एक हज़ार से ज़्यादा बुद्धिजीवियों, कलाकारों, लेखकों और कार्यकर्ताओं ने दिल्ली पुलिस को चिट्ठी लिख कर आरोप लगाया है कि उसने लोगों पर दबाव डाल कर मनमाना, बेबुनियाद व मगढंत कबूलनामा लिया है, जिससे दंगों में लोगों को फँसाने की कोशिश की गई है। इस तरह दिल्ली दंगों के लिए झूठे सबूत एकत्रित किए गए हैं।
पुलिस कमिश्नर एस. एन. श्रीवास्तव को लिखी गई चिट्ठी में एक ख़बर के हवाले से कहा गया है कि दिल्ली पुलिस ने एक आदमी पर दबाव डाल कर उमर खालिद के ख़िलाफ़ बयान लिया। पुलिस वालों ने उससे कहा कि यदि उसने यह बयान नहीं दिया तो उसे अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रीवेन्शन एक्ट यानी यूएपीए के तहत गिरफ़्तार कर लिया जाएगा।
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यूएपीए में फँसाने की धमकी
ख़त में कहा है कि उमर खालिद को दिल्ली दंगों में बेवजह फँसाने की कोशिश पुलिस कर रही है। खालिद क़ानून से ऊपर नहीं हैं और उन्हें पुलिस से पूरा सहयोग करना चाहिए, पर जब पुलिस ही इस तरह की कार्रवाई पर उतर आती है तो नागरिकों की आज़ादी ख़तरे में पड़ जाती है।इस चिट्ठी में इस तरह के फ़र्जी कबूलनामे के बारे में बताया गया है और आरोप लगाया गया है कि पुलिस वाले इस तरह के फ़र्जी कबूलनामा इसके पहले भी ले चुके हैं। इसे इससे समझा जा सकता है कि अंकित शर्मा मामले में दयालपुर पुलिस स्टेशन ने 4 कबूलनामा बिल्कुल एक सा दिया है।
फ़र्जी कबूलनामा
इसी तरह दयालपुर पुलिस स्टेशन ने रतन लाल मामले में 7 कबूलनाम बिल्कुल एक सा दिया है। ऐसा काम दिल्ली पुलिस के दूसरे थानों में भी हुआ है।ज़फ़राबाद पुलिस स्टेशन ने एक चार्जशीट में जो कबूलनामा दिए हैं, उनमें 10 कबूलनामे बिल्कुल एक से हैं। दिलबर नेगी केस में गोकुलपुरी थाना ने जो 12 कबूलनामा पेश किया, उसमें 9 एक समान हैं।
जाँच की माँग
इस चिट्ठी में दिल्ली पुलिस से कहा गया है कि वह इस पर गंभीरता से विचार करे, इस तरह के फ़र्जी तरीकों से निर्दोष लोगों को दंगों में फँसाने के मामलों की जाँच करे। यह भी कहा गया है कि दिल्ली दंगों में 53 लोगों की मौत हुई है, इस दंगे और इन मौतों को दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी ही चाहिए और इसके लिए ऐसा करना ज़रूरी है।पुलिस कमिश्नर से यह भी मांग की गई है कि इस तरह के कबूलनामा पर तुरन्त रोक लगे और जिन्होंने ऐसा किया है, उन्हें इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाए।
यह भी कहा गया है कि उमर खालिद के ख़िलाफ़ इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।दिल्ली पुलिस से मांग की गई है कि दंगों के मामलों में यूएपीए न लगाया जाए और ऐसे मामले निरस्तर कर दिए जाएं।
इस चिट्ठी पर एक हज़ार से अधिक लोगों ने दस्तख़त किए हैं, जिसमें लेखक, बुद्धिजीवी, पत्रकार, अर्थशास्त्री, सामाजिक कार्यकर्ता और समाज के दूसरे वर्गों के लोग भी हैं। जिन्होंने दस्तख़त किए हैं, उनमें कुछ प्रमुख नाम हैं--इतिहासकार रामचंद्र गुहा, फ़िल्मकार अपर्णा सेन, पूर्व संस्कृति सचिव जवाहर सरकार, अर्थशास्त्री जयति घोष. पूर्व राज्यपाल मार्गरेट अल्वा, अकादमिक जगत के लोग ज़ोया हसन, निवेदिता मेनन, पत्रकार विद्या सुब्रमणियन, कलाकार किरण सहगल, शुद्धब्रत सेन वगैरह।
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