देश में परिवारों पर कर्ज अब नई ऊंचाईयों को छूने लगा है। अंग्रेजी अखबार द हिंदू की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दिसंबर 2023 में भारतीय परिवारों का कर्ज बढ़कर नई ऊंचाई पर पहुंच गया है। माना जा रहा है कि अगर यह स्थिति है तो अर्थव्यवस्था के लिए यह चिंताजनक बात है।
द हिंदू की रिपोर्ट कहती है कि भारत के घरेलू ऋण का स्तर दिसंबर 2023 तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 40 प्रतिशत के सर्वकालिक उच्च स्तर को छू गया है, जबकि शुद्ध वित्तीय बचत गिर गई है।
अग्रणी वित्तीय सेवा फर्म मोतीलाल ओसवाल की एक शोध रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय बचत सकल घरेलू उत्पाद की लगभग 5 प्रतिशत तक गिर गई है जो कि इसका सबसे निचला स्तर है। इसे बढ़ते वित्तीय संकट के संकेत के रूप में माना जा सकता है।
सितंबर 2023 में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने अनुमान लगाया था कि 2022-23 में परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत गिरकर सकल घरेलू उत्पाद का 5.1 प्रतिशत हो गई है, जो 47 साल का सबसे निचला स्तर है।
इसके बाद वित्त मंत्रालय ने इसका तीखा खंडन किया था। इसने तर्क दिया था कि परिवार पहले की तुलना में कम वित्तीय संपत्ति जोड़ रहे हैं क्योंकि वे घरों और वाहनों जैसी वास्तविक संपत्ति खरीदने के लिए ऋण ले रहे हैं जो "संकट का संकेत नहीं है बल्कि उनके भविष्य के रोजगार और आय की संभावनाओं में विश्वास का संकेत है"।
वहीं इस फरवरी में प्रकाशित 2022-23 के लिए राष्ट्रीय आय के पहले संशोधित अनुमान ने घरों में अनुमानित शुद्ध वित्तीय बचत को सकल घरेलू उत्पाद के 5.3 प्रतिशत तक बढ़ा दिया, जो अभी भी 47 वर्षों में सबसे कम है। यह जीडीपी के 7.6 प्रतिशत के औसत से कमजोर है।
इस संशोधित अनुमानों में बताया गया था कि 2022-23 में घरेलू ऋण का स्तर जीडीपी के 38 प्रतिशत तक पहुंच गया है।जो 2020-21 के महामारी-प्रभावित वर्ष में दर्ज जीडीपी के 39.1 प्रतिशत के बाद दूसरे स्थान पर है।
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक मोतीलाल ओसवाल के शोध विश्लेषक निखिल गुप्ता और तनीषा लाधा कहते हैं कि हमारा अनुमान बताता है कि दिसंबर 2023 तक घरेलू ऋण बढ़कर जीडीपी का लगभग 40 प्रतिशत हो गया है, जो एक नई ऊंचाई पर पहुंच गया है।
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असुरक्षित पर्सनल लोन बढ़ रहे हैं
बैंकों के आंकड़ों के आधार पर, यह साफ है कि असुरक्षित पर्सनल लोन घरेलू घरेलू ऋण के भीतर सबसे तेज गति से बढ़ रहे हैं, इसके बाद सुरक्षित ऋण, कृषि ऋण और व्यावसायिक ऋण हैं।मोतीलाल ओसवाल की इस शोध रिपोर्ट 2022-23 की निराशाजनक शुद्ध वित्तीय बचत संख्या को कमजोर आय वृद्धि के साथ-साथ मजबूत खपत और भौतिक बचत में वृद्धि के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।
इसमें अनुमान लगया गया है कि आय वृद्धि कमजोर बनी हुई है और घरेलू शुद्ध वित्तीय बचत जीडीपी के लगभग 5 प्रतिशत के निचले स्तर पर होने की संभावना है। ऐसे में यह आश्चर्य की बात नहीं है कि 2023-24 में निजी खपत और घरेलू निवेश में वृद्धि दोनों ही काफी कमजोर हो गई है।
अनुमान है कि 2023-24 के पहले नौ महीनों में परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत जीडीपी के लगभग 5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित थी। उन्होंने नोट किया कि बीते पूरे वर्ष के लिए, ये बचत संभवतः जीडीपी के 5 प्रतिशत से 5.5 प्रतिशत के बीच हो सकती है।
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वित्तीय देनदारी भी बढ़ी
द हिंदू की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि, पिछले वर्ष के पहले नौ महीनों में, परिवारों की सकल वित्तीय बचत जीडीपी का 10.8 प्रतिशत हो गई, जो 2022-23 की इसी अवधि में 10.5 प्रतिशत थी, लेकिन वित्तीय देनदारियां भी जीडीपी के 5.5 प्रतिशत से बढ़कर 5.8 प्रतिशत तक पहुंच गईं।2022-23 में परिवारों की वार्षिक उधारी बढ़कर जीडीपी का 5.8 प्रतिशत हो गई, जो कि आजादी के बाद की अवधि में दूसरी सबसे अधिक है।
जबकि परिवारों की भौतिक बचत 2022-23 में एक दशक के उच्चतम स्तर पर थी, उनकी कुल बचत जीडीपी के छह साल के निचले स्तर 18.4 प्रतिशत पर थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की सकल घरेलू बचत (जीडीएस) जीडीपी के 30.2 प्रतिशत तक कम हो गई है, जो 2013-14 और 2018-19 के बीच देखी गई 31-32 प्रतिशत की सीमा से कम है, रिपोर्ट में परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत में गिरावट को 'नाटकीय' बताया गया है।
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