‘आख़िर नाम में क्या रखा है?’, लिखनेवाला भारतीय न था, यह तो सवाल से ही मालूम हो जाता है। भले ही सदियों पहले उसने यह लिखा हो और वह ऐसे मुल्क़ का बाशिंदा हो, जिसने भारत को ख़ुद को देखने का तरीक़ा सिखाने की कोशिश की। लेकिन जो भारत का है, ख़ासकर उत्तर भारत का, उसे मालूम है कि नाम में ही सब कुछ रखा है।
भारतीय चुनाव में ग़लत नाम का ख़तरा
- वक़्त-बेवक़्त
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- 5 May, 2019

चुनाव में हिंदू के अलावा अगर आप कुछ और हैं या साबित कर दिए जाएँ कि और हैं, तो आपको मतदाताओं के बहुलांश के चित से उतार दिया जा सकता है: यह जो है, वह आपमें से नहीं है। इसलिए वह आपकी भी नहीं हो सकती। फिर आप उसे अपना क्यों बनाएँ?
अतिशी मरलेना कौन हैं? एक पार्टी ने बताया, अरे, आपको नाम से मालूम नहीं पड़ता? यह ज़रूर ईसाई है! दूसरी ने, जो शायद ईसाइयों को ज़्यादा जानती हो, कहा कि यह नाम कुछ अजीब-सा है, ईसाई नहीं, यह यहूदी है। आप चाहें तो शेक्सपीयर की तरह कह उठें, अरे, नाम में क्या है? या भारतीय कवि की तरह, ‘जात न पूछो साधु की’ लेकिन अतिशी को मालूम है कि राजनीतिज्ञ साधु नहीं और जो ख़ुद को साधु कहते हैं उन्हें भी चुनाव के वक़्त बताना पड़ता है कि वे ठाकुर हैं! तो इस वक़्त के भारत में कवि काम न आएँगे। इसलिए उन्होंने प्रेस के ज़रिए जनता को बताया कि मेरा नाम अतिशी मरलेना है, लेकिन इससे भ्रम में न पड़ जाइए कि मैं ईसाई या यहूदी हूँ, मैं पूरी हिंदू हूँ, बल्कि और भी पक्की क्योंकि मैं क्षत्रिय हिंदू हूँ। दुष्प्रचार के झाँसे में न आइए।
फिर उन्होंने नाम का राज बताया।