मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आबकारी नीति मामले में मिली जमानत पर रोक लगाने वाले दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। राउज एवेन्यू कोर्ट ने केजरीवाल को जमानत दी थी, लेकिन उसका विस्तृत आदेश आने से पहले ही दिल्ली हाईकोर्ट में मामला पहुँच गया और फिर बाद में निचली अदालत के आदेश पर रोक लगा दी गई।
इसी के ख़िलाफ़ रविवार को सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई है। केजरीवाल के वकील मामले की तत्काल सुनवाई की मांग कर रहे हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने 21 जून को केजरीवाल को जमानत देने वाले ट्रायल कोर्ट के 20 जून के आदेश को 'दो-तीन दिन' के लिए रोक दिया था। हाई कोर्ट ने कहा कि वह जमानत आदेश पर रोक लगाने की ईडी की याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख रहा है।
हाईकोर्ट ट्रायल कोर्ट के गुरुवार के आदेश को चुनौती देने वाली ईडी की मुख्य याचिका पर केजरीवाल को नोटिस भी जारी किया और इसे 10 जुलाई के लिए सूचीबद्ध किया। न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन की एकल पीठ ने ईडी की प्रार्थना और केजरीवाल के वकील की जवाबी दलीलें सुनीं। पीठ ने कहा, 'तर्क सुने गए हैं। आदेश सुरक्षित रखा गया है। रोक आवेदन पर आदेश की घोषणा होने तक ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई जाती है।'
हाईकोर्ट ने कहा कि वह पूरे रिकॉर्ड, विवादित फैसले को देखना चाहता है और दो-तीन दिनों में स्थगन आवेदन पर अपना फैसला सुनाएगा।
राउज एवेन्यू कोर्ट की जज न्याय बिंदु ने कहा था कि 'न्याय न केवल किया जाना चाहिए बल्कि होते हुए दिखना चाहिए'।
जज ने कहा, 'यदि कोई आरोपी अपनी बेगुनाही साबित होने तक सिस्टम के अत्याचारों को झेलता है, तो वह कभी यह कल्पना नहीं कर सकता कि उसके पक्ष में वास्तव में न्याय हुआ है।' यह देखते हुए कि प्रथम दृष्टया आधार पर केजरीवाल का अपराध अभी तक स्थापित नहीं हुआ है, अदालत ने उन्हें जमानत दे दी।
जज न्याय बिंदु ने कहा कि चूंकि ईडी का मानना है कि रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य केजरीवाल के खिलाफ आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, इसलिए किसी भी तरह से साक्ष्य हासिल करने में समय लग रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने गवाहों की विश्वसनीयता के संबंध में ईडी के तर्क पर भी कड़ी टिप्पणियां कीं। ईडी ने तर्क दिया था कि 'जांच एक कला है और कभी-कभी एक आरोपी को जमानत और क्षमा का लालच दिया जाता है और अपराध के पीछे की कहानी बताने के लिए कुछ आश्वासन दिया जाता है'।
अदालत ने कहा, 'अदालत को इस तर्क पर ठहरकर विचार करना होगा जो कि एक स्वीकार्य दलील नहीं है कि जांच एक कला है क्योंकि अगर ऐसा है तो किसी भी व्यक्ति को कलात्मक रूप से उसके खिलाफ सामग्री प्राप्त करके फंसाया जा सकता है और रिकॉर्ड से दोषमुक्त करने वाली सामग्री को कलात्मक रूप से हटाने के बाद उसे सलाखों के पीछे रखा जा सकता है। यही स्थिति अदालत को जांच एजेंसी के खिलाफ यह निष्कर्ष निकालने के लिए बाध्य करती है कि वह पक्षपात के बिना काम नहीं कर रही है।'
अपनी राय बतायें