अगर नोटबंदी को लेकर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला छह साल से ज्यादा समय बीतने पर भी चर्चा और राजनैतिक हंगामा बटोर रहा है तो तय मानिए कि अगले छह वर्षों तक ही नहीं कई दशकों तक इसके औचित्य और परिणामों के साथ यह फ़ैसला करने वाले नरेंद्र मोदी के राजनैतिक-आर्थिक विवेक पर चर्चा होती रहेगी। इसका मुख्य कारण तो यही है कि पूरी अर्थव्यवस्था पर इस फैसला का जितना और जैसा असर हुआ और अभी भी महसूस किया जा रहा है वैसा इस देश के आर्थिक इतिहास में बहुत कम फैसलों का हुआ है। और हैरानी की बात नहीं है कि फैसला करने और उसे लागू करने में आई शुरुआती परेशानियों के दौर में किए गए कुछ बदलावों के वक्त प्रधानमंत्री ने जो कुछ बातें राष्ट्र से कही थीं, जिनमें एक पखवाड़े में काला धन न निकालने पर चौराहे पर फांसी देने वाला बहुचर्चित बयान भी था, उनको छोड़कर बीते छह साल में खुद उनकी तरफ़ से कोई बयान या दावा नहीं आया है।
नोटबंदी के फ़ैसले को कोई अच्छा क्यों नहीं कहता?
- विचार
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- 4 Jan, 2023

वैधता पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आ गया तो इस पर सवाल नहीं उठने चाहिए। लेकिन क्या अब तक सरकार की तरफ़ से ही कोई यह कहने की स्थिति में है कि नोटबंदी का फ़ैसला अच्छा था? कोई भी फ़ायदा गिनाया जा सकता है?
सरकारी आँकड़ों के आधार पर या अपनी सूझ से अधिकारियों, भाजपा के पदाधिकारियों, मीडिया के लाल-बुझक्कड़ों और भक्तों की टोली जरूर कभी काला धन कम होने, कभी कर वसूली बढ़ जाने, कभी कर चोरी कम होने, कभी इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन बढ़ने, कभी आतंकवाद की कमर टूटने तो कभी (काला धन वाले) बड़े-बड़े लोगों की हालत ख़राब होने जैसे नतीजों की घोषणा करते रहे हैं।