पिछले चार वर्षों से हर गणतंत्र दिवस पर मुझे कोई दस साल पहले के गुजरात की याद आती रही है। 2010 भारतीय संविधान के साठ साल पूरे होने का साल था। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने इसका उत्सव मनाने के लिए सौराष्ट्र के इलाक़े में 'संविधान सम्मान यात्रा' का आयोजन किया। हाथी पर संविधान की विशालकाय अनुकृति रखकर उसका जुलूस निकाला गया। यही नहीं, 36 सौ स्त्रियाँ अपने माथे पर कलश के ऊपर संविधान की अनुकृतियाँ लेकर जुलूस की शोभा बढ़ा रही थीं।
संवैधानिकता या गणतांत्रिकता पर ठहर कर सोचने की ज़रूरत
- वक़्त-बेवक़्त
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- 28 Jan, 2019

क्या संविधान किसी एक भू-भाग पर किसी जनसमुदाय के प्रभुत्व का दस्तावेज़ है? क्या यह विविध विचारों, मान्यताओं, मतों, जीवन शैलियों के लोगों के साथ रहने की इच्छा की अभिव्यक्ति नहीं है? इन सत्तर सालों में क्या हर दूसरा अपने दूसरे को पहचान पाया है? क्या संविधान के सत्तरवें साल में एक बार इस पर ठहर कर सोचने की आवश्यकता नहीं है?
जिस हाथी पर संविधान की नक़ल रखी गई थी, वह भी कोई मर्त्य प्राणी न था, उसे हाथी न कहकर ऐरावत कहा गया था। जुलूस के बाद पवित्र ग्रन्थ की पूजा-अर्चना का कार्यक्रम सुरेंद्रनगर के टाउनहॉल में था।
'टेलीग्राफ़' अख़बार ने बताया कि हिंदू धार्मिक प्रतीकों और मंत्रोच्चार के बीच यह यात्रा संपन्न हुई। यात्रा के प्रवर्तक, तब के गुजरात के मुख्यमंत्री ने संतोष और हर्षपूर्वक कहा, 'आंबेडकर की आत्मा अवश्य ही इस विलक्षण यात्रा के लिए हमें आशीर्वाद दे रही होगी।'
'टेलीग्राफ़' ने इस कार्यक्रम की प्रतीक योजना और आंबेडकर के विचारों के बीच के अंतर को लक्ष्य करते हुए इसमें छिपी विडंबना की ओर ध्यान दिलाया। बाबा साहब ने हिंदू धर्म आख़िरकार छोड़ दिया था और आत्मा जैसी किसी वस्तु या विचार में निश्चय ही उनकी आस्था न थी। लेकिन ऐसे बारीक फ़र्क़ पर सामान्य जन ध्यान नहीं देते, यह उस मजमेबाज़ को पता था जिसने यह स्वांग रचाया था।
स्वयंसेवक के लिए संविधान पूज्य-पवित्र ग्रन्थ कैसे!
कई लोगों को आश्चर्य हुआ कि एक स्वयंसेवक ने संविधान को पूज्य और पवित्र ग्रन्थ क्योंकर घोषित किया। कुछ लोगों ने कहा कि वह नेता अपने ऊपर 2002 के मुसलमानों के क़त्लेआम के दाग़ धोने के लिए ऐसा कर रहे हैं। लेकिन उसे तो कभी दाग़ माना ही नहीं गया, न उसे लेकर किसी प्रकार का संकोच कभी उस नेता में दिखलाई पड़ा था। एक व्याख्या यह थी कि यात्रा के पहले सौराष्ट्र में दलितों के ऊपर अत्याचार की कई घटनाएँ हो चुकी थीं।
- बार-बार यह कहा जाता रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस संविधान को भारतीय आत्मा के अनुरूप नहीं मानता। आशंका ज़ाहिर की जाती रही है कि पूर्ण बहुमत आने पर भारतीय जनता पार्टी संविधान को बदल देगी या ख़ारिज कर देगी।
संविधान बदलने की कोशिश
लोग नहीं भूले हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने संविधान की समीक्षा करके बदलने की कोशिश की थी। सवाल यह है कि पिछले समय के मुक़ाबले अधिक ताक़त होने पर भी क्यों इस बार संविधान की समीक्षा का कोई प्रयास नहीं किया गया। इसका उत्तर 2010 की गुजरात की ऐरावत पर 'संविधान सम्मान यात्रा' में है। वह है संविधान को एक धार्मिक, पवित्र दर्जा देकर पूजनीय बना दिया जाए और इस तरह उसे रोज़मर्रापन के धूल-धक्कड़ से दूर कर देना।
- एक और तसवीर तक़रीबन भूली जा चुकी है। वह है मई 2014 में संसद में प्रवेश करते समय उसकी सीढ़ियों पर मत्था टेककर उसके प्रति श्रद्धा-निवेदन करते हुए प्रधानमंत्री की छवि। इसे देखकर अनेक लोग भावुक हो उठे थे।