भले ही यह फ़िल्मी कहानी लगे लेकिन है यह पूरी तरह हक़ीक़त। क्या भाई-बहन का ऐसा रिश्ता कहीं देखा है जहाँ दोनों में ख़ूब प्यार है और आमने-सामने आ जाएँ तो एक-दूसरे की जान भी ले लें? दरअसल, मामला है नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के सुकमा का। भाई पुलिसकर्मी है और बहन माओवादी। पहले दोनों माओवादी थे। आत्मसमर्पण कर भाई पुलिस में आ गया, लेकिन बहन आत्मसमर्पण को तैयार नहीं हुई। अब भाई-बहन आमने-सामने हैं। मुठभेड़ में भाई-बहन एक-दूसरे पर गोलियाँ बरसाते हैं। पुलिसकर्मी भाई अब भी इस कोशिश में लगा है कि मुठभेड़ जैसी स्थिति आने से पहले उनकी बहन आत्मसमर्पण करने के उनके आग्रह को मान ले और सामान्य ज़िंदगी में वापस लौट आए।
वेट्टी रामा (43) पुलिस में हैं और उनकी बहन वेट्टी कन्नी (50) माओवादी हैं। इनका सामना 29 जुलाई को देश भर में नक्सल से सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्रों में से एक सुकमा के बालेंगटोंग के जंगलों में हुआ था। तब 140 से ज़्यादा सुरक्षाकर्मियों ने माओवादियों को घेर लिया था। इस टीम का नेतृत्व वेट्टी रामा कर रहे थे। वह सुकमा पुलिस में गोपनीय सैनिक हैं और इस अभियान के सेक्शन कमांडर थे। उनका निशाना कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (माओवादी) के कोंटा एरिया कमेटी के प्रमुख सदस्यों में से एक वेट्टी कन्नी और उसके 30 सदस्यों की टीम थी। रामा और कन्नी ने एक-दूसरे को देखा। तभी कन्नी के गार्ड ने गोली चला दी जिस पर पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई की। दो माओवादी मारे गए, लेकिन कन्नी बच निकली।
इस पर अंग्रेज़ी अख़बार 'हिंदुस्तान टाइम्स' ने रिपोर्ट छापी है। इसमें रामा का बयान है। रामा ने कहा, ‘मैं उस पर गोली नहीं चलाना चाहता था। मैं ऐसा करने के लिए विवश था, क्योंकि कुछ ही सेकंड में उसके गार्ड ने मेरी टीम पर गोलीबारी शुरू कर दी। इसलिए मैंने जवाबी कार्रवाई की। कुछ मिनटों के बाद मैंने उसको गोलीबारी करते देखा और अचानक वह जंगल में ग़ायब हो गया।’
अपनी पत्नी के साथ सुकमा में पुलिस आवास में रहने वाले रामा कहते हैं कि अपनी ही बहन को मारना आसान नहीं है। यह कहते ही रामा की आँखों में आँसू भर आते हैं। रामा कहते हैं, ‘मुझे नहीं पता! मैं हमेशा उसे गिरफ्तार करने या आत्मसमर्पण करने का आग्रह करने की कोशिश करूँगा, लेकिन मुठभेड़ में कुछ भी संभव है। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि ऐसा कभी न हो।’
रामा ने कहा कि उन्होंने आत्मसमर्पण करने के लिए कन्नी को कई बार पत्र भी लिखा और सामान्य ज़िंदगी में लौट आने का आग्रह किया। हालाँकि, कन्नी ने जो जवाबी पत्र लिखा है उसमें उसकी सोच ऐसी नहीं लगती है।
पत्र में रामा पर माओवादी आंदोलन को कमज़ोर करने का आरोप लगाया गया था क्योंकि वह पुलिस बल में शामिल हो गए थे। पत्र में कन्नी ने रामा को संबोधित करते हुए लिखा है कि जब से तुम पुलिस बल में शामिल हुए हो, तुम निर्दोष लोगों को गिरफ्तार करने, उन्हें यातनाएँ देने और कैडरों की पहचान करने में शामिल हो।
‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के अनुसार, 8 नवंबर, 2018 को लिखे गए पत्र में कन्नी ने लिखा, ‘मुझे कभी भी समर्पण के लिए आग्रह नहीं करना। मैं पुनर्वास और मुआवजे के लालच में नहीं हूँ; मैं एक क्रांतिकारी हूँ... तुमको कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि तुम ख़ुद को बचा पाओगे... तुम विद्रोही हो।’
90 के दशक में माओवादी बने थे दोनों
अख़बार के अनुसार, रामा कहते हैं, ‘हम दोनों बाल संघम में शामिल हुए क्योंकि हमें बताया गया था कि यह आंदोलन क्षेत्र के ग़रीबों के लिए है। लेकिन अब चीजें बदल गई हैं... वर्तमान माओवादी आंदोलन में समर्पण का अभाव है और इसलिए मैंने 2018 में आत्मसमर्पण करने का फ़ैसला किया। फिर मुझे पुलिस में नौकरी मिल गई और अगले कुछ महीनों में मुझे पुलिस कांस्टेबल के पद पर पदोन्नत किया जाएगा।’
कन्नी पर है 5 लाख का ईनाम
कन्नी कोंटा में सीपीआई (माओवादी) की एरिया कमेटी मेंबर (एसीएम) है, जिसके सिर पर 5 लाख रुपये का ईनाम है। वह माओवादियों के ‘पोडियारो’ की प्रभारी है। इसका मतलब है कि वह गिरफ़्तार माओवादियों के क़ानूनी मदद देती है और सीपीआई (माओवादी) कैडर के उन परिवारों के पुनर्वास की समीक्षा करती है जो पुलिस मुठभेड़ों में मारे जाते हैं।
रामा ने क्यों किया था आत्मसमर्पण?
जब रामा से उनके आत्मसमर्पण करने के कारण के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'मेरे जीवन के दो दशक आंदोलन में समर्पित करने के बाद भी मुझे एसीएम के पद से हटा दिया गया और बाद में मुझे सीपीआई (माओवादी) के एक और विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया। ...क्या आप कल्पना कर सकते हैं? मैं अपनी पत्नी से सात साल से नहीं मिला था और वरिष्ठ कैडरों को मेरी अडिग प्रतिबद्धता के लिए कोई सम्मान नहीं था।'
रामा के आत्मसमर्पण करने के बाद वह चाहते थे कि उनकी बहन भी ख़ुद ही वह सब छोड़ दे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और दोनों एक-दूसरे के ख़िलाफ़ हैं।
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