प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुखी हैं। नवंबर में उन्होंने देश की जनता को पेट्रोल-डीजल के उत्पाद शुल्क में कमी कर राहत दी थी लेकिन उसका फायदा उन प्रदेशों की जनता को नहीं मिला जहां बीजेपी की सरकार नहीं है। क्या सचमुच प्रधानमंत्री की आंखों में आंसू हैं! ये आंसू आम जनता को राहत नहीं मिल पाने की वजह से हैं!
वैसे यह बात सच है कि पेट्रोल-डीजल के उत्पाद शुल्क में कमी के बाद कई राज्यों ने वैट की दर में कोई कमी नहीं की। मगर, क्या ऐसा करना अपरिहार्य था? क्या ऐसा नहीं करके राज्य की गैर बीजेपी सरकारों ने वास्तव में अपनी जनता के साथ गुनाह किया है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है, “मैं किसी की आलोचना नहीं कर रहा हूं,बल्कि आपके राज्य के लोगों की भलाई के लिए प्रार्थना कर रहा हूं।”
दाम बढ़े थे 13 रुपये, घटे थे महज 5 रुपये
‘राज्य के लोगों की भलाई’ वाली केंद्र सरकार की मानसिकता को समझना हो तो उत्पाद शुल्क उस कटौती की भी बात करें और उस कटौते से पहले उत्पाद शुल्क में हुई बढ़ोतरी को भी याद करें।
- नवंबर 2021 में मोदी सरकार ने पेट्रोल पर 5 रुपये और डीजल पर 10 रुपये प्रति लीटर उत्पाद शुल्क में कटौती की घोषणा की थी।
- मार्च 2020 से मई 2020 के बीच पेट्रोल और डीजल पर 13 रुपये और 16 रुपये प्रति लीटर उत्पाद शुल्क बढ़ायी गयी थी।
- उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी से पेट्रोल पर केंद्रीय कर 32.90 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर यह 31.80 रुपये प्रति लीटर हो गया था।
यह बढ़ोतरी तब हुई थी जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतें लगातार घट रही थीं और उसका फायदा आम जनता को मिल सकता था। लेकिन, आम लोगों की भलाई की बात तब प्रधानमंत्रीजी को याद नहीं रही। जब बढ़े हुए उत्पाद शुल्क में कटौती की गयी तब यह राहत छोटी थी। आज उसी राहत की याद दिलाकर पीएम मोदी गैर बीजेपी शासित राज्यों को कोस रहे हैं।
हर दिन 1018 करोड़ वसूलता है केंद्र
संसद में दी गयी जानकारी के मुताबिक पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी से 2020-21 में 3.719 लाख करोड़ रुपये केंद्र सरकार ने जुटाए। इसका मतलब यह है कि हर दिन 1018.93 करोड़ रुपये कमाए गये। 2019-20 में यह कमाई 488.52 करोड़ रुपये प्रति दिन थी। मतलब दुगुने से भी ज्यादा कमाई बीते वर्ष के मुकाबले सिर्फ 2020-21 में कर ली गयी। कहां था जनता की भलाई वाला विचार?
ईंधन पर उत्पाद शुल्क से सालाना और प्रतिदिन केंद्रीय राजस्व
जनता करों के अत्यधिक बोझ से परेशान है। राज्य सरकारें भी पेट्रोल-डीजल पर वैट वसूलती है और केंद्र सरकार भी उत्पाद शुल्क लेती है। वर्ष 2020-21 में पेट्रोल-डीजल पर करों से जुटायी गयी रकम से राज्य सरकारों को 18,972 करोड़ रुपये हिस्सेदारी दी गयी थी। यानी प्रदेश सरकारों को औसतन 51.97 करोड़ रुपये दिए गये। यह मूल रूप से जो पेट्रोल-डीजल से बेसिक कर वसूले जाते हैं, उसका हिस्सा होता है।
524.36 करोड़ है औसत वसूली
अप्रैल 2016 से मार्च 2021 के दौरान पांच साल में राज्यों ने वैट से कुल 9,56,959 करोड़ रुपये वसूल किए। इसका मतलब यह है कि औसतन सालाना वसूली रही 1,91,391.8 करोड़ रुपये। प्रतिदिन औसत यह रकम होती है 524.36 करोड़ रुपये।
अब तुलना कीजिए कि केंद्र सरकार प्रतिदिन पेट्रोल-डीजल से राजस्व की वसूली करती है 1018.93 करोड़ रुपये, जबकि राज्य सरकारों की ओर से वसूला गया वैट प्रतिदिन औसतन 524.36 करोड़ रुपये है। इसके बाद भी अगर प्रधानमंत्री दुखी हैं कि वैट कम नहीं किया जा रहा है तो इसे घड़ियाली आंसू ही कहेंगे।
पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाएं
अगर वास्तव में जनता को उत्पाद शुल्क और वैट से निजात दिलाना चाहते हैं प्रधानमंत्री, तो उन्हें तुरंत पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की पहल करनी चाहिए। ऐसा करने के बजाए प्रधानमंत्री राज्य सरकारों को दलगत आधार पर बांटने की सियासत करने में जुटे हैं।
केंद्र सरकार के पास आमदनी के स्रोत अधिक होते हैं जबकि राज्य सरकारों के पास यह सुविधा नहीं होती। खासकर जीएसटी लागू हो जाने के बाद राज्य सरकारें अपना हिस्सा पाने के लिए भी केंद्र पर निर्भर हो गयी है। ऐसे में प्रदेश की सरकारों के पास पेट्रोल-डीजल पर वैट से हो रही आमदनी आर्थिक मोर्चे पर बड़ा सहारा है।
फिर भी असीमित रूप से टैक्स वसूलने को गलत ठहराया जाना चाहिए। मगर, प्रश्न यह है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता को करों के बोझ से राहत दिलाने की पहल करेंगे?
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