चुनाव नतीजों की अंतिम तसवीर साफ़ सामने आए बगैर अगर नेपाल में नई सरकार बनाने की कवायद शुरू हो गई है तो उसकी वजह यह है कि अब नतीजों की दिशा नहीं बदल सकती। बीस नवंबर को चुनाव हुए थे और काफी कुछ दाँव पर था- सबसे ज़्यादा तो हर पार्टी और लोकतंत्र की प्रतिष्ठा ही दाँव पर थी। इधर पिछले कुछ सालों में नेपाल की राजनीति में जितना कुछ हुआ था उसने यह शक भी पैदा कर दिया था कि क्या नेपाल बगैर राजशाही चल भी पाएगा और क्या वहाँ की पार्टियाँ अपने समाज का मिजाज, वहाँ की क्षमता का बेहतर इस्तेमाल करके देश बनाने के विचार रखती भी हैं या हवाई नारों और घटिया आचरण से इस ग़रीब मुल्क के लोगों को सब्जबाग दिखाकर कुछेक लोगों के लिए लूट और सत्ता सुख भोगने का उपकरण भर हैं। हर पार्टी की प्रतिष्ठा गिरी थी। और इसमें वे नेता और पार्टी लोगों की नज़र में ज़्यादा ही गिरे थे जो किसी भी तरह भारत की तरफ़ झुके हुए थे।
नेपाल चुनाव से नया सबेरा
- दुनिया
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- 29 Nov, 2022

नेपाल चुनाव के नतीजे क्या वहाँ बड़े बदलाव लाने वाले साबित होंगे? क्या नेपाल बगैर राजशाही चल भी पाएगा? क्या देश में लोकतंत्र की जड़ें मज़बूत होंगी?
275 सीटों वाली नेपाली संसद की 165 सीटों का नतीजा तो हर सीट पर सर्वाधिक मत वाले उम्मीदवार की जीत से तय होना है जबकि बाक़ी 110 सीटें पार्टियों को मिले मत के अनुपात से बँटनी हैं। आख़िरी हिसाब आने तक जितने नतीजे आए थे उनसे साफ़ हो गया था कि नेपाली कांग्रेस की अगुआई वाला पाँच दलों का गठबंधन बहुमत पा चुका है। शुरू में कई लोगों को एक ख़तरा लग रहा था कि सबसे ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के चलते कम्युनिष्ट पार्टी नेपाल-यूएमएल आखिर में आगे आ सकता है क्योंकि एक पार्टी के तौर पर उसे सबसे ज़्यादा मत दिखते थे।