आशुतोष ने आम आदमी पार्टी के बदल जाने पर अफ़सोस ज़ाहिर किया है। जिस शरद पवार का नाम भ्रष्ट राजनेताओं की सूची में आम आदमी पार्टी के जनक आंदोलन ‘इंडिया अगेन्स्ट करप्शन’ ने काफ़ी ऊपर रखा था, उनके साथ मंच साझा करने को आज पार्टी बाध्य है। उसी तरह परम भ्रष्ट घोषित कर दिए गए लालू यादव से हाथ मिलाने में आम आदमी पार्टी को गुरेज़ नहीं है। इसमें वह रॉबर्ट वाड्रा का नाम भी जोड़ सकते थे। आज अरविंद केजरीवाल उसी कांग्रेस के साथ दिल्ली और बाहर भी गठजोड़ को तैयार हैं, जिसके संहार के लिए ऐसा लगता था, उन्होंने अवतार लिया है। आशुतोष का कहना है कि आम आदमी पार्टी के अस्तित्व का तर्क था- भ्रष्टाचार विरोध। आज अगर भ्रष्टाचार उसके लिए मुद्दा ही नहीं रह गया तो क्या यह न मान लिया जाए कि उसका वजूद ही बदल गया है। नाम तो वही है लेकिन पार्टी अब वह नहीं है।
आर्थिक भ्रष्टाचार से कहीं बड़ा नैतिक भ्रष्टाचार है बहुसंख्यकवाद
- वक़्त-बेवक़्त
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- 18 Feb, 2019

जिस तरह यह अधिनायकवादी बहुसंख्यकवाद एक-एक कर सारी जनतांत्रिक संस्थाओं को ध्वस्त कर रहा है, जिस तरह सेना का इस्तेमाल इस बहुसंख्यकवादी राष्ट्रवाद के लिए किया जा रहा है, वह अगर जारी रहा तो अभी तो राजनीति की दिशा ही बदलती दीखती है, देश के बदलते देर नहीं लगेगी।
आशुतोष इस बदलाव में देश के उन सपनों की मौत देखते हैं, जो आम आदमी पार्टी ने और उसके पहले के आंदोलन ने देश में जगा दिए थे। अब जब आम आदमी पार्टी दूसरी पार्टियों की शक्ल में ढल गई है तो उन सपनों को कौन पूरा करेगा?