लोकतंत्र में किसी नेता का चुनाव करने के लिए जनता/वोटरों के पास क्या विकल्प हो सकते हैं? वह कौन सा ‘टिपिंग पॉइंट’ होता होगा जहां से जनता किसी व्यक्ति विशेष को अपना नेता मान लेती होगी? संभवतया किसी नेता की ‘छवि’ वह पहलू है जिससे जनता को चुनाव करने में आसानी होती है।
देश चलाने के लिए लीडर चाहिए या 'चीयरलीडर'?
- विमर्श
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- 31 Jul, 2022

देश का नेतृत्व कैसा होना चाहिए? महंगाई, बेरोजगारी, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों को सुलझाए या फिर चुनाव में वादे को भूल जाए? नेतृत्व का आकलन क्या उसके वादों को पूरा करने के आधार पर नहीं होना चाहिए?
इस प्रक्रिया में मीडिया, ‘अफवाह’ और ‘सूचना’ के सही मिश्रण से किसी सामान्य नेता को भी जनता का विश्वास हासिल करने में मदद कर सकता है (जैसे किसी नेता को अवतार, संत या तपस्वी साबित करने के कारनामे) और इसी तरह से किसी विशेष गुण वाले नेता को हाशिये पर भी धकेला जा सकता है (जैसे किसी नेता को कमजोर, बचकाना, परिवारवादी और भ्रष्ट साबित करने के कारनामे)।
आज भारत में मीडिया का संचालन बहुत बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घराने कर रहे हैं। जिनका अस्तित्व सिर्फ़ मीडिया में न होकर अन्य कई व्यापारिक गतिविधियों में भी होता है। सरकार के पास ईडी और सीबीआई जैसे ‘मज़बूत’ संस्थागत ढाँचे उपलब्ध हैं जिन्हें केन्द्रीय नेतृत्व अपने निजी फायदे के लिए कठपुतली या ‘तोते’ की तरह इस्तेमाल कर सकता है। अफवाह और सूचना, सोशल मीडिया के अंतर्निहित हथियार हैं। किसी अफवाह या झूठी सूचना की सोशल मीडिया में गैर-आनुपातिक बहुलता, पहले लॉन्च होने की काबिलियत और पहुँच ही उसे एक बड़े वर्ग के लिए ‘सत्य’ या ‘वास्तविक सूचना’ का आभासी एहसास दिला देती है। सोशल मीडिया में बहुलता में वही दल या नेता रह या दिख सकता है जिसके पास हाइटेक लेवियाथन कंपनियों के पेट भरने के लिए अत्यधिक धन की उपलब्धता हो। चूँकि ईडी और सीबीआई जैसे संस्थान सत्ता पक्ष के नेताओं को हाथ भी नहीं लगाते इसलिए धन की गैरआनुपातिक बहुलता सत्ता पक्ष के पास ही होती है। राजनैतिक पार्टियों को चंदा देने वाले बड़े धनपति ज्यादा से ज्यादा धन सत्ताधारी पार्टी को ही देते हैं। यह बात मेरे कहने के लिए नहीं छोड़ी जानी चाहिए कि वो ऐसा क्यों करते होंगे?