबी अस्पताल के मुर्दाघर के बाहर इंतज़ार कर रहे उसके छोटे भाई रोहित सोलंकी ने 'अल जज़ीरा' को बताया कि उसने इस इलाक़े में हिंदुओं और मुसलिमों में कभी ऐसी दुश्मनी नहीं देखी। रोहित ने अल-जज़ीरा से कहा, ‘हम लोग हमेशा से प्यार-मुहब्बत से रहते आये हैं लेकिन मैं आपको गारंटी से यह बता सकता हूं कि दंगा करने वाले स्थानीय मुसलिम नहीं थे, वे बाहरी थे।’
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हालाँकि, पुलिस का कहना है कि इसमें स्थानीय अपराधियों का हाथ है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार पुलिस ने अपनी प्राथमिक जाँच में कहा है कि छोटे-मोटे अपराधियों ने देशी पिस्टल और बुलेट इकट्ठा किया हुआ था और जब हिंसा भड़की तो उन्होंने इन्हें बेरोज़गार युवकों व मज़दूरों में बाँट कर हिंसा में शामिल होने को उकसाया। पुलिस का कहना है कि स्थानीय अपराधियों के इसमें शामिल होने के तकनीकी सबूत उसे मिले हैं। ये वे अपराधी हैं जिन्हें पहले लूट, स्नैचिंग, जेब तराशी करने के मामले में गिरफ़्तार किया जा चुका है। पुलिस का कहना है कि ये ही लोग ऐसे हथियारों को खरीदने और बाँटने में शामिल रहे हैं। उसके अनुसार पुलिस ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ छापे मार रही है और अपराधी इधर-इधर भागते फिर रहे हैं। 
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क़मर वहीद नक़वी
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