ताज़ा ख़ुलासा हुआ है कि डॉ. पुनीत गुप्ता ने रायपुर के सरकारी अस्पताल को ही गिरवी रख दिया था और उसके बदले पंजाब नेशनल बैंक से लोन ले लिया था। इस ख़ुलासे के बाद बीजेपी और पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह बैकफ़ुट पर हैं।
बड़े पैमाने पर फ़र्जीवाड़ा
बैंक से रकम जारी होने के बाद डॉ. पुनीत गुप्ता ने मनमाने तरीके़ से अस्पताल की मशीनें और उपकरण ख़रीदे। इसकी ख़रीद में उन्हीं कंपनियों को टेंडर में प्राथमिकता दी गई, जिन्हें डॉ. पुनीत गुप्ता ने चुना था। प्रारंभिक जाँच में ही पुलिस ने टेंडर प्रक्रिया में भी बड़े पैमाने पर फ़र्जीवाड़ा पाया है।डॉ. पुनीत गुप्ता ने 99 करोड़ की फ़र्जी ऑडिट रिपोर्ट से 64 करोड़ का लोन रायपुर के पंजाब नेशनल बैंक से लिया था।
नियमानुसार किसी भी प्रोजेक्ट के लिये लोन जारी करने से पहले बैंक, आवेदन पत्र के साथ उस संस्थान की ऑडिट रिपोर्ट अनिवार्य रूप से जमा करवाता है। यह इसलिए ज़रूरी होती है, क्योंकि बैंक यह जानना चाहता है कि अगर वह लोन दे रहा है तो लोन लेने वाला व्यक्ति या संस्थान रकम को किस तरह और कैसे अदा करेगा। इस ऑडिट रिपोर्ट में लोन लेने वाला व्यक्ति या संस्थान, बैंक को बताता है कि किस तरह से संस्थान की आमदनी होगी और लोन की रकम मय ब्याज अदा की जाएगी।
फ़र्जी निकले सीए के हस्ताक्षर
अस्पताल वाले मामले में जाँच के दौरान यह बात सामने आई है कि ऑडिट रिपोर्ट जिस चार्टर्ड एकाउंटेंट (सीए) प्रकाश देशमुख के हवाले से जमा की गई है, उस शख़्स ने अपने फ़र्जी हस्ताक्षर होने का बयान पुलिस में दर्ज कराया है। सीए प्रकाश देशमुख ने पुलिस को दिए बयान में कहा है कि पीएनबी को भेजी गई ऑडिट रिपोर्ट में उनके फ़र्जी हस्ताक्षर हैं। सीए के इस बयान के बाद रायपुर के एसएसपी आरिफ़ शेख़ ने इस घोटाले से जुड़े सभी दस्तावेजों की फ़ॉरेंसिक जाँच कराने के निर्देश दिए हैं। इस मामले को लेकर डॉ. रमन सिंह और डॉ. पुनीत गुप्ता की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। अस्पताल में अनियमितता के दो अलग-अलग मामलों में पुलिस ने डॉ. गुप्ता को आरोपी बनाया है। लोकसभा चुनाव के मौक़े पर इससे बीजेपी के सामने मुसीबत खड़ी हो गई है।
फ़रार डॉ. पुनीत गुप्ता और लोन के लिए अस्पताल तक को गिरवी रखने के मामले में कांग्रेस ने बीजेपी और डॉ. रमन सिंह को घेरना शुरू कर दिया है। इस मामले में किसी भी तरह की प्रतिक्रिया जाहिर करने में रमन सिंह और बीजेपी दोनों ही कन्नी काट रहे हैं।
डॉ. पुनीत गुप्ता ने अस्पताल की आड़ में मोटी रकम इकट्ठा करने की योजना तैयार की। यह योजना डीकेएस पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीटयूट एंड रिसर्च सेंटर को आधुनिक बनाने की थी।
अवर सचिव सुनील विजयवर्गीय को रमन सिंह सरकार ने बतौर गारंटर बैंक के सामने प्रस्तुत किया जबकि डॉ. पुनीत गुप्ता ने लोन के दस्तावेजों में बतौर अस्पताल के अधीक्षक के रूप में हस्ताक्षर किये थे।
इस घोटाले को स्वास्थ्य विभाग के अलावा मुख्यमंत्री सचिवालय के आला अफ़सरों के संरक्षण में अंजाम दिया गया था। जाँच में यह बात सामने आई है कि तत्कालीन प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) एवं हेल्थ कमिश्नर को इस प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया।
रमन सिंह को थी जानकारी!
लोन के लिए बैंक को सौंपी गई प्रोजेक्ट रिपोर्ट में स्वर्गीय दाऊ कल्याण सिंह द्वारा दान में दी गई ज़मीन और डीकेएस पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीटयूट एंड रिसर्च सेंटर को बैंक में गिरवी रख दिया गया। बताया जाता है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह को इस मामले की पूरी जानकारी थी। इसी के आधार पर स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन अवर सचिव सुनील विजयवर्गीय को लोन संबंधी प्रक्रिया को पूरा करने के निर्देश मुख्यमंत्री सचिवालय से प्राप्त हुए थे। इन्हीं निर्देशों के आधार पर पीएनबी और स्वास्थ्य विभाग ने लोन संबंधी सारी प्रक्रियाएँ पूरी कर 64 करोड़ का लोन मंजूर कर दिया था।
मामले के ख़ुलासे के बाद जिस तत्कालीन अवर सचिव सुनील विजयवर्गीय को पूर्व की रमन सिंह सरकार ने बतौर गारंटर बैंक के सामने प्रस्तुत किया था, उनका स्थानांतरण सहकारिता विभाग में कर दिया गया है।
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