भारत एक ‘प्रतिनिधि लोकतंत्र’ है जहां जनता भारत के प्रतिनिधियों का (प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष) चुनाव करती है ताकि राष्ट्र का संचालन उचित तरीके से किया जा सके। एक प्रतिनिधि-लोकतंत्र में जनता के बाद सबसे बड़ी स्थिति जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों की होती है। ये प्रतिनिधि भारत की संसद में दो भागों में बंटे हुए हैं। पहला राज्यसभा या उच्च सदन जिसमें सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष तरीके से किया जाता है और दूसरा लोकसभा या निम्न सदन जहां प्रतिनिधियों का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष तरीके से किया जाता है। दोनो ही सदनों के प्रतिनिधि अपने अपने सदनों के सभापति/अध्यक्ष के प्रति जिम्मेदार होते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि भारत का लोकतंत्र और उसमें निहित आचरण की सभ्यता और मूल्यों का संरक्षण पूरी तरह से दोनो सदनों के पीठासीन अधिकारियों के पास होता है। आने वाले भारत की पीढ़ियाँ भारत की संसदीय विरासत के बारे में क्या पढ़ेंगी और क्या विचार करेंगी यह पूरी तरह से सभापति/अध्यक्ष पर निर्भर करता है।