जंतर मंतर पर एक और विरोध जारी है। यह न मज़दूरों का है, न किसानों का। न दलितों का, न मुसलमानों का। छात्रों का भी नहीं। ये सब समाज के वे तबके हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें आंदोलनों का व्यसन है या बीमारी है।अपना काम धाम छोड़कर सड़क पर बार बार आने के उनके कारण हैं। उनपर बात न करके उन्हें आदतन आंदोलनकारी कहकर उनके विरोध को बदनाम करने की कोशिश की जाती रही है।