अगर नोटबंदी को लेकर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला छह साल से ज्यादा समय बीतने पर भी चर्चा और राजनैतिक हंगामा बटोर रहा है तो तय मानिए कि अगले छह वर्षों तक ही नहीं कई दशकों तक इसके औचित्य और परिणामों के साथ यह फ़ैसला करने वाले नरेंद्र मोदी के राजनैतिक-आर्थिक विवेक पर चर्चा होती रहेगी। इसका मुख्य कारण तो यही है कि पूरी अर्थव्यवस्था पर इस फैसला का जितना और जैसा असर हुआ और अभी भी महसूस किया जा रहा है वैसा इस देश के आर्थिक इतिहास में बहुत कम फैसलों का हुआ है। और हैरानी की बात नहीं है कि फैसला करने और उसे लागू करने में आई शुरुआती परेशानियों के दौर में किए गए कुछ बदलावों के वक्त प्रधानमंत्री ने जो कुछ बातें राष्ट्र से कही थीं, जिनमें एक पखवाड़े में काला धन न निकालने पर चौराहे पर फांसी देने वाला बहुचर्चित बयान भी था, उनको छोड़कर बीते छह साल में खुद उनकी तरफ़ से कोई बयान या दावा नहीं आया है।