‘आख़िर नाम में क्या रखा है?’, लिखनेवाला भारतीय न था, यह तो सवाल से ही मालूम हो जाता है। भले ही सदियों पहले उसने यह लिखा हो और वह ऐसे मुल्क़ का बाशिंदा हो, जिसने भारत को ख़ुद को देखने का तरीक़ा सिखाने की कोशिश की। लेकिन जो भारत का है, ख़ासकर उत्तर भारत का, उसे मालूम है कि नाम में ही सब कुछ रखा है।