केंद्रीय मंत्री सुभाष सरकार ने नोबेल पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार रवींद्रनाथ टैगोर पर एक बेहद विवादास्पद बयान दिया है, जिसके बाद से उनकी काफी आलोचना हो रही है। वे ख़ास तौर पर पश्चिम बंगाल में लोगों के निशाने पर हैं, जहां टैगोर बंगाली अस्मिता के प्रतीक हैं।
सुभाष सरकार का मानना है कि रवींद्रनाथ का रंग काला था, जिस वजह से बचपन में परिवार के लोग उन्हें गोद लेने से कतराते थे।
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रवींद्रनाथ ठाकुर का रंग काला था। इस कारण उनके बचपन में परिवार के लोग उन्हें गोद नहीं लेते थे। पर बाद में उन्होंने नोबेल पुरस्कार जीता और देश को गौरवान्वित किया।
सुभाष सरकार, केंद्रीय मंत्री
उन्होंने इसके आगे कहा, "गोरापन भी दो तरह का होता है, कुछ लोग लाली लिए हुए गोरे होते हैं तो कुछ पीलेपन के साथ गोरे होते हैं। टैगोर की गोराई लाली लिए हुई थी।"
रवींद्रनाथ ठाकुर ने विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना 1921 में की थी।
इस पर पश्चिम बंगाल में तूफान मचा हुआ है। साहित्यिक, बौद्धिक और राजनीतिक हलकों में इसका विरोध हो रहा है।
विवाद
कोलकाता स्थित रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के पूर्व उप कुलपति पवित्र सरकार ने कहा, "यह सच है कि रवींद्रनाथ उतने गोरे नहीं थे जितने उनके परिवार के दूसरे लोग, पर वे काले भी नहीं थे। इसके अलावा टैगोर परिवार में बच्चों की देखभाल आया किया करती थीं। उन दिनों बच्चों को गोद में लेने की परंपरा टैगोर परिवार में नहीं थी।"
कोलकाता के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर उदयन बंद्योपाद्याय ने कहा कि "टैगोर की त्वचा के रंग पर तो बहस होनी ही नहीं चाहिए। मैंने सुना है कि एक अकादमिक विद्वान ने कहा है कि टैगोर एकदम गोरे थे। चाहे अकादमिक विद्वान हों या राजनेता, क्या टैगोर के रंग पर बात हो सकती है? क्या यह कोई मुद्दा है?"
क्या कहा था अमित शाह ने?
याद दिला दें कि इसी तरह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि रवींद्रनाथ टैगोर के जन्मस्थान बोलपुर का विकास नहीं हुआ है, उनकी सरकार आई तो विकास काम करेगी।
उन्होंने सार्वजनिक कार्यक्रम में ऐसा दो बार कहा था।
इस पर काफी विवाद हुआ था क्योंकि टैगोर का जन्म बोलपुर में नहीं, कोलकाता में हुआ था।
लोगों का कहना था कि केंद्रीय मंत्री को यह भी नहीं पता कि टैगोर का जन्म कहां हुआ था और उनकी पार्टी बंगाली अस्मिता की बात करती है।
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