स्कूलों में प्रार्थना हो या नहीं? यह बहस एक बार फिर छिड़ गई है। संदर्भ है पीलीभीत के एक स्कूल के हेडमास्टर का निलंबन इस आरोप के बाद कि वह छात्रों को एक धार्मिक प्रार्थना करने को मजबूर कर रहे थे। मालूम हुआ कि यह मदरसे की प्रार्थना वास्तव में इक़बाल की लिखी मशहूर दुआ है जिसे सुनते हुए पीढ़ियाँ बड़ी हुई हैं, मुसलमान और ग़ैर मुसलमान दोनों और किसी को कोई ऐतराज़ कभी न हुआ। किसी ग़ैर मुसलमान का धर्म इस दुआ, या प्रार्थना को सुनकर या गाकर भ्रष्ट हुआ हो यह शिकायत किसी ने नहीं की। लेकिन हम एक अजीब से वक़्त में हैं जिसमें प्रेम और सद्भाव के शब्द सुनकर एक पक्ष हिंसा पर उतारू हो जाता है।
स्कूलों में धार्मिक प्रार्थना विवादित तो गाँधीजी के सर्वधर्म का चलन क्यों नहीं?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 28 Oct, 2019

पीलीभीत के एक स्कूल के हेडमास्टर पर यह आरोप लगने के बाद कि वह छात्रों को एक धार्मिक प्रार्थना करने को मजबूर कर रहे थे, स्कूलों में प्रार्थना को लेकर बहस छिड़ गई है। ऐसी ही समस्या का समाधान अमेरिका और यूरोप में मौन के अधिकार का प्रावधान करके किया गया। छात्र मौन रहकर अपनी प्रार्थनाएँ कर सकते हैं। भारत में गाँधीजी ने सर्वधर्म प्रार्थना का आविष्कार करके एक राह सुझाई थी। क्या यह कारगर नहीं होगी?
मुझे 2007 का गुजरात का एक वाक़या याद आ गया। विधान सभा चुनाव का प्रचार ज़ोरों पर था। हमारी दोस्त शबनम हाशमी और उनकी संस्था ‘अनहद’ ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के विधान सभा क्षेत्र में एक अभियान चलाया। मुन्ना भाई के गुलाबी मुहब्बती तर्ज़ पर एक जत्था हर किसी को गुलाब बाँटते हुए घूम रहा था। जत्थे के आगे एक बैनर था जिसपर गाँधी की मुस्कराती तस्वीर थी। उनका कौन-सा उद्धरण था, यह याद नहीं लेकिन सामाजिक सद्भाव से जुड़ा उनका कोई संदेश ही था। कुछ दूर जाने पर जत्थे को एक आक्रामक झुंड ने घेर लिया। उस झुंड में से एक ने गाँधी की तस्वीरवाले बैनर पर एक लात लगाई। किसी ने गुलाब छीन लिए। धमकी भरी आवाज़ आई, ‘अभी प्रेम सूझ रहा है!’ हमारे साथ जुलेखा कैमरा लिए थीं, तस्वीरें उतारती। किसी ने उनका कॉलर पकड़कर उन्हें मारा और कैमरा छीन लिया। उसकी चिप निकालकर काफ़ी बहस के बाद कैमरा वापस किया।