जीवन के लिए कुदरत की दो नियामतें सबसे ज़्यादा ज़रूरी हैं- हवा और पानी। अगर हम कुदरत के साथ खिलवाड़ करते हुए उन्हें ज़हरीला बना दें तो फिर इसका मतलब यह है कि हम जीना ही नहीं चाहते। दिल्ली की यह बदक़िस्मती है कि आज यहाँ हवा और पानी दोनों ही न तो साफ़ हैं और न ही सेफ़। कोढ़ में खाज यह है कि हवा और पानी साफ़ करने की ज़िम्मेदारी हम जिन लोगों पर डाल बैठे हैं, उन्हें इनकी फ़िक्र नहीं है। वे हवा और पानी को शुद्ध करने की बजाय एक-दूसरे पर ज़िम्मेदारी डालकर तमाशा देख रहे हैं। यह सच है कि सारी ज़िम्मेदारी सरकार की नहीं है लेकिन दिल्ली के बाशिंदे तो अपनी तरफ़ से जो भी कोशिश कर लें, अगर सरकारें आपस में टकराव का ऐसा तमाशा करेंगी तो सचमुच वह अफ़सोसजनक भी है और ख़तरनाक भी।
दिल्ली: राजनीतिक तमाशे से कैसे मिल सकेंगे साफ़ हवा और पानी?
- दिल्ली
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- 21 Nov, 2019

जीवन के लिए कुदरत की दो नियामतें सबसे ज़्यादा ज़रूरी हैं- हवा और पानी। अगर हम कुदरत के साथ खिलवाड़ करते हुए उन्हें ज़हरीला बना दें तो फिर इसका मतलब यह है कि हम जीना ही नहीं चाहते।
दिल्ली में प्रदूषण पर रोक लगाने की बजाय केंद्र की बीजेपी सरकार और दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार दोनों ही जनता को बेवकूफ बनाने के सिवाय कुछ नहीं कर रहीं। अगर सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी नहीं हों तो फिर वे उपाय भी नहीं किए जाते, जो कम से कम नज़र आ रहे हैं। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पराली-पराली की धुन बजाते हुए अपनी पीठ थपथपाते रहते हैं। ऑड-ईवन का तमाशा भी उन्होंने ख़ूब किया। यहाँ तक कि मीडिया को बुलाकर मंत्रियों की गाड़ियों को शेयरिंग करते हुए या फिर उनके मंत्री साइकिल या मेट्रो से ऑफ़िस जाने का नाटक करते भी नज़र आए।