आनंद तेलतुमडे फिर से आज़ाद हैं। पुणे की अदालत ने उन्हें पुलिस की गिरफ़्त से इसलिए आज़ाद किया कि उच्चतम न्यायालय ने उन्हें चार हफ़्ते की मोहलत दी थी कि वह उपयुक्त अदालतों में अपनी ज़मानत की अर्ज़ी दे सकें। उन्होंने पुणे की अदालत में ज़मानत का आवेदन किया जो नामंज़ूर कर दिया गया। लेकिन क़ानूनन उनके पास उच्च न्यायालय और फिर उच्चतम न्यायालय तक जाने का हक़ है। इस बीच ही उन्हें रात के तीन बजे हवाई अड्डे पर गिरफ़्तार करने की जो जल्दबाज़ी पुलिस ने दिखाई, उसके मायने समझना हम सबके लिए ज़रूरी है। वह यह है कि हम ऐसे वक़्त में हैं जिसमें राज्य की सारी एजेंसियाँ नागरिक को उसके अधिकारों से ही वंचित करने के लिए नहीं बल्कि उनका उपयोग करने के मौक़े भी उनसे छीन लेने को आमादा है।
आनंद तेलतुमडे की आज़ादी हमारे सोचने का अधिकार का मामला है
- वक़्त-बेवक़्त
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- 4 Feb, 2019

हमें यह समझना भी ज़रूरी है कि आनंद निशाना ही इसलिए बनाए गए हैं कि वे अपने अध्ययन और शोध के बल पर वह बोल और लिख पा रहे हैं जो हम और आप उसके अभाव में नहीं बोल, लिख सकते। कम से कम उस अधिकार के साथ नहीं। आनंद दलित होने की मुश्किल और दलित विचारक होने से जुड़े सारे जोख़िम को पहचानते हैं। इसलिए वे कहीं अधिक ख़तरनाक हैं।
आनंद अध्यापक हैं और लेखक भी। उनपर राज्य के इस हमले का रिश्ता क्या उनके अकादमिक व्यक्तित्व से है? या, यह उनका अतिरिक्त कार्य है जो उनकी अकादमिकता के दायरे से बाहर है, भले ही इसे उनका नागरिक पक्ष क्यों न कहें? लेकिन हमें यह समझना भी ज़रूरी है कि आनंद निशाना ही इसलिए बनाए गए हैं कि वे अपने अध्ययन और शोध के बल पर वह बोल और लिख पा रहे हैं जो हम और आप उसके अभाव में नहीं बोल, लिख सकते। कम से कम उस अधिकार के साथ नहीं।