आख़िरकार जॉर्ज फ़र्नांडिस विदा हुए। कुछ वर्षों से वे थे भी और नहीं भी थे। एक व्यक्ति जिसका नाम डाइनामाइट केस से जुड़ा हो और जिस वजह से ही वह धमाकेदार माना जाता हो, उसके आख़िरी वर्ष इस तरह असहाय अवस्था में गुज़रें, इससे बढ़कर अफ़सोस की बात कुछ और हो नहीं सकती। तो, एक तरह से यह उनकी मुक्ति है।
सत्ता में बने रहने के लिए जॉर्ज ने किया सिद्धांतों से समझौता
- विचार
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- 31 Jan, 2019

भारत में मृत्यु के बाद व्यक्ति की समीक्षा को बुरा माना जाता है। प्रायः उन पक्षों को याद किया जाता है जो सकारात्मक हैं। ऋणपक्ष को बाद के लिए छोड़ दिया जाता है। इसलिए आज जॉर्ज को आपातकाल के हीरो के रूप में याद किया जा रहा है। मृत्यु के इस क्षण में यह याद करना अप्रीतिकर लग सकता है कि जॉर्ज संघ और बीजेपी के सबसे बड़े पैरोकार बन कर उभरे।