चुनाव नतीजों की अंतिम तसवीर साफ़ सामने आए बगैर अगर नेपाल में नई सरकार बनाने की कवायद शुरू हो गई है तो उसकी वजह यह है कि अब नतीजों की दिशा नहीं बदल सकती। बीस नवंबर को चुनाव हुए थे और काफी कुछ दाँव पर था- सबसे ज़्यादा तो हर पार्टी और लोकतंत्र की प्रतिष्ठा ही दाँव पर थी। इधर पिछले कुछ सालों में नेपाल की राजनीति में जितना कुछ हुआ था उसने यह शक भी पैदा कर दिया था कि क्या नेपाल बगैर राजशाही चल भी पाएगा और क्या वहाँ की पार्टियाँ अपने समाज का मिजाज, वहाँ की क्षमता का बेहतर इस्तेमाल करके देश बनाने के विचार रखती भी हैं या हवाई नारों और घटिया आचरण से इस ग़रीब मुल्क के लोगों को सब्जबाग दिखाकर कुछेक लोगों के लिए लूट और सत्ता सुख भोगने का उपकरण भर हैं। हर पार्टी की प्रतिष्ठा गिरी थी। और इसमें वे नेता और पार्टी लोगों की नज़र में ज़्यादा ही गिरे थे जो किसी भी तरह भारत की तरफ़ झुके हुए थे।