आम लोगों को उनकी भाषा में न्याय मिले- इस सोच को कौन नहीं सराहेगा? मगर, इस पर अमल कौन करेगा, कैसे अमल होगा, कब तक ऐसा करना मुमकिन हो सकेगा और आख़िरकार इसका रोडमैप क्या होगा? यह बताए बगैर प्रधानमंत्री की इस सदिच्छा का कोई मतलब नहीं है कि आम लोगों को उनकी भाषा में न्याय मिलना चाहिए।
प्रधानमंत्री जी! 4 करोड़ अंडरट्रायल कैदियों को न्याय कब मिलेगा?
- विचार
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- 1 May, 2022

देश की अदालतों में लंबित मामले चिंता की कितनी बड़ी वजह होने चाहिए? 4 करोड़ से ज़्यादा लंबित मामले हैं। तो प्राथमिकता लंबित मामलों का निपटारा या फिर न्याय मिलने की भाषा होनी चाहिए?
दसवीं कक्षा का छात्र अगर ऐसी इच्छा रखता है कि आम लोगों को उनकी भाषा में न्याय मिले तो यह बेहद सराहनीय है क्योंकि इसमें न्याय व्यवस्था को मज़बूत करने का नज़रिया है। मगर, यही बात सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, सभी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और क़ानूनविदों की मौजूदगी में कही जाती है और वह भी प्रधानमंत्री कहते हैं तो हम सुनहरे सपनों में खोने के बजाए न्याय व्यवस्था के वर्तमान हालात की चिंता करने को मजबूर हो जाते हैं।