हर राज्य की तरह असम के शिक्षक संगठन आंदोलन के मूड में हैं। अस्थायी शिक्षकों, शिक्षामित्रों की स्थायीकरण, वेतनमान की मांग से जुड़ी परेशानियाँ तो हर राज्य में हैं लेकिन असम में एक नई स्थिति आ गई है। जल्दबाजी में और बड़े फ़ैसले लेने के अभ्यस्त मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने राज्य के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के 8000 स्थायी शिक्षकों के पद समाप्त करने की घोषणा की है। उनका कहना है कि सरकार की प्राथमिक शिक्षा मिशन को चलाने और उसमें तैनात ठेके के 11000 शिक्षकों को बेहतर भुगतान देने के लिए बजट में स्थायी कटौती के मद्देनज़र यह क़दम उठाना ज़रूरी है। यह फ़ैसला मई 2020 में लिए गए कैबिनेट के फ़ैसले के अनुकूल भी है।
शिक्षा की सूई उलटी दिशा में! तो क्या सिर्फ़ इस पर राजनीति हो रही है?
- शिक्षा
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- 17 Nov, 2022

शिक्षा की हालत सुधर रही है या ख़राब हो रही है? दिल्ली में शिक्षा के हालात पर राजनीति क्यों है? असम में स्थायी शिक्षकों के पद ख़त्म क्यों किये जा रहे हैं?
असम सर्व शिक्षा अभियान मिशन के ये शिक्षक 2017 से अध्यापन में लगे हैं और पूरी तनख्वाह नहीं पाते। सामान्य तौर पर ऐसी ख़बर की ज्यादा विस्तार से चर्चा की जरूरत नहीं रहती लेकिन अभी इसकी चर्चा करना कई कारणों से ज़रूरी है। एक तो यह कि यह ‘बोल्ड’ क़दम है। शिक्षक संगठन ही नहीं, कोई भी इसका हिसाब रख सकता है कि फ़ैसले का एक क़दम उठाया तो दूसरा पूरा किया गया या नहीं। लेकिन उससे भी ज़्यादा दिलेरी इस स्वीकारोक्ति में है कि हम किस तरह के संकट में हैं और ख़र्च का इस तरह का बोझ नहीं उठा सकते।