दीवाली की रात और उसकी अगली सुबह दिल्ली में वायु की गुणवत्ता भीषण रूप से बुरी बताई गई। उस रात दिल्ली के अलग-अलग इलाक़ों से पिछले साल के मुक़ाबले कहीं आधिक उत्साह के साथ पटाखे छोड़ने की ख़बरें आईं। उत्साह से अधिक ठीक इसे प्रतिशोध कहना होगा। लेकिन क्या यह अपने आप से ही तो 'बदला' नहीं लिया जा रहा था!
दीवाली: जमकर पटाखे फोड़कर किससे 'बदला' लिया गया?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 16 Nov, 2020

दिल्ली के बाहर भी कुछ लोगों ने कहा कि वे तो पटाखे फोड़ेंगे ही, सर्वोच्च न्यायालय कुछ भी क्यों न कहे। जब उनसे कहा गया कि वैज्ञानिक भी कह रहे हैं कि कोरोना महामारी और बढ़ते प्रदूषण के बीच पटाखे और नुक़सानदेह साबित होंगे तो जवाब आया, “आप लोग बकरीद पर कुछ क्यों नहीं बोलते?” यह जवाब बेतुका था लेकिन दीवाली के पूरे दिन ट्विटर पर “बकरीद” ही छाई रही।
दिल्ली सरकार के मुताबिक़, इस दीवाली पर दिल्ली के प्रदूषण और कोरोना महामारी को देखते हुए पटाखों पर पाबंदी थी। लेकिन शासक दल के नेताओं ने, जो यों तो विज्ञापन पर जाने कितना ख़र्च करते रहते हैं, इसके बारे में जनता से बात करके उसे समझाने की कोई कोशिश नहीं की। बीजेपी के कुछ नेता इस निर्णय के विरोध में पटाखे मुफ्त बाँटते हुए नज़र आए।