पंजाब में कांग्रेस दो गुटों के संकट से तो गुजर ही रही है, छत्तीसगढ़ में भी अब संकट गहराता जा रहा है। यह संकट कितना गंभीर है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी ने विधायकों को दिल्ली तलब किया है। दो दिन पहले ही छत्तीसगढ़ कांग्रेस के दो बड़े नेताओं ने पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से दिल्ली में मुलाक़ात की थी। ये दोनों नेता कोई और नहीं, बल्कि ख़ुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव हैं। समझा जाता है कि टीएस सिंहदेव राज्य की सरकार में सर्वोच्च पद चाहते हैं। इसी वजह से छत्तीसगढ़ में यह संकट आया है। वह खुद शुक्रवार को राहुल गांधी से मुलाक़ात करने वाले हैं। इस हफ़्ते यह राहुल के साथ दूसरी मुलाक़ात होगी। कांग्रेस आलाकमान के सामने अब दोहरी चुनौती है कि वह किस-किस से निपटे।
हालाँकि ऊपरी तौर पर जिस तरह से पार्टी के दोनों पक्षों की ओर से बयान आ रहे हैं उसमें वह तल्खी नहीं दिखती, लेकिन कांग्रेस को भी यह अंदाज़ा है कि यह उतना आसान नहीं है। दो दिन पहले जब बघेल ने दिल्ली में राहुल से मुलाक़ात की थी तब उन्होंने कहा था कि पार्टी आलाकमान जो तय करेगा वह उन्हें मंजूर होगा। नेतृत्व के सवाल पर टीएस सिंहदेव ने भी कहा था कि पार्टी आलाकमान के फ़ैसले से वह सहमत हैं। लेकिन कहा तो यह जा रहा है कि दिल्ली में राहुल से मुलाक़ात के बाद वह छत्तीसगढ़ लौटे भी नहीं हैं।
वैसे, छत्तीसगढ़ में दिसंबर, 2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी थी तभी मुख्यमंत्री कौन होगा, इसे लेकर जबरदस्त खींचतान हुई थी। मुख्यमंत्री पद के चार दावेदारों के बीच कांग्रेस हाईकमान ने बघेल को चुना था। बघेल के अलावा टीएस सिंहदेव, ताम्रध्वज साहू और चरणदास महंत मुख्यमंत्री पद की दौड़ में थे। यह भी चर्चा हुई थी कि ढाई साल में दूसरे दावेदार को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। हालांकि बघेल ढाई साल वाले किसी फ़ॉर्मूले से लगातार इनकार करते रहे हैं।
कुछ दिन पहले कांग्रेस विधायक बृहस्पति सिंह ने टीएस सिंहदेव पर आरोप लगाया था कि बघेल के पक्ष में बयान देने के कारण सिंहदेव ने उन पर हमला करवाया था।
इसके बाद सिंहदेव विधानसभा से बाहर निकल गए थे और इसी शर्त पर लौटे थे कि सरकार विधायक के इस बयान को आधिकारिक रूप से खारिज कर दे।
सिंहदेव ने शिकायत की थी कि स्वास्थ्य महकमे के सचिवों को लगातार बदला जा रहा है। इसके अलावा कुछ और योजनाओं पर भी सिंहदेव और बघेल के बीच में विवाद हो चुका है।
बहरहाल, भूपेश बघेल को बदलना भी इतना आसान नहीं है। ये वो शख़्स हैं, जिनके प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए ही 15 साल से छत्तीसगढ़ की सत्ता में बैठी बीजेपी की विदाई हुई थी। जबकि वहाँ रमन सिंह का हारना बेहद मुश्किल लग रहा था। भूपेश बघेल अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं और कांग्रेस को एक ऐसे बड़े ओबीसी नेता की ज़रूरत है जो उसके लिए दूसरे राज्यों में भी चुनावी ज़मीन तैयार कर सके।
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