पश्चिम बंगाल की राजनीति में लंबे समय से हाशिए पर रही कांग्रेस ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अपने पाँव पर खड़े होने की कवायद शुरू कर दी है। बीते कई चुनावों में वाममोर्चा के साथ हाथ मिला कर लड़ने के बावजूद उसका प्रदर्शन लचर ही रहा है। बीते विधानसभा चुनाव में तो उसका खाता तक नहीं खुल सका था। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर वह अगले साल भी तालमेल का दरवाजा खुला रख कर संगठन को मज़बूत करने की कवायद में जुट गई है। हाल में दिल्ली में राहुल गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बंगाल में पार्टी की दशा-दिशा और भविष्य की रणनीति पर राज्य के प्रमुख नेताओं के साथ बैठक की थी।
प्रदेश कांग्रेस के एक नेता बताते हैं कि बैठक में अधीर चौधरी के अलावा दीवा दासमुंशी, प्रदीप भट्टाचार्य, सांसद ईशा खान चौधरी, अभिजीत मुखर्जी, संतोष पाठक और अमिताभ चक्रवर्ती के अलावा प्रदेश अध्यक्ष शुभंकर सरकार शामिल थे। बैठक में केंद्रीय नेताओं का कहना था कि तालमेल के मुद्दे पर ध्यान दिए बिना पहले संगठन को मज़बूत करना ज़रूरी है। प्रदेश के नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व को बंगाल में सांगठनिक दिक्कतों और मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति की भी जानकारी दी।
बैठक में शामिल एक नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त बताया कि केंद्रीय नेतृत्व की बातों से यह साफ़ हो गया है कि बंगाल में अब पार्टी तृणमूल कांग्रेस के साथ कोई चुनावी तालमेल नहीं करेगी। इससे स्थानीय नेताओं का असमंजस कुछ हद तक दूर हो गया है। उस नेता का कहना था कि ममता ने सत्ता में आने के बाद राज्य में कांग्रेस को जितना नुक़सान पहुंचाया है उतना तो भाजपा ने भी नहीं पहुंचाया है।
राहुल गांधी समेत दूसरे केंद्रीय नेताओं ने बंगाल के दौरे पर भी आने का भरोसा दिया है। प्रदेश नेताओं का कहना था कि हाल के कुछ उपचुनावों में अकेले लड़ने के बावजूद पार्टी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकी है। बंगाल में विधानसभा की 294 सीटें हैं। इनमें से पार्टी ने 90 सीटों पर जीत की संभावना बताते हुए उन पर खास जोर देने की नीति बनाई है।
प्रदेश कांग्रेस के एक नेता बताते हैं कि बीते लोकसभा चुनाव के नतीजों को ध्यान में रखते हुए विधानसभा की कम से कम 20 सीटों पर पार्टी जीतने की स्थिति में है। अब धीरे-धीरे इसे बढ़ा कर 90 तक पहुँचाने की रणनीति पर काम चल रहा है।
पार्टी के नेताओं ने साफ़ किया है कि अगले चुनाव में पार्टी एकला चलो पर ही ज़्यादा ध्यान देने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। इसके साथ ही वाममोर्चा के साथ चुनावी तालमेल की संभावना का भी ध्यान रखा जा रहा है। एक नेता कहते हैं कि पहले अपने पांव तो मज़बूत किए जाएं, उसके बाद ही तालमेल के बारे में सोचा जा सकता है। खुद मज़बूत नहीं होने की स्थिति में तालमेल से भी खास फायदा नहीं होगा। बीते कई चुनावों में यह बात साफ़ हो चुकी है।
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