पश्चिम बंगाल में नारद घूस कांड में तृणमूल कांग्रेस के चार विधायकों की गिरफ़्तारी के बाद यह सवाल उठना लाज़िमी है कि बाकी के दो विधायकों की गिरफ़्तारी क्यों नहीं हो रही है। सीबीआई ने सोमवार को जिन्हें गिरफ़्तार किया, वे सब तृणमूल कांग्रेस के विधायक हैं, जिनमें दो राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। लेकिन इसी कांड में बीजेपी के दो विधायकों शुभेंदु अधिकारी और मुकुल राय से सीबीआई ने पूछताछ क्यों नहीं की है, उन्हें गिरफ़्तार क्यों नहीं किया है।
बता दें कि 2016 में मैथ्यू सैमुअल नामक पत्रकार ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया। इसमें वह खुद को इमपेक्स कंसलटेन्सी सर्विसेज का प्रमुख बताते हैं, वह कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में निवेश करना चाहते हैं। इस सिलसिले में वह सात सांसदों, चार विधायकों और एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी से मदद मांगते हैं, इसके बदले में वह सबको तीन लाख रुपए या इससे थोड़ा ज़्यादा रकम बतौर घूर देते हैं। यह सबकुछ कैमरे के सामने होता है।
बाद में इसे बांग्ला टीवी चैनलों पर ऑपरेशन नारद के नाम से चलाया गया।
सीबीआई जाँच
जिन लोगों के नाम इसमें आए, वे सभी तृणमूल कांग्रेस से जुड़े थे। बाद में सांसद सुलतान अहमद की मौत हो गई।
सीबीआई ने 11 लोगों के नाम मामला दर्ज किया और जाँच शुरू की। इनमें से सांसद मुकुल राय, तत्कालीन सांसद शुभेंदु अधिकारी और विधायक शोभन चट्टोपाध्याय ने तृणमूल कांग्रेस छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए।
मदन मित्र और शोभन देव ने टीएमसी छोड़ा, बीजेपी में गए, लेकिन वापस टीएमसी में आ गए।
मदन मित्र और शोभन चट्टोपाध्याय टीएमसी में लौट आए, उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया है। लेकिन मुकुल राय और शुभेंदु अधिकारी बीजेपी में ही हैं, उन्हें गिरफ़्तार नहीं किया गया है।
मुकुल राय होने का महत्व!
मुकुल राय का मामला अधिक दिलचस्प है। वरिष्ठ अधिकारी रंजीत कुमार की अगुआई में सीबीआई की टीम ने कोलकाता के एल्गिन रोड स्थिति मुकुल राय के आवास पर छापा मारा।
रंजीत कुमार ने बाद में पत्रकारों से कहा कि पुलिस अधिकारी एस. एम. एच. मिर्ज़ा के बयान के आधार पर मुकुल राय के यहाँ छापा मारा गया।
नारद घूस कांड के स्टिंग ऑपरेशन में मुकुल राय पाँच लाख रुपए की घूस लेते हुए दिखाए जाते हैं।
पुलिस में दायर एफ़आईआर में कहा गया था कि मुकुल राय ने मैथ्यू सैमुएल से रुपए लिए या उन्हें अपने एक सहयोगी को सौंप देने को कहा। स्टिंग ऑपरेशन के टेप में मुकुल राय 24 तारीख को फिर मिलने और पूरी रकम देने की बात कहते हैं। वह यह भी कहते हैं कि 'पांच' मिल गए, अगली बार और 'दस' ले आना। मुकुल राय इसके बदले हर तरह के सहयोग का आश्वासन देते हैं।
एफ़आईआर में ये बातें दर्ज हैं।
लेकिन यह अप्रैल 2017 की बात है।
3 नवंबर 2017 को मुकुल राय बीजेपी में शामिल हो गए। इसके बाद लंबे समय तक सीबीआई ने मुकुल राय से कोई संपर्क नहीं किया।
शुभेंदु अधिकारी
सितंबर 2019 में एक बार फिर सीबीआई ने मुकुल राय को कोलकाता स्थित अपने दफ़्तर बुलाया, उन्हें नोटिस भेजा और उनसे कुछ काग़ज़ात मांगे। सीबीआई ने उनसे पूछताछ की, जिसके बारे में प्रेस से कुछ कहने से इनकार कर दिया।
इसी तरह शुभेंदु अधिकारी को भी नारद घूस कांड के स्टिंग ऑपरेशन में नोटों की गड्डियाँ लेते हुए दिखाय गया था। इसे पश्चिम बंगाल बीजेपी ने अपने आधिकारिक वेबसाइट पर लगा रखा था।
लेकिन जब शुभेंदु अधिकारी बीजेपी में शामिल हो गए तो उस वीडियो को हटा दिया गया।
शुभेंदु अधिकारी के ख़िलाफ़ सीबीआई ने कोई कार्रवाई अबतक नहीं की है। उसका कहना था कि चूंकि वह सांसद थे, लिहाज़ा उन पर मुकदमा चलाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष से अनुमति लेनी होगी।
लेकिन सवाल यह उठता है कि तृणमूल विधायकों के मामले में विधानसभा अध्यक्ष से अनुमति क्यों नहीं ली गई।
मुकुल राय और शुभेंदु अधिकारी इस समय विधानसभा सदस्य हैं, तो क्या सीबीआई ने जिस तरह टीएमसी विधायकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की, क्या वह अधिकारी के ख़िलाफ़ वैसी कार्रवाई करेगी?
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